उन्नाव की बेटी के आखिरी शब्द: ‘मुझे जलाने वालों को किसी भी हाल में मत छोड़ना, मैं मरना नहीं चाहती, मुझे जीना है’

दरिंदगी की शिकार एक और बेटी आखिरकार जिंदगी की जंग हार गई। उन्नाव रेप पीड़िता ने 44 घंटे तक मौत से लड़ने के बाद शुक्रवार रात 11: 40 बजे सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया। उन्नाव की बेटी को न बचाने का गम सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टरों के चेहरे पर भी दिख रहा था।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

दरिंदगी की शिकार एक और बेटी आखिरकार जिंदगी की जंग हार गई। उन्नाव रेप पीड़िता ने 44 घंटे तक मौत से लड़ने के बाद शुक्रवार रात 11: 40 बजे सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया। उन्नाव की बेटी को न बचाने का गम सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टरों के चेहरे पर भी दिख रहा था। पीड़िता की हालत देख डॉक्टरों की आंखों में भी आंसू थे। उन्हें गम इस बात का भी था कि पूरी मेहनत के बाद भी उसे जिंदगी न दे सके। सफदरजंग अस्पताल से पीड़िता के शव को अब उन्नाव लाया जा रहा है। जहां उसका अंतिम संस्कार किया जाएगा

बर्न यूनिट के प्रमुख डॉ. शलभ और चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सुनील गुप्ता ने बताया कि 90 फीसदी जलने के कारण पीड़िता के शरीर से काफी तरल पदार्थ बह चुका था। पीड़िता की हालत इतनी खराब थी कि वह दो शब्द बोलने के बाद ही बेहोश हो जाती थी। पीड़िता के कई महत्वपूर्ण अंग शाम तक काम कर रहे थे लेकिन लगातार उसकी हालत खराब हो रही थी।


डॉक्टरों को जिस बात का सबसे ज्यादा डर था वहीं हुआ भी। दरअसर उन्हें पीड़िता में सबसे ज्यादा संक्रमण फैलने का डर था और वहीं ऐसा हुआ भी। उसके शरीर में संक्रमण इतनी तेजी से फैला कि उसे रोकना मुमकिन नहीं रहा। डॉक्टरों ने पहले ही ये बता दिया था कि अगर पीड़िता के शरीर में संक्रमण फैलने लगा तो उसे रोकना मुश्किल हो जाएगा। डॉक्टरों की मानें तो बर्न केस में ज्यादातर मरीज की मौत संक्रमण फैलने के चलते हो जाती है।

बता दें कि उन्नाव रेप पीड़िता का इलाज पहले लखनऊ में चल रहा था, लेकिन हालत गंभीर होने पर उसे एयरलिफ्ट कर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। रेप पीड़िता 90 प्रतिशत से ज्यादा जल चुकी थी ऐसे में उसके जिंदा बचने की उम्मीद भी कम ही थी। हालांकि वो गुरुवार रात 9 बजे तक होश में थी, कहती रही- मुझे जलाने वालों को किसी भी हाल में मत छोड़ना।


ऐसे केस में 72 शुरुआत के 72 घंटे बहुत ही अहम होते हैं। सफदरजंग अस्पताल में बर्न और प्लास्टिक विभाग के एचओडी डॉ. शलभ कुमार के मुताबिक इस तरह की घटनाओं में शुरुआत के 72 घंटे काफी अहम होते हैं। अगर तीन दिन ठीक से निकल जाते तो काफी हद तक पीड़िता को बचाया जा सकता था। लेकिन ऐसा हो न सका और उन्नाव की बेटी ने 44 घंटे में ही दम तोड़ दिया।

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Published: 07 Dec 2019, 12:56 PM