भारी बारिश से यूपी की राजधानी बेहाल! जलभराव ने रोका CM योगी का अस्पताल दौरा, घर से ट्रैक्टर पर निकलने को मजबूर MLC

ऐसा नहीं कि यह पहली बार हुआ है कि बारिश में राजधानी की सड़कों पर बाढ़ आ जाती है। हर साल यही किस्सा दोहराया जाता है। लखनऊ शहर के जानकीपुरम इलाके की हालत सबसे ज्यादा खराब थी। खुद मंडलायुक्त रोशन जैकब को घुटनों तक पानी से भरे सड़कों पर उतरना पड़ा।

फोटो: यू आर कुमार
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यू आर कुमार

लगातार हुई बारिश का असर था कि राजधानी के वीवीआईपी इलाके दिलकुशा में दीवार ढहने से नौ लोगों की मौत हो गयी और दो लोग घायल हो गए। घायलों को इलाज के लिए सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया। हर तरफ अफरा तफरी का माहौल था कि तभी अचानक सुबह 10: 30 बजे सीएम योगी आदित्यनाथ के सिविल अस्पताल आने का अलर्ट जारी हुआ तो पूरा अस्पताल छावनी में तब्दील कर दिया गया, लेकिन थोड़ी देर बाद मुख्यमंत्री का अस्पताल आने का कार्यक्रम निरस्त हो गया। इसके पीछे की वजह जानकर आप भी दंग रह जाएंगे।

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दरअसल, पांच कालिदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास से चंद कदमों की दूरी पर स्थित पार्क रोड पर भारी जलभराव था। सिविल अस्पताल भी इसी सड़क पर स्थित है। सीएम योगी आदित्यनाथ के अस्पताल आने का रास्ता भी यही था। उस समय व्यवस्था से जुड़े रहे लोगों का कहना है कि ऐसे में सीएम का अस्पताल आना संभव नहीं हो सका और उनको अपना कार्यक्रम निरस्त करना पड़ा। बहरहाल, मुख्यमंत्री का अस्पताल का दौरा तो निरस्त हो गया, लेकिन उसके बाद चंद घंटों में ही पार्क रोड पर मशीने लगाकर सड़क से जल हटाया गया। यह तो बानगी भर है।

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शहर के जानकीपुरम इलाके की हालत सबसे ज्यादा खराब थी। खुद मंडलायुक्त रोशन जैकब को घुटनों तक पानी से भरे सड़कों पर उतरना पड़ा। स्थानीय लोगों का कहना है कि अच्छा होता, यदि मंडलायुक्त खुद सड़क पर नहीं उतरती, बल्कि जलभराव को खत्म करने वाली मशीनरी को सड़क पर उतारा गया होता।

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ऐसा नहीं कि यह पहली बार हुआ है कि बारिश में राजधानी की सड़कों पर बाढ़ आ जाती है। हर साल यही किस्सा दोहराया जाता है, यह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का संसदीय क्षेत्र है। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक लखनऊ से ही आते हैं। योगी आदित्यनाथ सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी पूर्व की तरह ही लखनऊ को स्मार्ट सिटी बनाने का दावा करती हुई सरकार खुद की पीठ ठोंकती रही है। पर दो दिन की इस बारिश से लखनऊ पर चढ़ा स्मार्ट सिटी का रंग धुल गया। हालात ऐसे थे कि जानकीपुरम में जलभराव के चलते एमएलसी पवन चौहान को घर से बाहर निकलने के लिए कार छोड़कर ट्रैक्टर का सहारा लेना पड़ा।

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स्थानीय लोगों का कहना है कि यह हर साल की रवायत बन गयी है। बारिश में मोहल्ले जलमग्न हाते हैं, दुर्घटनाएं होती हैं। फिर अधिकारी और नेता अपनी संवेदना जताने पीड़ितों के पास पहुंचते हैं और बारिश खत्म होने के बाद अगले साल बारिश के पहले तक राजधानी फिर स्मार्ट सिटी कहलाती है। फिलहाल, जानकीपुरम के अलावा राजधानी के गोमतीनगर विस्तार, आशियाना, गोमतीनगर के विजय खंड, फैजुल्लागंज इलाकों में भी जलभराव से हालात असामान्य थे। उतरेठिया सब स्टेशन में पानी घुसने की वजह से रात दो बजे तेलीबाग इलाके की बिजली गुल हो गयी। करीबन एक लाख लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बारिश में प्रशासन के सारे इंतजाम बह गए।

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जानकीपुरम कालोनी निचले इलाके में बसाई गयी है। यहां पानी के निकासी का इंतजाम नहीं किया गया। स्थानीय लोगों के मुताबिक नाले सड़क के किनारे बनाने के बजाए सड़कों के बीचो बीच बनाए गए हैं और नालों की दीवार भी महज दो-दो फीट ऊंची है। ऐसी स्थिति में सड़क का पानी नाले में नहीं जा पाता है। जानकीपुरम और एलडीए कालोनियां, नियोजित कालोनियों में गिनी जाती हैं। पर हर साल बारिश में इन कालोनियों में भी पानी भर जाता है। जल निकासी की व्यवस्था यहां सिर्फ कागजो में ही है।

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लखनऊ में इस बार बारिश ने बीते दस साल का रिकार्ड तोड़ा। २४ घंटे में इतनी बारिश कभी नहीं हुई। शहर के के कई इलाक़ों से अभी तक पानी निकला नहीं है। वीवीआईपी इलाके आशियाना इलाके के कई सेक्टर जलमग्न हो गए। नवनिर्मित एमराल्ड मॉल का मेन गेट बारिश में धँस गया जिसके कारण बड़ा हादसा होते होते बचा।

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आपको जानकर ताज्जुब होगा कि जेएनएनयूआरए योजना के तहत राजधानी की जल निकासी व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए 398 करोड़ रूपये खर्च हुए। पर इसमें शहर का एक बड़ा हिस्सा शामिल नहीं हो सका। सीवर लाइनों को घर से जोड़ने का काम अधूरा ही छोड़ दिया गया। लाल बाग, इंदिरा नगर, त्रिवेणी नगर, पुराना लखनऊ और कुर्सी रोड के इलाकों को इसका फायदा नहीं मिला। नतीजतन इन इलाकों में भी बारिश में सड़कें जलमग्न हो जाती हैं।

स्मार्ट सिटी योजना के तहत किए जाने वाले कामों में से 50 फीसदी अधूरे हैं। सीवर लाइन पूरी तरह नहीं बिछायी जा सकी है। शहर के कैसरबाग और उससे जुड़े इलाकों के ड्रेनेज सिस्टम को सही करने में 58 करोड़ खर्च होने हैं। पर यह काम भी अभी तक सिर्फ 35 फीसदी ही पूरा हो सका है। यदि यह काम समय से पूरा होता तो पुराने लखनऊ में जल निकासी की समस्या विकराल रूप नहीं लेती।

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