ट्रंप दौराः न कोई सौदा होगा, न कुछ मिलेगा, डोनाल्ड साहब आएंगे, फोटो-शोटो खिंचवाकर चले जाएंगे

अमेरिकी राष्ट्रपति के बहुचर्चित आगामी भारत दौरे को लेकर जहां मोदी सरकार की तैयारी अपने चरम पर है, वहीं मीडिया भी अभी से जोश में है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि जहां तक कृषि उत्पादों पर ट्रेड डील का सवाल है, तो ट्रंप का यह दौरा व्यर्थ साबित होने वाला है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

अगले हफ्ते भारत आ रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरे को लेकर सरकार और मीडिया की तरफ से जितनी हवा बनाई जा रही है, वह हकीकत से कोसों दूर है। इस दौरे पर अमेरिका के साथ कई अहम ट्रेड डील की जो बात हो रही है, उसकी कहीं कोई संभावना नहीं है। खुद सरकारी सूत्रों का कहना है कि जहां तक कृषि उत्पादों पर व्यापारिक डील का सवाल है, तो ट्रंप का यह दौरा व्यर्थ साबित होने वाला है।

कुछ ऐसा ही सरकार के करीबी उस सूत्र ने बताया जो, भारतीय डेयरी उद्योग की तरफ से इस दौरे पर होने वाले डील को लेकर उठाई गई आशंकाओं पर चर्चा के लिए आरएसएस से जुड़े एक समूह और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच बैठक में मौजूद थे। उन्होंने कहा, “मोदी सरकार अमेरिकी सरकार द्वारा बनाए जा रहे दबाव के आगे झुकने नहीं जा रही है। हम ट्रंप जी को नमस्ते कहेंगे और एक भव्य समारोह के बाद उनको विदा कर देंगे।”

नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर उस सूत्र ने बताया कि सरकार का विचार है कि संरक्षणवाद आज समय की आवश्यकता है, क्योंकि लघु एवं मध्यम उद्योग पहले से ही अत्यधिक दबाव में है और अगर यह सौदा होता है तो अमूल और मदर डेयरी जैसे भारत के डेयरी ब्रांडों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।

बीजेपी के पैतृक संगठन आरएसएस से जुड़ा स्वदेशी जागरण मंच भी अमेरिका के साथ कृषि उत्पादों पर किसी भी तरह के व्यापार सौदे के खिलाफ दबाव बना रहा है। सरकारी सूत्रों ने संकेत दिया है कि आरएसएस ने स्वदेशी जागरण मंच के जरिये इस सौदे के खिलाफ मजबूत चिंताओं को उठाया है। स्वदेशी जागरण मंच के प्रमुख अश्वनी महाजन ने बताया कि उनका संगठन इस सौदे के खिलाफ है क्योंकि यह ‘असमान’ शर्तों पर आधारित है।


उन्होंने कहा, “प्रत्येक देश को अपने व्यावसायिक हित की रक्षा करने का अधिकार है। भले ही उदारीकरण ने भारत के विकास सहित वैश्विक व्यापार को कितना ही लाभ पहुंचाया हो, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में संतुलन जरूरी है। अगर हम अपने डेयरी उद्योग की रक्षा नहीं करेंगे तो और कौन करेगा?” महाजन ने सौदे में एक सांस्कृतिक कोण जोड़ते हुए कहा, “अमेरिका में गायों को मांस खिलाया जाता है। भारतीय ऐसे डेयरी उत्पादों का उपयोग नहीं कर सकते हैं जो मांस-दूध से बने हों।”

महाजन की बातों पर एक तरह से मुहर लगाते हुए सरकारी सूत्रों ने नवजीवन को बताया कि भारत संबंधित अमेरिकी एजेंसियों से इस बात का प्रमाण चाहता है कि “डेयरी उत्पादों के स्रोत मवेशियों को पशुओं से निकला रक्त भोजन नहीं दिया जाएगा। हालांकि, अमेरिकी अधिकारियों द्वारा अब तक कोई आश्वासन नहीं दिया गया है।” वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता, क्योंकि यह बहुसंख्यक भारतीय आबादी की धार्मिक भावनाओं के लिए संवेदनशील मामला है।

विश्लेषकों के अनुसार "अमेरिका के साथ कोई समझौता नहीं" करने के पीछे के कारण ये है कि भारत में डेयरी क्षेत्र न केवल ग्रामीण कार्यबल को रोजगार प्रदान करता है, बल्कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। अहमदाबाद स्थित एक विश्लेषक ने कहा, 'सौदे के राजनीतिक नतीजों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।'

यहां यह उल्लेखनीय है कि एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, डेयरी क्षेत्र पूरे वर्ष में वैकल्पिक रोजगार के अवसर प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जबकि खेती-किसानी ग्रामीण कार्यबल के लिए साल में औसतन केवल 90-120 दिन ही रोजगार पैदा करता है।

विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका के लिए भारतीय डेयरी बाजार खोलने से भारत गहरे आर्थिक नुकसान में रहेगा और छोटे किसानों को नुकसान होगा क्योंकि अमेरिका में डेयरी उत्पादों पर औसत अंतिम कर लगभग 19 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह 64 प्रतिशत के करीब है। एक व्यापार नीति विश्लेषक के अनुसार, वर्तमान कर ढांचा भारतीय डेयरी व्यवसाय के लिए अच्छा है जो अमेरिका के साथ सौदा होने पर उलट सकता है। इसीलिए, सभी संभावनाओं को देखते हुए कहा जा रहा है कि ट्रंप का भारत दौरा सिर्फ एक फोटो-ऑप होने जा रहा है।”

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