मुजफ्फरनगर की वो मस्जिद जिसने किसानों के लिए खोल दिए दरवाज़े, महापंचायत ने बरसों पहले आई दूरियों को किया कम
समाजसेवी राशिद अली बताते हैं कि इस शहर को एहसास हो गया है कि 8 साल पहले हुआ दंगा एक राजनीतिक षड्यंत्र था। हर कोई उस गलती की आत्मग्लानि से भरा है, जाट और मुसलमान दोनों एक दूसरे के करीब आना चाहते हैं। दोनों ही समुदाय उस कलंक को मिटाना चाहते हैं।
![फोटोः आस मोहम्मद कैफ](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2021-09%2F93a8087b-fbd1-4285-8485-72d117886e63%2FMuzaffarnagar_Mosque_1.jpg?rect=0%2C105%2C960%2C540&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के सबसे चर्चित मीनाक्षी चौक से दिल्ली जाने वाले मार्ग पर जीटी रोड के किनारे स्थित मस्जिद 'तकिया वाली' की देखरेख 45 साल के मोहम्मद हसन करते हैं। मोहम्मद हसन की आजकल खूब सराहना हो रही है। इसकी वजह यह है कि उनकी ही मस्जिद ने 4 सितंबर की रात सड़क पर भटक रहे किसानों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए थे, जिसके बाद सैकड़ों किसानों ने न केवल मस्जिद में आश्रय लिया बल्कि यहां उन्हें खाना भी खिलाया गया। इन किसानों के साथ कुछ महिलाएं भी थीं।
मोहम्मद हसन हमें बताते हैं कि "यह देर रात लगभग 1 बजे की घटना है, जब मस्जिद के बाहर कुछ किसान सड़क पर नीचे ही बैठ गए थे। इनमें सिख समाज के लोग थे, जिनके साथ कुछ महिलाएं भी थीं। मैं समझ गया कि ये किसान महापंचायत में शिरकत करने आए हैं। शहर में बहुत भीड़ है और महिलाओं की वजह से इन्हें ज्यादा परेशानी है।"
![फोटोः आस मोहम्मद कैफ](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2021-09%2F68385fe2-4f70-44c2-b4b9-bbfa199beff7%2FMuzaffarnagar_Mosque_2.jpg?auto=format%2Ccompress)
हसन आगे कहते हैं, "मैंने इसके लिए मस्जिद कमेटी के लोगों से बात की और फैजान अंसारी, अमीर आजम और दिलशाद पहलवान ने मुझे इन्हें आश्रय देने का मशवरा दिया। इसके तुरंत बाद मस्जिद कमेटी के यह साथी मस्जिद में आ गए और किसानों से अनुरोध करके मस्जिद के अंदर बुला लिया गया। उस समय यह 50-60 किसान थे जिनमें लगभग 7 महिलाएं थीं। रात में 2 बजे मस्जिद पूरी तरह से खोल दी गई, जिसके बाद सैकड़ों किसान यहां आराम करने के लिए आ गए।"
मस्जिद के प्रबंधक फैजान अंसारी बताते हैं कि ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि अनुमान से बहुत अधिक भीड़ आ गई थी। 5 सितंबर को किसानों की भीड़ को तो दुनिया ने देखा मगर इससे भी विकट स्थिति एक दिन पहले पैदा हो गई थी। हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से एक लाख से भी ज्यादा किसान 4 सितंबर की रात में ही यहां आ गए थे, जिसका आयोजकों को भी अनुमान नही था, क्योंकि संभवतः 50 हजार किसानों की तैयारी की गई थी।
![फोटोः आस मोहम्मद कैफ](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2021-09%2F7be847b8-ddb7-45a7-890f-34240e40aecf%2FMuzaffarnagar_Mosque_3.jpg?auto=format%2Ccompress)
फैजान अंसारी कहते हैं, "अब ये हमारे मेहमान थे तो हमने अपनी तरफ से यह प्रयास किया। हमने देखा है कि अक्सर गुरद्वारे भी हमारे लिए ऐसा करते हैं। आज उनके लिए हमने यह किया।" फैजान बताते हैं कि इनमें कुछ हरियाणा के हिन्दू जाट किसान भी थे। उनमे से कुछ ने तो भगवा रंग का गमछा भी पहना हुआ था। इनमें एक ने कहा भी आज उसकी मुसलमानों के प्रति सोच पूरी तरह बदल गई।
उस रात के बाद सुबह फज्र की नमाज़ पढ़ने पहुंचे स्थानीय नागरिक अमीर आजम ने बताया कि 5 सितंबर की सुबह जब वो नमाज़ पढ़ने पहुंचे तो उन्होंने एक अदुभुत नजारा देखा कि जब अंदर वाले कमरे में मुस्लिम समाज के लोग नमाज अदा कर रहे थे तो ये किसान भाई काबे की तरफ रुख करके हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और ध्यान लगाने लगे।
![फोटोः आस मोहम्मद कैफ](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2021-09%2Fcbc4ff7b-7c92-4666-8320-a8cb0caeb6e1%2FMuzaffarnagar_Mosque.jpg?auto=format%2Ccompress)
इतना ही नहीं, स्थानीय नागरिक दिलशाद पहलवान ने इन किसानों के लिए खाने की व्यवस्था भी की और उन्हें मुजफ्फरनगर की मशहूर तहरी खिलाई गई। यह मिर्च के चावल होते हैं। दिलशाद बताते हैं कि वो देख रहे थे कि अज़ान के वक्त हरियाणा और पंजाब के यह किसान तुरंत खड़े हो जाते थे और अज़ान के बाद बैठ जाते थे, यह उनका सम्मान था। साथ ही उन्होंने यह भी ख्याल रखा कि उनके सिर ही काबे की तरफ रहे, एक किसान ने अनजाने में पैर उधर कर लिया तो दूसरे ने उससे कहा कि "उस दिशा में काबा होता है, पैर मत करो!"
मुजफ्फरनगर जैसे उबाल मारते खून के शहर में मस्जिद में अलग धर्म के किसानों के लिए (इनमें अधिकतर जाट समुदाय के लोग थे) दरवाजे खोल देना एक दिन में आया परिवर्तन नहीं है। शहर के समाजसेवी राशिद अली बताते हैं कि इस शहर को अहसास हो गया है कि 8 साल पहले हुआ दंगा एक राजनीतिक षड्यंत्र था। हर कोई उस गलती की आत्मग्लानि से भरा है, जाट और मुसलमान दोनों एक दूसरे के करीब आना चाहते हैं। दोनों ही समुदाय उस कलंक को मिटाना चाहते हैं।
मुजफ्फरनगर के किसान नेता राजू अहलावत इस घटना से बेहद आह्लादित हैं। वो कहते हैं कि यह बेहद ही सुकून देने वाला घटनाक्रम है। इससे उन्हें बहुत खुशी हुई है। राजनीतिक कारणों से मुजफ्फरनगर के माथे पर कलंक लग गया था। किसान अब मिलकर इसे फिर से मुहब्बतनगर बना रहे हैं।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia