कानपुर शेल्टर होम मामले पर लीपापोती से योगी सरकार पर उठे सवाल, क्या कुछ छिपाने की हो रही है कोशिश?

योगी सरकार में कानपुर के शेल्टर होम मामले की जांच पर सवाल उठने लगे हैं। इस शेल्टर होम में रह रही 15 से 17 साल की 57 बच्चियों को कोविड पॉजिटिव पाया गया है। इनकी जांच कानपुर के ही लाला लाजपतराय अस्पताल में की गई।

फोटो: सोशल मीडिया
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रश्मि सहगल

क्या योगी आदित्यनाथ सरकार कानपुर के शेल्टर होम मामले की जांच पर लीपापोती की कोशिश में है? लगता तो ऐसा ही है। इस शेल्टर होम में रह रही 15 से 17 साल की 57 बच्चियों को कोविड पॉजिटिव पाया गया है। इनकी जांच कानपुर के ही लाला लाजपतराय अस्पताल में की गई। यहां यह रही सभी 171 बच्चियों की जांच की गई। इनमें से सात गर्भवती भी पाई गई हैं। इन सात में से पांच में कोविड के लक्षण भी पाए गए। चिंताजनक बात यह है कि इस होम में रह रहीं आधी बच्चियां पोस्को एक्ट के तहत हैं। मतलब, वे नाबालिग के साथ बलात्कार समेत विभिन्न यौन अपराध की पीड़िता हैं। वैसे, इसके साथ अच्छी बात यह भी है कि इस शेल्टर होम का महिला संरक्षण होम पास की बिल्डिंग में हैं और वहां की सभी महिलाएं जांच में निगेटिव पाई गई हैं।

वैसे, कानपुर के जिलाधिकारी ब्रह्मदेव राम तिवारी का कहना है कि सातों बच्चियां शेल्टर होम में लाए जाने से पहले से गर्भवती हैं। इनमें से दो बच्चियों को दिसंबर, 2019 में आगरा और कन्नौज की बाल विकास समितियों ने यहां रेफर किया था। अन्य दो गर्भवती बच्चियों को जनवरी और फरवरी में एटा से यहां लाया गया था जबकि एक अन्य बच्ची फिरोजाबाद जिले से यहां लाई गई थी। लेकिन मुख्य बात यह है कि स्थानीय प्रशासन ने जो कुछ भी कहा हो, यह बात तो साफ है कि जब इन्हें यहां भर्ती किया गया था, तब इनमें से अधिकांश बच्चों की गर्भधारण अवधि ज्यादा नहीं थी। उन्हें गर्भपात का विकल्प दिया जाना चाहिए था क्योंकि ये बच्चियां नाबालिग हैं और वे किसी बच्चे के लालन-पालन में शायद ही सक्षम हैं।

सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की प्रमुख रंजना कुमारी मानती हैं। वह गर्भधारण किए रहना चाहती हैं या नहीं, इसका निर्धारण करने के निर्णय करने का अधिकार इन लोगों के पास ही रहना चाहिए। एमटीपी एक्ट में साफ कहा गया है कि हर महिला, और खास तौर से पोस्को मामले में, के पास पहली तिमाही में ही गर्भपात का अधिकार है। पोस्को एक्ट यह भी साफ तौर पर बताता है कि शेल्टर होम में प्रवेश दिए जाने से पहले उनका मेडिकल टेस्ट किया जाना चाहिए।


चूंकि सेनिटाइजेशन के बाद शेल्टर होम भवन सील कर दिया गया है इसलिए इस तरह के रिकॉर्ड तक पहुंच संभव नहीं है कि उनकी जांच की गई थी या नहीं। इन बच्चियों के लिए गर्भपात के विकल्प पर विचार क्यों नहीं किया गया, इस बारे में राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो का अपना स्पष्टीकरण हैः इनमें से कुछ अपने ऐसे (बालक) मित्र के साथ गायब हो गई थीं जो अब अपना संबंध जारी नहीं रखना चाहते। बच्चियां भावनात्मक तौर पर अब भी बंधी हुई थीं और इसलिए वह गर्भपात करवाना नहीं चाहती थीं। उनका कहना है कि गर्भपात को लेकर एक-रूप कानून नहीं है। यह केस-दर-केस बदलता रहता है।

लेकिन इन बच्चियों में से अधिकतर ऐसी हैं जिन्हें आम तौर पर उनके अभिभावक या समाज स्वीकार नहीं कर रहे हैं और तब इतनी कम उम्र में उनका मां बनना उनके लिए ज्यादा घाटे का सौदा है। कानूनगो बताते हैं कि 28 मार्च को ही उन्होंने सभी शेल्टर होम को एडवाइजरी जारी की थी कि कोविड-19 मामलों में बढ़ोतरी के मद्देनजर जिन बच्चियों/महिलाओं को भेजा जा सकता हो, उन्हें उनके घर यथाशीघ्र भिजवा दिया जाए। कानूनगो ने इन निर्देशों का पालन न करने के लिए यूपी राज्यबाल अधिकार संरक्षण आयोग को परोक्ष ढंग से दोषी बताया। उन्होंने कहा कि उन्हें अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत थी। उन्होंने यह भी कहा कि गंभीर लापरवाही के कारण जेजे एक्ट की धारा 75 के तहत शेल्टर होम के अधीक्षक और स्टाफ के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।

जिला प्रोबेशनरी ऑफिसर अजीत कुमार ने स्थानीय मीडिया को डराने-धमकाने की भी कोशिश की क्योंकि उसने यह उजागर कर दिया था कि ये बच्चियां किस तरह यहां तंगहाली में रहती हैं और कैसे एक ही बिस्तर पर एक से अधिक बच्चियों को रहना पड़ रहा है। कुमार ने झूठ और गलत सूचनाएं फैलाने का आरोप लगाते हुए 22 जून को एफआईआर दर्ज करा दी। कुमार का अपना तर्क था कि इन्फेक्शन इस वजह से भी फैला हो सकता है क्योंकि यहां रखी गई बच्चियों को नियमित अंतराल पर सरकारी अस्पतालों में जांच के लिए ले जाया जाता रहा है। कुमार ने दावा किया कि फिर भी, हमलोग इस बात की अब भी जांच करा रहे हैं कि इन बच्चियों को कोविड-19 किस तरह हो गया।

देश भर में 7,162 शेल्टर होम हैं। इनमें से 2,000 को राज्य सरकारें चलाती हैं। शेष बचे होम निजी संस्थानों के जिम्मे हैं। कई महिला संगठन यह सवाल उठाते रहे हैं कि आखिर, इन शेल्टर होम में युवतियों को लंबे समय तक रखा ही क्यों जाता है। दरअसल, शेल्टर होम में शोषण की खबरें आती रही हैं और यह भी कि इस तरह के काम में लगे लोगों को राजनीतिक- प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त होता रहा है।

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