एक ही घपला जिसे मोदी सरकार के बहुत से विभाग अपने ढंग से कर रहे हैं
आयुष्मान भारत और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को लेकर सीएजी रिपोर्ट में कई घपलों की बात सामने आई थी। सौभाग्य, दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी और भी बहुत सी योजनाएं हैं जहां सीएजी ऐसे ही घपलों की ओर इशारा कर चुकी है।

नवंबर के पहले हफ्ते में एक प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने जब हरियाणा विधानसभा चुनाव में वोट चोरी के लिए अपनाए गए तरीकों के बारे में बताया था तो इसे चुनाव आयोग द्वारा की गई बड़ी गड़बड़ माना गया था। उस समय यह नहीं पता था कि जैसी गड़बड़ चुनाव आयोग ने की वैसी ही गड़बड़ सरकार के कई विभागों में धड़ल्ले से चल रही है।
शनिवार को इंडियन एक्सप्रेस ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना यानी पीएमकेवीवाई में हुए घपलों की रिपोर्ट छापी तो सबसे पहले राहुल गांधी की वह प्रेस कांफ्रेंस ही याद आई। वैसे अखबार ने जो खबर छापी है वह उसकी अपनी पड़ताल नहीं है, वह कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानी सीएजी की उस रिपोर्ट का हिस्सा है जो दो दिन पहले ही संसद में पेश की गई थी।
राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में बताया था कि कैसे हरियाणा में ब्राजील की एक माॅडल की फोटो मतदाता सूची में 223 अलग-अलग मतदाताओं के लिए इस्तेमाल की गई। पीएमकेवीवाई ने शायद अभी इतना कौशल विकसित नहीं किया कि वह ब्राजील की किसी माॅडल का आयात करता लेकिन एक ही फोटो का इस्तेमाल बहुत सारे लाभार्थियों के लिए करने की परंपरा का उसने भी पालन किया है।
चुनाव आयोग ने बहुत सारे लोगों के पते पर मकान नंबर 00 दर्ज कर दिया था। उसी तर्ज पर इस योजना में बहुत से लाभार्थियों का खाता नंबर दर्ज किया गया है- 11111111111। जहां नंबर दर्ज करने में थोड़ी मेहनत की गई वहां यह नंबर 1234567.. भी है। कई जगह पर खाता नंबर सिंगल डिजिट में भी हैं। कुल 12,122 खाता नंबर ऐसे हैं जो 52,381 लाभार्थियों के नाम के साथ दर्ज हैं।
सीएजी ने अपनी जांच में यह पाया कि पीएमकेवीवाई 2.0 और 3.0 के 94.53 फीसदी लाभार्थी ऐसे हैं जिनका खाता नंबर दर्ज ही नहीं है। इसमें या तो शून्य लिखा है या फिर उपलब्ध नहीं लिखा गया है। अलग-अलग कोर्स में इस योजना के लाभार्थियों को 2,200 रुपये से लेकर 12,000 रुपये तक की धनराशि कोर्स पूरा होने पर मिलती है। इसका औसत 8,000 रुपये प्रति लाभार्थी है।
कुल 14,450 करोड़ रुपये बजट वाली इस योजना में 1.31 करोड़ नौजवानों को कुशल बनाने का लक्ष्य था। जिसमें अब तक 1.1 करोड़ को प्रमाणपत्र बांटे गए हैं। लेकिन सभी को यह राशि नहीं मिली। सीएजी ने पाया कि 34 लाख लाभार्थियों को अभी तक पैसे नहीं मिले हैं।
लोगों को पैसे मिले हैं या नहीं यह जानने के लिए जब सीएजी ने लाभार्थियों को ईमेल भेजी तो 36.51 फीसदी ईमेल डिलीवर ही नहीं हुए। जाहिर है कि या तो वे ईमेल पते गलत हैं या फिर उन्हें गलत दर्ज किया गया है। एक ही ईमेल पता कई लाभार्थियों के नाम पर दर्ज है। यह भी पता पड़ा कि लाभार्थियों के बजाए प्रशिक्षण सहयोगियों के पते भर दिए गए हैं।
जांच में यह बात भी सामने आई है कि कई ऐसे केंद्रों में प्रशिक्षण पाने वालों के नाम भी पैसे जारी कर दिए गए जो केंद्र बंद हो चुके थे। सभी लाभार्थियों को पैसे मिल गए हैं मंत्रालय इसका सबूत देने में भी नाकाम रहा। ये आंकड़े भी नहीं मिल सके कि जिन लाभार्थियों ने अपना कोर्स पूरा कर लिया उनमें से कितनों का प्लेसमेंट हुआ।
ऐसा भी नहीं है कि यह सिर्फ एक योजना विशेष की ही बात है। केंद्र सरकार की बहुत सी दूसरी योजनाओं में भी इसी तरह का पैटर्न देखा जा सकता है। आयुष्मान भारत और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को लेकर सीएजी रिपोर्ट में कई घपलों की बात सामने आई थी। सबसे बड़ी बात यह थी कि जिन मरीजों की मृत्यु हो गई और जिनके नाम पर धन जारी हुआ उनकी संख्या में ही बड़ा अंतर था। इस योजना के 7,49,820 लाभार्थी ऐसे थे जिनके मोबाइल नंबर गलत दर्ज थे। बहुत सी जगह तो नंबर के लिए 9999999999 दर्ज था। गलत नाम, असंभव जन्म तिथि वगैरह बहुत सी गलतियां पाई गई थीं।
सौभाग्य, दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी और भी बहुत सी योजनाएं हैं जहां सीएजी ऐसे ही घपलों की ओर इशारा कर चुकी है।
नवंबर की प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने बताया था कि चुनाव आयोग के पास एक डी-डुप्लीकेशन साफ्टवेयर है जिसके इस्तेमाल से एक ही फोटो, एक ही पते या एक ही एपिक नंबर का इस्तेमाल कई जगह एक साथ हो रहा हो तो आसानी से पकड़ा जा सकता है। हालांकि चुनाव आयोग इसका इस्तेमाल नहीं कर रहा। हमें नहीं पता कि ऐसा साफ्टवेयर कौशल विकास मंत्रालय के पास है या नहीं। लेकिन यह जरूर लगता है कि इन सभी विभागों के पास कोई ‘डुप्लीकेशन साफ्टवेयर‘ हो सकता है जिससे एक ही तरह के घपलों की नकल सभी जगह हो रही है। या फिर इन सबके तार किसी एक जगह से ही जुड़े हैं?
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