मोदी काल में हरियाणा में हुए सबसे कम मतदान में छिपे संकेत, अपने कैडर की मायूसी भी कर रही है BJP को परेशान

ग्रामीण क्षेत्रों में 2-3 फीसदी अधिक बताए जा रहे मतदान से भी बीजेपी परेशान है। माना जा रहा है कि इससे चौंकाने वाले परिणाम आ सकते हैं। किसान और अग्निवीर जैसे मुद्दों पर गांवों में बीजेपी से भारी नाराजगी थी, जिसकी वजह से बीजेपी नेता परेशान हैं।

मोदी काल में हरियाणा में हुए सबसे कम मतदान में छिपे संकेत, अपने कैडर की मायूसी से भी BJP परेशान
मोदी काल में हरियाणा में हुए सबसे कम मतदान में छिपे संकेत, अपने कैडर की मायूसी से भी BJP परेशान
user

धीरेंद्र अवस्थी

हरियाणा में लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत ने कांग्रेस से ज्‍यादा बीजेपी की सांसें अटका दी हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक रात 8 बजे तक तकरीबन 65 प्रतिशत मतदान हरियाणा में हुआ है, जो पिछले चुनाव से करीब 5 फीसदी कम है। मोदी काल में हरियाणा में यह वोटिंग का सबसे कम प्रतिशत है। 2014 और 2019, दोनों लोकसभा चुनाव में 70 फीसदी से अधिक मतदान हरियाणा में हुआ था। राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी मजबूत कॉडर के लिए जाने जाते हैं। मतदान के अंतिम वक्‍त तक यही कॉडर अपने लोगों को बूथ तक किसी भी हालत में लाने के लिए भी जाना जाता है। सवाल यह उठ रहा है कि क्‍या बीजेपी का अपना कॉडर उदासीनता का शिकार हा गया, जिसकी वजह से वह वोट डालने नहीं आया और इसका असर मतदान के प्रतिशत पर पड़ा। दूसरा ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक मतदान से बीजेपी की बेचैनी बढ़ी हुई है। किसान और अग्निवीर जैसे मुद्दों पर गांवों में बीजेपी से भारी नाराजगी थी, जिसकी वजह से बीजेपी प्रत्‍याशियों का गांवों में प्रचार तक करना मुश्किल हो गया था।

16 मार्च को लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद तकरीबन सवा दो महीने के लंबे चुनावी कैंपेन में हरियाणा में भारी सत्‍ता विरोधी लहर नजर आई। हरियाणा के चुनावी इतिहास में यह पहली बार हुआ कि बीजेपी के लोकसभा प्रत्‍याशियों से ग्रामीण क्षेत्रों में सीधे सवाल-जवाब हुए। बात सिर्फ यहीं तक नहीं थी। बीजेपी के खुद अंदर घमासान छिड़ा था। हाशिये पर डाल दिए गए दिग्‍गज बीजेपी नेता अपने आप को सीमित कर चुके थे। गृह मंत्री अनिल विज ने खुद को अपने विधानसभा क्षेत्र अंबाला कैंट तक सीमित कर लिया। बीच-बीच में उनका दर्द भी निकल कर बाहर आता रहा।

पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष राम बिलास शर्मा, ओम प्रकाश धनखड़ से लेकर कैप्‍टन अभिमन्‍यू तक चुनाव प्रचार में उस तरह नहीं दिखे। बीच में कई बार राम बिलास शर्मा की पीड़ा भी बाहर आई। तकरीबन साढ़े नौ साल सरकार के मुखिया रहे पूर्व मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का रूखा और मनमाना रवैया भी एक बहुत बड़ी वजह रहा। डबल इंजन की सरकार चला रही बीजेपी के पास बचाव का कोई तर्क नहीं था। नतीजा यह था कि जनता की नाराजगी के साथ बीजेपी के अपने कार्यकर्ताओें में ही गहरी मायूसी थी। पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान यह दिख भी रही थी। विजय संकल्‍प रैलियों तक में खाली कुर्सियां इस बात की तस्‍दीक कर रही थीं कि बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं है। इससे पहले राज्‍य सरकार की खट्टर के वक्‍त हुई रैलियों और अमित शाह की जनसभाओं में भी तकरीबन यही हाल था।


बीजेपी की सबसे बड़ी बेचैनी यह भी है कि कार्यकर्ताओं की मायूसी कहीं कम वोटिंग की वजह तो नहीं है। 25 मई को हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों के लिए होने वाले मतदान में पहले अच्‍छी वोटिंग का अंदाजा लगाया जा रहा था। सरकार के खिलाफ नाराजगी इसकी एक वजह मानी जा रही थी, लेकिन तकरीबन 65 फीसदी हुए मतदान ने सभी को चौंका दिया है। यह मोदी काल का सबसे कम मतदान है। इससे पहले 2019 के चुनाव में 70.34 प्रतिशत मतदान हुआ था, जबकि 2014 में मतदान प्रतिशत 71.45 था। जाहिर है कि तकरीबन 5-6 प्रतिशत कम मतदान ने सियासी पंडितों को असमंजस में डाल दिया है। यह मतदान प्रतिशत यदि रिवाइज भी होता है तो भी इसके 70 फीसदी पहुंचने की संभावना नहीं है।

सिरसा में सबसे अधिक 69 प्रतिशत मतदान होना भी एक संकेत दे रहा है। सिरसा पंजाब से लगता क्षेत्र है। यहां किसानों की नाराजगी सबसे ज्‍यादा थी। अभी भी बार्डर पर किसान बैठे हैं। सिरसा में 2019 में टर्नआउट 75.99 प्रतिशत था, जबकि बीजेपी प्रत्‍याशी सुनीता दुग्‍गल का जीत का मार्जिन 3,22,918 था। मतदान प्रतिशत में करीब 16 फीसदी का गैप बहुत बड़ा है। अंबाला में 66.9 फीसदी मतदान हुआ है। 2019 में यहां मतदान का प्रतिशत 71.10 था। अंबाला भी किसान आंदोलन से प्रभावित क्षेत्र है। यहां शंभू बार्डर पर किसान अभी भी बैठे हैं।

इसी तरह कुरुक्षेत्र 66.2, हिसार 64.6, सोनीपत 62.2 रोहतक 64.5, भिवानी-महेंद्रगढ़ 65.2, करनाल 63.2 और गुरुग्राम में 60.6 प्रतिशत मतदान हुआ है। सबसे कम फरीदाबाद में 59.7 फीसदी मत पड़े हैं। 2019 में कुरुक्षेत्र में टर्न आउट-74.29 प्रतिशत, हिसार में 72.43, करनाल में 68.35, सोनीपत में 71.02, रोहतक 70.52, भिवानी-महेंद्रगढ़ में 70.48, गुरुग्राम में 67.33 और फरीदाबाद में 64.10 फीसदी था। करनाल और फरीदाबाद में बीजेपी की जीत का मार्जिन क्रमश: 6,56,142 और 6,38,239 था, जो देश में सबसे अधिक मार्जिन से जीती जाने वाली सीटों में दूसरा और तीसरा था।

हरियाणा में 10 में से 8 सीटें ऐसी थीं, जहां जीत का मार्जिन 3 लाख से 6 लाख तक था। इस बार हालात बदले हुए हैं। बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव में 90 में से 79 विधानसभा क्षेत्रों में लीड मिली थी, जबकि विधानसभा चुनाव में वह 40 सीटों पर ही अटक गई थी। वहीं एक भी लोकसभा सीट न जीत पाने वाली कांग्रेस को 10 विधानसभा क्षेत्रों में लीड मिली थी, जबकि विधानसभा चुनाव में उसके 31 विधायक जीत कर आए थे।


इस बार तो हालात और बदले हुए हैं। इससे पहले 1999 में सबसे कम 63.7 फीसदी मतदान हुआ था। 2009 में 67.51, जबकि  2004 में 65.7 फीसदी मतदान हुआ था। इस बार का मतदान करीबन 2004 में हुए मतदान के बराबर है, जब युपीए की सरकार बनी थी और हरियाणा में कांग्रेस ने 10 में से 9 सीटें जीती थीं। ग्रामीण क्षेत्रों में 2-3 फीसदी अधिक बताए जा रहे मतदान से भी बीजेपी परेशान है। माना जा रहा है कि इससे चौंकाने वाले परिणाम आ सकते हैं। बात सिर्फ लोकसभा चुनाव तक नहीं है। बीजेपी को खौफ सता रहा है कि परिणाम उसके विपरीत आए तो महज 5 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में उसका सूपड़ा साफ होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।    

हरियाणा के लोग इस आशंका से भी ग्रस्‍त हैं कि बीजेपी कहीं ईवीएम के जरिये कोई खेला न कर दे। चुनाव आयोग का रवैया इस आशंका को बढ़ा रहा है। हरियाणा के मुख्‍य चुनाव अधिकारी अनुराग अग्रवाल ने कहा है कि मतदान का प्रतिशत अभी बढ़ सकता है।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia