एसआईआर विवाद के बीच तृणमूल कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से की मुलाकात, उठाए 5 सवाल

दिल्ली में तृणमूल कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मुलाकात के बाद कहा कि हमने दो घंटे की बैठक की और शुरुआत में 40 लोगों की सूची सौंपी, जिनमें से 17–18 बीएलओ थे, जिनकी मौतें सीधे तौर पर SIR प्रक्रिया से जुड़ी थीं।

फोटो : विपिन
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नवजीवन डेस्क

पश्चिम बंगाल में जारी मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बीच, तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य डेरेक ओब्रायन के नेतृत्व में पार्टी के 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने शुक्रवार को दिल्ली में चुनाव आयोग की पूर्ण पीठ (मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दोनों निर्वाचन आयुक्त) से मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल में शामिल लोकसभा सदस्यों में शताब्दी रॉय, कल्याण बनर्जी, प्रतिमा मंडल, साजदा अहमद और महुआ मोइत्रा तथा राज्यसभा सदस्यों में डोला सेन, ममता ठाकुर, साकेत गोखले और प्रकाश चिक बरीक थे।

यह बैठक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार को लिखे गए पत्र की पृष्ठभूमि में हुई, जिसमें उन्होंने हाल की दो चिंताओं पर उनके "तत्काल हस्तक्षेप" की मांग की है। मुख्यमंत्री बनर्जी ने राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) के उस निर्देश का उल्लेख किया, जिसमें जिला निर्वाचन अधिकारियों से संविदा आधारित डाटा-एंट्री कर्मियों और बांग्ला सहायता केंद्र के कर्मचारियों को एसआईआर, मतदाता सूची के शुद्धीकरण अभियान या अन्य चुनाव-संबंधी कार्यों में नहीं लगाने को कहा गया है। इसके साथ ही उन्होंने निजी आवासीय परिसरों के भीतर मतदान केंद्र स्थापित करने के प्रस्ताव का भी हवाला दिया।

यह प्रतिक्रिया तृणमूल कांग्रेस के इस आरोप के बाद आई है कि राज्य में एसआईआर सत्यापन प्रक्रिया से जुड़ी मौत की कई घटनाएं सामने आई हैं। एसआईआर प्रक्रिया फिलहाल पश्चिम बंगाल समेत 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जारी है।

प्रतिनिधिमंडल की बैठक के बाद मीडिया ब्रीफिंग के दौरान TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा, “हमने दो घंटे की बैठक की और शुरुआत में 40 लोगों की सूची सौंपी, जिनमें से 17–18 BLO थे, जिनकी मौतें सीधे तौर पर SIR प्रक्रिया से जुड़ी थीं। हैरानी की बात है कि चुनाव आयुक्त ने इन्हें सिर्फ ‘आरोप’ कहकर खारिज कर दिया, जैसे कि उन्हें पता ही नहीं था कि यह मौतें बंगाल में हुई हैं।”

महुआ मोइत्रा ने आगे कहा, “इसके बाद हमने पांच बड़े सवाल उठाए। पहला सवाल: अगर SIR अभ्यास का मकसद गैर-नागरिकों की पहचान करना है, तो बिहार में अंतिम संख्या क्या निकली? पहले ‘लाखों’ के दावे किए गए थे, लेकिन एक भी पक्का मामला सामने नहीं आया। यही स्थिति बंगाल में भी है। जबकि त्रिपुरा, मेघालय और म्यांमार से सटे कुछ राज्यों में भी घुसपैठ की चिंता है, फिर भी SIR सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही चल रहा है। यह साफ दिखाता है कि बिहार सिर्फ एक ट्रायल था और असली निशाना पश्चिम बंगाल है।”


उन्होंने कहा, “हमने यह भी पूछा कि असम में सिर्फ स्पेशल रिविजन क्यों हो रहा है, इंटेंसिव रिविजन क्यों नहीं? अंत में, अगर चुनाव आयोग खुद कह रहा है कि पुरानी मतदाता सूचियां भरोसेमंद नहीं हैं, तो इसी तर्क के आधार पर पूरी लोकसभा की वैधता पर भी सवाल उठता है।”

पश्चिम बंगाल में एक और बीएलओ की मौत

इस बीच पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) में जुटे एक और बूथ-स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। उनके परिवार ने आरोप लगाया कि अत्यधिक कार्य दबाव के कारण उनकी जान गई। चार नवंबर को कवायद शुरू होने के बाद राज्य में यह चौथी ऐसी मौत है, जिसने राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप को हवा दे दी है। अधिकारियों ने मृतक की पहचान जाकिर हुसैन के रूप में की, जो एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। परिजनों ने बताया कि बृहस्पतिवार दोपहर उन्हें सीने में तेज दर्द उठा, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां रात में उनकी मृत्यु हो गई।

परिजनों का दावा है कि हुसैन पर एसआईआर ड्यूटी और नियमित शिक्षण कार्य का "जबरदस्त दबाव" था। उनका आरोप है कि प्राथमिक शिक्षा अधिकारियों से बार-बार अनुरोध के बावजूद उन्हें एसआईआर ड्यूटी से मुक्त करने से इनकार कर दिया गया, जिससे दबाव बढ़ा।

इससे पहले पूर्ब बर्धमान जिले में दिल का दौरा पड़ने से एब बीएलओ की मौत हो गई थी, जबकि नदिया और जलपाईगुड़ी में एक-एक बूथ स्तरीय अधिकारी ने काम के कथित दबाव के चलते आत्महत्या कर ली।

इन मौतों पर राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने निर्वाचन आयोग (ईसी) पर बूथ स्तरीय अधिकारियों पर "अमानवीय" और "अनियोजित" कार्यभार लादने का आरोप लगाया है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि बीएलओ द्वारा महसूस किया गया तनाव निर्वाचन आयोग के निर्देशों से नहीं, बल्कि राज्य में सत्तारूढ़ दल द्वारा डाले गए राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव से उपजा है।

(एजेंसी इनपुट के साथ)