लॉकडाउन पर छलका एक कूकर-मिक्सी मिस्त्री का दर्द- बहुत मुश्किल भरे दिन रहे, अभी भी कोई उम्मीद नहीं

लॉकडाउन में दुकानों को मिली छूट के बाद दिल्ली से सटे गाजियाबाद के इंदिरापुरम में मिक्सी-कूकर मरम्मत करने वाले एक मिस्त्री से उसका अनुभव पूछते ही उसका दर्द उभर आया। उसने कहा कि आप खुद ही अंदाजा लगाइए कि हमारे जैसे गरीबों की क्या हालत होगी जो रोज कमाते थे।

फोटोः राम शिरोमणि शुक्ल
फोटोः राम शिरोमणि शुक्ल
user

राम शिरोमणि शुक्ल

लॉकडाउन 3.0 के बारे में वैसे तो माना गया कि चार मई से कुछ दुकानें खोलने की छूट मिल गई है। लेकिन इंदिरापुरम न्याय खंड-1 के काफी हिस्सों में शायद ही कोई दुकान चार मई को खुली हो। पांच मई को कुछ दूर जाकर देखने पर कुछ छिटपुट दुकानें खुली दिखीं। इन्हीं में से एक सड़क के किनारे फुटपाथ पर टूटी सी मेज पर सामान आदि रखकर मिक्सी और कूकर आदि ठीक करने वाले अकिल अपनी दुकान पर काम करते दिखे। पास जाने पर पता चला कि वह एक मिक्सी ठीक कर रहे हैं।

यह पूछने पर कि क्या आपसे कुछ बात हो सकती है, हां कहने के साथ ही अपना हाथ रोक अकिल ने कहा कि बताइए। यह कहने पर कि मैं लॉकडाउन के दौरान के आपके अनुभवों के बारे में जानना चाहता हूं, वे अनुभव साझा करने के लिए तैयार हो गए। इसके साथ ही उनका दर्द उभर आया। कहने लगे- “क्या बताऊं, बहुत मुश्किल भरे दिन हैं। बाहर निकल नहीं सकते और भीतर बंद रहके जीवन चल नहीं सकता। लेकिन क्या करूं, मजबूरी जो न कराए। सवाल यह है कि कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या? ”

उन्होंने आगे कहा, “कमाई बंद है और घर चलाना मुश्किल हो गया है। 40 दिन हो गए घर में बंद हुए। पहले रोज कमाते थे, तब भी पूरा नहीं हो पाता था। आप खुद ही अंदाजा लगाइए कि हमारे ऊपर या हमारे जैसे उन तमाम गरीबों की क्या हालत होगी जो रोज कमाते थे। लगता था सब कुछ खत्म हो गया और हमारे वश में कुछ नहीं रह गया है।”

यह पूछने पर कि तब कैसे चला। बताने लगे कि “कुछ दिन तो किसी तरह चल गया, लेकिन बहुत जल्दी संकट खड़ा होने लगा। क्या करते, मजबूरी में कर्ज लेना पड़ा। उससे किसी तरह घर का नमक-रोटी चला रहे हैं। अब तक पंद्रह हजार रुपये का कर्ज हो चुका है। अब दुकान खुलनी शुरू हुई है, तो थोड़ी उम्मीद जगी है। लेकिन अभी भी डर है कि कहीं फिर से बंदी न हो जाए। अभी भी कोई काम नहीं मिल रहा है। केवल एक काम यही है, वह भी पहले से फोन करके बताए थे। कोई ग्राहक नहीं आ रहा है। अगर कोई नहीं आया तो घर वापस चले जाएंगे। लगता नहीं कि अभी लोग सामान ठीक कराने आएंगे।”

यह पूछने पर कि क्या सरकार से कोई मदद मिली, अकिल ने बताया, “पिछले महीने पांच सौ रुपये खाते में आए थे। सोचिए पांच सौ रुपये में क्या होता है। अगर आटा भी ले लीजिए तो छह लोगों के परिवार में कितने दिन चलेगा। सरकार को गरीबों के बारे में सोचना चाहिए था कि जब सब कुछ बंद हो जाएगा और उनके पास मेहनत करके भी कमाने का कोई जरिया नहीं बचेगा तो वे अपना और अपने बच्चों का पेट कैसे पालेंगे। लेकिन सरकार ने कुछ किया नहीं। गरीबों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया।”

थोड़ी नाराजगी में अकील ने आगे कहा, “सरकार से क्या उम्मीद की जाए। सुनते थे कि गरीबों के खाने का बंदोबस्त किया जाएगा। लेकिन यह सब बातें केवल कहने के लिए ही होती हैं, करता कोई कुछ नहीं। गरीब को खुद ही करना पड़ता है और झेलना पड़ता है। सब झेल रहे हैं। हमारी इतनी कमाई नहीं होती कि कुछ बच सके। रोज कमाना और रोज खाना। उस पर भी संकट आ जाए, तो जीना मुहाल हो जाता है।”

अंत में उन्होंने कहा, “मुश्किलें तो बहुत हैं, लेकिन कर क्या सकते हैं। कमरे का किराया भी देना है। दवाइयां भी खरीदनी हैं और भी कितने खर्चे होते हैं। अभी तो यही लग रहा है कि किसी तरह बच्चों को नमक रोटी मिलती जाए। एक उम्मीद है कि शायद ये संकट टल जाए और जिंदगी फिर किसी तरह पटरी पर आ जाए। फिलहाल यही स्थिति है। आगे का कुछ पता नहीं।”

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia