लॉकडाउन में अलग-थलग पड़ते ट्रांसजेंडर, खाने -पीने के साथ दवा की कमी से संकट में पूरा समुदाय

ट्रांसजेंडर किसी भीड़ में नजर नहीं आते। समाज ने पहले से ही इन्हें अलग-थलग धकेल कर रखा है। अब लॉकडाउन के इस सन्नाटे में इनके लिए आर्थिक, मानसिक और स्वास्थ्य संबंधी संकट खड़ा हो गया है। और हमारे समाज का एक पूरा वर्ग इस संकट में बिल्कुल भुला दिया गया है।

फाइल फोटोः सोशल मीडिया
फाइल फोटोः सोशल मीडिया
user

योगिता यादव

हमारे देश में ट्रांसजेंडर इस तरह छुप कर रहते हैं कि आपको पता भी नहीं होता कि उनका घर कहां है। लेकिन जब भी किसी के घर में कुछ शुभ घटित होता है तो वे अपनी मंडली के साथ आशीष देने पहुंच जाते हैं। यह वह दोहरा सामाजिक अनुकूलन है जो अब हमारे बीच के सौहार्द का स्थायी भाव बन चुका है। न पुरुषों में, न स्त्री में, न परिवार में और न समूह में, जब भी गिनती होती है वे छूट ही जाते हैं। इस बार भी वे गिनती से बाहर ही रह गए हैं।

देशभर में मौजूद पांच लाख ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग, जो पहले से ही उपेक्षित हैं, लॉकडाडन के चलते आर्थिक, मानसिक और स्वास्थ्य संबंधी संकटों में घिर गए हैं। हर रोज कमाने-खाने वाले इस समुदाय के लिए दिनों दिन परेशानियां बढ़ती जा रही हैं। पर न आप उन्हें हाईवे की भीड़ में देखेंगे और न ही खाने के लिए लगी किसी लाइन में। उनका कोई घर-गांव नहीं है, जो मृत्यु की आशंका के बीच वे जिसकी ओर बढ़ते चलें और न ही कोई ऐसा रिश्तेदार है, जिससे वे इस आपात स्थिति में मदद ही मांग लें। इन्हें देखते ही कार के शीशे चढ़ा लेने वाले लोगों ने अभी तक इन्हें समाज का हिस्सा ही नहीं माना है, तो इनकी मदद के लिए आगे कैसे आएंगे।

रुद्राणी दिल्ली में जन्मी हैं। काम के सिलसिले में देश के कई राज्यों में रही हैं। उनके समाज के ज्यादातर लोग हाशिये पर ही हैं। इसको ध्यान में रखते हए उन्होंने 2005 में मित्र ट्रस्ट नाम का संगठन बनाया। इसमें तीन हजार लोग जुड़े हुए हैं। वह कहती हैं, “हमारे समुदाय के लोग बहुत दबे हुए और घुटन में रहते हैं। हम उन्हें यही समझाते हैं कि आप जो हैं उसे स्वीकार करें और खुद से प्यार करें।

फि‍र हम उन्हें स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर जागरुक करते हैं। ज्यादातर गंभीर रूप से बीमार होने पर भी साधारण अस्पताल में जाने में संकोच करते हैं। इसलिए हम उनके रेगुलर हेल्थ चैकअप का भी इंतजाम करते हैं। खासतौर से एचआईवी एक बड़ी समस्या है। पर लॉकडाउन के कारण अब न तो हम किसी से मि‍ल पा रहे हैं और न ही किसी तक मदद पहुंचा पा रहे हैं।”

रुद्राणी पढ़ी-लिखी और आत्मनिर्भर हैं। वह मॉडलिंग करती हैं और अपने पार्टनर के साथ किराये के मकान में रहती हैं। वह कहती हैं, “हमारे समुदाय के लोगों की हालत बहुत खराब है। वे हर दिन कमाते हैं और हर दिन खाते हैं। उनके पास अब खाने को पैसे नहीं हैं। समाज में किन्नरों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है, यह बात किसी से भी छुपी नहीं है। अवसाद हमारे जीवन से कभी नहीं जाता। अपनी कितनी ही परेशानियों को हम लोग घुटकर झेलते हैं। अब लॉकडाउन की स्थिति में भी हमारे लोग बहुत परेशान हैं। वे शर्म, संकोच और घबराहट में किसी से मदद भी नहीं मांग पा रहे। सरकार को इनके लिए कुछ विशेष व्यवस्था करनी चाहिए।”

सर्व शिक्षा अभियान के बावजूद शिक्षा इन तक नहीं पहुंच पाई है। बहुत कम हैं जो अच्छी शि‍क्षा हासिल कर पाए हैं। नतीजतन वे या तो बस और ट्रेन में भीख मांगते हैं या फि‍र देह व्यापार में हैं। ये लोग इस समय आर्थिक संकट में हैं। पर समस्या एक और भी है कि इस समुदाय के बहुत से लोग एचआईवी ग्रस्त हैं। जिसके लिए इन्हें रेगुलर दवा लेनी होती है। पर गाड़ियां और अन्य साधन बंद होने के चलते वे अपनी दवा भी नहीं ले पा रहे।

ऐसे ही लोगों के लिए मदद मांगते हुए रेशमा ने एक वीडियो जारी किया। रेशमा पटना में रहती हैं और बिहार में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए काम कर रहीं हैं। अपने वीडियो में उन्होंने अपने समुदाय की परेशानियां बताते हुए लॉकडाउन के दौरान लोगों से मदद की अपील की। रेशमा बताती हैं, “बिहार में चालीस हजार के लगभग हमारे समुदाय के लोग हैं। इनमें कुछ संगठित हैं तो कुछ बहुत दूर-दूर रहते हैं। अब लॉकडाउन में सब बंद हो गया है। इन्हें राशन के साथ दवाओं की भी जरूरत है। हम चाहते हैं कि प्रशासन इन्हें आर्थिक मदद दे।”

कई और संगठन भी हैं, जिनसे इस समुदाय के लोग जुड़े हैं। बस जरूरत है इन तक सही तरीके से मदद पहुंचाने की। अब इंतजार है कि सरकारें कब इनकी मदद के लिए आगे आती हैं।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia