कश्मीर में पाबंदी के 2 महीने: खौफ और निराशा का जहन्नुम बनती जा रही है जमीन की जन्नत

कश्मीर में दो महीने बाद भी कश्मीरियों को राहत मिलने के आसार नहीं हैं। सबसे ज्यादा परेशान महिलाएं हैं जिन्हें अपने बच्चों की हर समय फिक्र सताती है। हालात ऐसे हैं कि अब कश्मीर में हर तरफ सिर्फ खौफ और निराशा ही नजर आती है।

फोटो : Getty Images
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नवजीवन डेस्क

“कश्मीरियों पर हमेशा सुरक्षा बलों के हाथों अत्याचार का शिकार होने की तलवार लटकी रहती है। अगर किसी परिवार के बच्चे बाहर खेलने जाते हैं तो उन्हें फिक्र रहती है कि वे वापस आएंगे या नहीं। कश्मीरी बेइंतेहा खौफ में जी रहे हैं क्योंकि सुरक्षा बल रात के समय उनके घरों में घुस आते हैं। घाटी में संचार व्यवस्था बंद हुए 60 हो गए हैं, लेकिन कुछ भी नहीं बदला है।” यह कहना है एक स्वतंत्र महिला कार्यकर्ता नंदिनी राव का।

नंदिनी राव उस चार सदस्यीय टीम का हिस्सा थी जिसने कश्मीर के श्रीनगर, शोपियां, कुपवाड़ा और बारामुला जिलों का दौरा कर हालात की जानकारी ली और कश्मीरी परिवारों की आपबीती सुनी। ये टीम सितंबर के आखिरी सप्ताह में वीमेन अगेंस्ट वायलेंस एंड स्टेट रिप्रेशन (WSS) की तरफ से कश्मीर गई थी। टीम ने इस दौरान तमाम महिलाओं और बच्चों से बात की ताकि घाटी में संचार सेवाओं पर पाबंदी के बाद से उनके हालात को समझ सकें।

नंदिनी राव ने बताया कि, “कश्मीर के लोग पाबंदियों के दी हैं, इसीलिए वे घर में राशन और सूखे मेवे आदि रखते हैं। लेकिन अब सुरक्षा बल उनके घरों में घुस आते हैं और खाने-पीने के सामान को खराब कर देते हैं। जैसे चावलों में लाल मिर्ची पावडर मिला दना, अखरोट ले जाना आदि। इस सबको आप क्या नाम देंगे?”


टीम की दूसरी सदस्य महिला अधिकार कार्यकर्ता शिवानी तनेजा ने बताया कि, “सुरक्षा बल बच्चों और पुरुषों को ले जाते हैं और उन्हें छोड़ने के बदले रिश्वत मांगते हैं। हम ऐसे परिवारों से मिले जिन्होंने अपनों को छुड़ाने के लिए 2 लाख रुपए तक की रिश्वत दी है। ज्यादातर मामलों में कोई एफआईआर दर्ज नहीं होती।”

महिला कार्यकर्ता का कहना है कि घाटी में करीब 13, 000 लोगों को हिरासत में लिए जाने की बात कही जा रही है, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो सकती, क्योंकि सरकार ने कोई मामला दर्ज ही नहीं किया है। टीम की मुलाकात 10 साल की एक बच्ची से हुई जिसे नींद से सोते वक्त सुरक्षा बलों ने धक्का दे दिया था। टीम के मुताबिक कश्मीरी परिवार अपने घर की महिलाओं और बच्चों को दूसरी जगह भेज देते हैं ताकि वे सुरक्षा बलों की पहुंच से दूर रहें।

तनेजा बताती हैं कि, “कश्मीरियों ने अब तो खुद ही अपने पर पाबंदियां लगा ली हैं। देश के दूसरे हिस्सों में अगर लोग सरकारी नीतियों से आश्वस्त नहीं होते हैं तो वे एक-दो दिन विरोध करते हैं। लेकिन कश्मीरियों की अब यह किस्मत बन गई है।” उनका कहना है कि, “कश्मीर में हर तरफ निराशा का माहौल दिख रहा है। कश्मीरी बताते हैं कि उनके काम-धंधे ठप पड़े हैं, और इस बार तो सरकार ने उनसे किसी बारे में राय मश्विरा करने की जरूरत ही नहीं समझी।”

कश्मीरी मीडिया को लेकर भी नाराज नज़र आते हैं क्योंकि ज्यादातर मीडिया घाटी के बारे में गलत खबरें ही दिखा रहा है। घाटी में खौफ और गुस्सा इस हद तक दिख रहा है कि लोगों को मानसिक बीमारियां होने का खतरा बढ़ गया है। तनेजा बताती हैं कि, “कश्मीरी अब उस मुकाम पर आ गए हैं जहां वे नुकसान उठाकर भी अपनी आवाज बाहर पहुंचाना चाहते हैं।”

एक बुजुर्ग शख्स ने टीम को बताया कि उनके परिवार के एक लड़के को आगरा भेजा गया है। वे उससे मिलने गए थे, लेकिन उन्हें कश्मीरी में बात करने की इजाजत नहीं थी। टीम के मुताबिक सुरक्षा में तैनात जवान महिलाओं को छेड़ते हैं और अश्लील इशारे करते हैं। ऐसे में महिलाएं लगातार खुद को खतरे में महसूस करती हैं।

घाटी के ज्यादातर घरों की खिड़कियां टूट गई हैं और लोग उनकी मरम्मत कराने के बजाए अस्थाई तौर पर इन्हें कार्डबोर्ड आदि से बंद करते हैं।

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