शाहजहांपुर की अनोखी होली, जहां ‘लाट साहब’ पर बरसाए जाते हैं जूते, सौ साल से चली आ रही है परंपरा

लाट साहब के जुलूस में सबसे रोचक बात ‘लाट साहब' का चुनाव और रास्ते में उन्हें भैंसा गाड़ी पर बैठाकर घुमाने की परंपरा है। इसके इतिहास के बारे में जुलूस के आयोजकों का कहना है कि पहले इसे नवाब साहब का जुलूस कहा जाता था, लेकिन बाद में यह लाट साहब जुलूस बन गया।

शाहजहांपुर की होली जहां ‘लाट साहब’ पर जूते बरसाए जाते हैं
शाहजहांपुर की होली जहां ‘लाट साहब’ पर जूते बरसाए जाते हैं
user

Dw

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में होली के त्योहार को मनाने का अंदाज कुछ ऐसा है कि न चाहते हुए भी लोगों का ध्यान खिंच जाए। शाहजहांपुर जिले में पिछले करीब सौ साल से 'जूतामार' होली की एक अनोखी परंपरा चली आ रही है जिसमें करीब आठ किमी लंबा 'लाट साहब' का जुलूस निकलता है और रास्ते भर लाट साहब पर जूते बरसाए जाते हैं।

इस जुलूस में भारी भीड़ उमड़ती है, जिससे इसे अपना पूरा रास्ता तय करने में करीब तीन घंटे का समय लगता है। इस जुलूस में एक व्यक्ति को लाट साहब के रूप में भैंसा गाड़ी पर बैठाया जाता है और फिर उसे रास्ते भर जूते और झाड़ू मारते हुए पूरे शहर में घुमाया जाता है। इस दौरान शहर के आम लोग भी लाट साहब को जूते फेंक कर मारते हैं।

जुलूस में ‘लाट साहब' कौन हैं?

लाट साहब के जुलूस में सबसे रोचक बात है ‘लाट साहब' का चुनाव और रास्ते में उन्हें भैंसा गाड़ी पर बैठाकर घुमाने की परंपरा। लाट साहब जुलूस के आयोजकों का कहना है कि पहले इसे नवाब साहब का जुलूस कहा जाता था, लेकिन बाद में यह लाट साहब जुलूस बन गया।स्थानीय लोगों के मुताबिक, इस जूलूस की परंपरा अठारहवीं शताब्दी में शुरू हुई लेकिन बाद में अंग्रेजों के शासन काल में इस जुलूस का रूप विकृत हो गया और यहां की होली 'जूता मार होली' में बदल गई।

हालांकि इस बदलाव के पीछे भी एक रोचक कहानी है। जूता मार होली के संयोजक संजय वर्मा बताते हैं कि इस बदलाव के पीछे अंग्रेजों के प्रति नफरत थी और भैंसा गाड़ी पर बैठे व्यक्ति को लाट साहब नाम देकर उसके ऊपर जूते और झाड़ू मारने की परंपरा अंग्रेजों के प्रति नफरत का प्रतीक है।


दरअसल, शाहजहांपुर शहर नवाब बहादुर खान ने बसाया था। जानकार बताते हैं कि इस वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान पारिवारिक विवादों के चलते फर्रुखाबाद चले गए थे। 21 वर्ष की उम्र में साल 1729 में वे शाहजहांपुर लौटे। उनकी वापसी के बाद जब पहली होली आई तो दोनों समुदायों के लोग उनसे मिलने के लिए महल के पास खड़े हो गए। नवाब साहब ने भी उनके साथ होली खेली। उत्साहित लोगों ने नवाब को ऊंट पर बिठाकर शहर का एक चक्कर लगाया और उसके बाद तो यह शाहजहांपुर की होली का हिस्सा बन गया।

लेकिन साल 1858 में बरेली के सैन्य शासक खान बहादुर खान के सैन्य कमांडर मरदान अली खान ने हिंदुओं पर हमला कर दिया, जिसमें कई लोग मारे गए। इससे शहर में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया। बताया जाता है कि इस हमले के पीछे अंग्रेजों की अहम भूमिका थी। इस घटना ने स्थानीय लोगों में अंग्रेजों के प्रति इतना गुस्सा भर दिया कि नवाब साहब का नाम बदलकर 'लाट साहब' कर दिया गया और लाट साहब को घोड़े या ऊंट पर नहीं बल्कि भैंसा गाड़ी पर बैठा कर जुलूस निकाला जाने लगा। और यहीं से लाट साहब पर जूते बरसाने की परंपरा भी शुरू हुई जो एक तरह से अंग्रेजों के प्रति स्थानीय लोगों के गुस्से और नफरत को जाहिर करने का तरीका था।

जूतों की माला

संजय वर्मा बताते हैं, "होली के दिन लाट साहब को जब भैंसा गाड़ी पर बैठाकर जुलूस निकलता है तो उससे पहले लाट साहब को हेलमेट पहनाया जाता है। उनके सेवक बने दो लोग उन्हें झाड़ू से हवा करते हैं और लाट साहब पर जूते बरसाते हैं। हालांकि अब तो जूते सिर्फ छुआए जाते हैं, मारे नहीं जाते लेकिन आम पब्लिक जरूर जूते फेंकती रहती है। ये जूते जुलूस में चल रहे किसी को भी लग सकते हैं, लेकिन होली का त्योहार है, कोई बुरा नहीं मानता। इस दौरान लाट साहब जूतों की माला भी पहने रहते हैं। इस जुलूस को शाहजहांपुर की कई गलियों से होकर निकाला जाता है और जब यह जुलूस कोतवाली पहुंचता है तो वहां कोतवाल लाट साहब को सलामी देते हैं।”

इस कार्यक्रम के संयोजक संजय वर्मा डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, "जुलूस में जिस व्यक्ति को लाट साहब बनाकर बग्घी पर बैठाया जाता है उसे हम लोग पूरी सुरक्षा में रखते हैं और उसका नाम और पहचान सब कुछ गोपनीय रखा जाता है। यहां तक कि प्रशासन और पुलिस वालों को भी उसकी जानकारी नहीं दी जाती है। जो व्यक्ति लाट साहब बनता है उसे कमेटी की ओर से करीब 25 हजार रुपये दिए जाते हैं लेकिन आम लोग भी उसको दिल खोलकर इनाम देते हैं। एक हफ्ते पहले से ही वो हम लोगों की सुरक्षा में रहते हैं और उनका खूब सत्कार किया जाता है।”

संजय वर्मा कहते हैं, "यह ज़रूरी नहीं है कि लाट साहब किसे बनाया जाएगा लेकिन जिसे भी लाट साहब के रूप में बग्घी पर बैठाते हैं उसकी पहचान सार्वजनिक नहीं की जाती है। यह भी जरूरी नहीं है कि लाट साहब शाहजहांपुर का ही होगा, बल्कि वह शहर से बाहर का भी हो सकता है और अक्सर शहर से बाहर के ही किसी व्यक्ति को बनाया भी जाता है। पहचान इसीलिए गुप्त रखी जाती है ताकि बाद में उसका मजाक न उड़ाया जा सके।


सांप्रदायिक सौहार्द की कोशिश

संजय वर्मा कहते हैं कि वो करीब 25 साल से इस आयोजन समिति में हैं और तब से अब तक कभी कोई सांप्रदायिक घटना नहीं हुई। पुलिस-प्रशासन भी ऐसी किसी घटना से इनकार करता है। लेकिन स्थानीय लोगों के मुताबिक, ऐसा कई बार हुआ है कि कुछ शरारती लोगों ने भीड़ का फायदा उठाते हुए कभी मस्जिद पर रंग डाल दिया या फिर जानबूझकर किसी के ऊपर जूता फेंक दिया जिससे विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गईय़ हालांकि ऐसा कोई भी विवाद कभी किसी सांप्रदायिक विवाद की शक्ल नहीं लेने पाया।

जुलूस के दौरान सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने न पाए, इसके लिए पुलिस और प्रशासन की तरफ से हर साल रास्ते में पड़ने वाले धर्मस्थलों, खासकर मस्जिदों और मजारों को प्लास्टिक और तिरपाल से ढंक दिया जाता है और जुलूस के रास्ते में पुलिस बलों की तैनाती की जाती है। जुलूस के रास्ते में छह बड़ी मस्जिदें हैं। इसके अलावा कई छोटी मस्जिदें और कुछ मजार भी रास्ते में पड़ती हैं।

हर धर्म के लोग करते हैं सहयोग

शाहजहांपुर के अपर जिला मजिस्ट्रेट (प्रशासन) संजय पांडेय बताते हैं, "पिछले तीन-चार साल से एहतियात के तौर पर ऐसा किया जा रहा है। जुलूस के रास्ते में आने वाली करीब दो दर्जन मस्जिदों और मजारों को प्रशासन अपने खर्च पर ढंक देता है ताकि किसी तरह से कोई माहौल खराब न होने पाए। जुलूस में तमाम असामाजिक तत्व भी हो सकते हैं, इसलिए इन्हें ढंक दिया जाता है ताकि वो रंग या फिर कुछ और न फेंकने पाएं। हालांकि कभी यहां जुलूस की वजह से कोई तनाव नहीं हुआ है और न ही कोई ऐसी घटना हुई है। करीब एक महीना पहले से ही हम लोग यहां पीस कमेटी की बैठकें करके जुलूस को सकुशल निकालने की तैयारी कर लेते हैं। स्थानीय लोग खुद भी काफी सहयोग करते हैं।"

डीडब्ल्यू से बातचीत में एडीएम प्रशासन संजय पांडेय कहते हैं, "जुलूस तीन थाना क्षेत्रों से होकर गुजरता है। दरअसल, दो जुलूस होते हैं- एक छोटे लाट साहब का जो करीब डेढ़ किमी तक निकलता है और दूसरा है बड़े लाट साहब का जो करीब आठ किमी के रास्ते से होकर जाता है। जिन थाना क्षेत्रो से जाता है वहां पीस कमेटी की बैठकें करके सौहार्द्र बनाए रखने की कोशिशें की जाती हैं। जैसा चाहते हैं, जो सुविधाएं चाहते हैं, जो सुरक्षा चाहते हैं वो सब मुहैया कराई जाती है। पूरे क्षेत्र को सात जोन और 13 सेक्टर्स में बांटते हैं जहां मजिस्ट्रेट तैनात रहते हैं। संवेदनशील जगहों पर अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था रखते हैं। एकाध बार छिटपुट शरारतपूर्ण घटनाओं को छोड़कर कभी कोई दिक्कत नहीं हुई है। मुस्लिम समुदाय के लोग तो खुद भी अपनी छतों से फूलों की बारिश करते हैं।”

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia