उत्तर प्रदेश: शर्तिया बछिया पैदा करने की योजना फ्लॉप, अब कृत्रिम गर्भाधान से दूध की गंगा बहाने का ढिंढोरा

करोड़ों खर्च के बाद भी शर्तिया बछिया पैदा होने की योजना पहले ही हो चुकी है फ्लॉप, अब चल रहा कृत्रिम गर्भाधान का नया कार्यक्रम

प्रतीकात्मक फोटो
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के संतोष

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार हर कार्यक्रम को इवेंट के जरिये मीडिया हाइप देने की कोशिश करती है। ताजा मामला गायों और भैसों के कृत्रिम गर्भाधान (एआई) अभियान का है। पशुपालन विभाग में न पर्याप्त चिकित्सक हैं, न कर्मचारी और न ही फंड लेकिन सरकार ने 100 दिनों में 75 लाख पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान का अभियान 15 नवंबर को शुरू कर दिया है जो 25 फरवरी तक चलेगा।

इससे पहले सरकार ने गोवंशीय पशुओं में वर्गीकृत वीर्य (सेक्स्ड सीमेन) के उपयोग से शर्तिया बछिया पैदा करने की योजना शुरू की थी। वह फ्लॉप ही रही है। यह तब है जबकि योजना का लाभ गिनाकर सरकार करोड़ों रुपए की सब्सिडी दे रही है। दावा किया जा रहा है कि सेक्स्ड सीमेन से गर्भाधान कराने पर बछिया का ही जन्म होगा और इससे दूध की किल्लत तो दूर होगी ही, आवारा पशुओं की समस्या भी काफी कम हो जाएगी क्योंकि बछड़े होंगे नहीं, तो बिना उपयोग वाले बैलों को खुले में छोड़ देने की जरूरत ही नहीं होगी।

उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद ने 3 लाख से अधिक गोवंशीय में सेक्स्ड सीमेन से बछिया पैदा करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन मुश्किल से 18 हजार गोवंशीय पशुओं का ही कृत्रिम गर्भाधान हुआ। गोरखपुर मंडल के चार जिलों में 16,920 कृत्रिम गर्भाधान का लक्ष्य था, पर सिर्फ 1,298 का ही सेक्स्ड सीमेन से गर्भाधान हुआ। इनमें से मुश्किल से 17 फीसदी मामलों में ही बछिया ने जन्म लिया जो सामान्य प्रक्रिया से भी आधा है।

पशु चिकित्सक डॉ. आलोक सिन्हा का कहना है कि 'अमेरिका की एबीएस इंडिया कंपनी से सीमेन की खरीद हो रही है। चिकित्सकों को पता ही नहीं है कि सीमेन कितनी मात्रा में किस समय डालना है।' योजना के फ्लॉप होने की एक और वजह प्रति गर्भाधान लिया जाने वाला शुल्क है। दरअसल, एक बार सीमेन से गर्भाधान का खर्च 1,200 रुपये आता है। सरकार 900 रुपये की सब्सिडी देती है और 300 रुपये बतौर शुल्क किसान को देना होता है।


बाराबंकी के किसान जयेश वर्मा का कहना है कि 'कितनी बार सीमेन डालने के बाद गर्भाधान होगा, इसकी गारंटी नहीं है। तीन बार प्रक्रिया पूरी होने के बाद गाय का गर्भाधान हुआ। इसमें 900 रुपये शुल्क के साथ 600 रुपये अतिरिक्त खर्च हो गए।' अधिकतर किसान इस किस्म का आधा खर्च करने के लिए तैयार ही नहीं हैं।

अब इस ताजा कृत्रिम गर्भाधान अभियान की बात। अभियान की शुरुआत करते हुए पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह ने बाराबंकी में दावा किया कि '100 दिनों में 75 लाख गायों और भैंस का कृत्रिम गर्भाधान होगा। इस तरह इसी साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किसानों की आय दोगुनी करने का सपना पूरा होगा। सरकार सेक्स्ड सीमेन की डोज अब 300 रुपये की जगह 200 रुपये में देगी। सरकार पशुमित्र, यानी पैरावेट को कृत्रिम गर्भाधान के लिए मानदेय एडवांस में देगी।'

अभियान की डिजाइन करने वालों में शुमार पशुधन विकास बोर्ड के कार्यकारी अधिकारी अरविंद सिंह का दावा है कि 'प्रदेश में अभी 90 लाख लीटर प्रति दिन दूध का उत्पादन है जो अभियान के बाद 150 लाख लीटर पहुंच जाएगा।' पशु चिकित्सक डॉ. संजय कुमार का कहना है कि 'गोकुल मिशन के तहत होने वाले कृत्रिम गर्भाधान का उद्देश्य देसी प्रजाति की गायों को प्रमोट करना है। इससे गिर, साहीवाल, मुर्रा भैंस की प्रजाति बढ़ेगी।'

लेकिन इसमें पहले से ही कई रुकावटें हैं। सरकार का दावा था कि प्रदेश के 32 जिलों में पशु बाजार 15 नवंबर से लगने लगेंगे लेकिन ऐसा होता अब तक तो नहीं दिख रहा है। खुद सरकार ने ही पशुओं में लंपी रोग के खौफ में पशु बाजार और हाट बाजार पर प्रतिबंध लगा रखे हैं। कृत्रिम गर्भाधान की जिम्मेदारी 22,000 पशु चिकित्सक, पशुधन प्रसार अधिकारी, फार्मासिस्ट और पैरावेट्स के जिम्मे है। यदि ये सभी बिना बीमार हुए और अवकाश के दिन भी इस अभियान में शामिल हों, तो एक व्यक्ति को 100 दिनों में 340 पशुओं का गर्भाधान कराना होगा।


यह कितना मुश्किल है, इसे ऐसे समझें। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में 200 मेडिकल स्टाफ के भरोसे 2 लाख कृत्रिम गर्भाधान का लक्ष्य रखा गया है। यह तब ही पूरा होगा जब पशु चिकित्सक और पशुधन प्रसार अधिकारी प्रतिदिन 10 से 15 कृत्रिम गर्भाधान करें। इसके साथ ही फर्मासिस्ट और पशु मित्र भी प्रतिदिन 15 से 20 गर्भाधान करें।

एक प्रमुख दिक्कत और है। पशु चिकित्सक डॉ. संजय भाटिया का कहना है कि 'गायों और भैसों में कृत्रिम गर्भाधान तभी संभव है जब पशु हीट हो। दोनों में ईस्ट्रस साइकिल (गाय या भैंस का गर्म होना ) 21 से 22 दिनों का होता है। गाय में 12 से 18 घंटे और भैंस में 18 से 24 घंटे के भीतर गर्भाधान हो जाना चाहिए।'

पेंच यही नहीं है। कृत्रिम गर्भाधान से पहले तय करना होगा कि गाय या भैंस की ईयर टैगिंग है या नहीं। यदि यह नहीं है तो पशु चिकित्सक या पशु मित्र को पशु के कान में 12 अंकों वाला बार कोड पहले लगाना होगा, तब ही पशु का डिटेल पोर्टल पर दर्ज होगा। यह ब्योरा दर्ज नहीं हुआ, तो पशु मित्र को 50 रुपये का मानदेय भी नहीं मिलेगा।

पशु मित्र रमेश कुमार मौर्या का कहना है कि 'सरकार एक गर्भाधान करने पर 50 रुपये देगी। सब कुछ ठीक है तो एक कृत्रिम गर्भाधान करने में 25 से 30 मिनट लगते हैं। यह तभी संभव है जब गाय या भैंस हीट हो। गर्भाधान की डिमांड गाय या भैंस करेगी। कोई आदमी या सिस्टम नहीं कर सकता है। ज्यादातर किसानों के पास एक से लेकर तीन पशु ही हैं। वहीं एक गांव से दूसरे गांव तक जाने में एक से डेढ़ घंटे लग जाते हैं। साइकिल से यह काम संभव नहीं है। पूरे दिन दौड़ने के बाद पेट्रोल खर्च भी नहीं निकल रहा है।'

पैरावेट राज किशोर यादव एक अन्य समस्या बताते हैं कि 'सरकारी सप्लाई में आने वाले सीमेन में ग्रेड नहीं होता है। ऐसे में जागरूक पशुपालक इससे कृत्रिम गर्भाधान नहीं कराते हैं। प्राइवेट में अच्छी क्वालिटी का सीमेन और लिक्विड नाइट्रोजन मिलता है जिससे गर्भाधान की संभावना भी अधिक होती है।'


वैसे, अभियान के लिए बड़ी बाधा सरकार ने पहले से खुद ही तैयार कर रखी है। गोरखपुर के एनेक्सी भवन में दुग्ध विकास, मत्स्य विभाग, पशुधन के मुख्य सचिव डॉ. रजनीश दूबे की मौजूदगी में 12 नवंबर को जब बैठक हो ही रही थी, तब ही पैरावेट्स ने बकाया भुगतान को लेकर विरोध दर्ज कराया। पशु मित्र वेलफेयर एसोसिएशन के बुंदेलखंड अध्यक्ष राजेश सिंह पटेल का कहना है कि 'जोखिम वाले एक गर्भाधान के लिए 50 रुपये मिलने हैं। लेकिन पिछले कुछ महीनों से करोड़ों रुपये के बकाये का भुगतान नहीं किया गया है।'

वहीं पैरा वेटनरी वर्कर संघ, अयोध्या के महामंत्री हरिशंकर वर्मा का कहना है कि 'वर्ष 2016 में पैरावेट्स के भुगतान के लिए 20 करोड़ रुपये जारी हुए थे। इनमें से 13 करोड़ रुपये सिर्फ सोनभद्र और हरदोई में बांट दिए गए जबकि 7 करोड़ अब भी सरकारी खजाने में ही हैं। सरकार के पास पशुओं का यूनीक आईडी नंबर से लेकर पशुपालकों का आधार नंबर कम्प्यूटर में है। कोई आश्चर्य नहीं कि जिम्मेदार कम्प्यूटर में गोलमाल कर लक्ष्य पूरा कर दें।'

पशुधन प्रसार अधिकारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष नितिन सिंह कहते हैं कि 'राष्ट्रीय कृषि आयोग के अनुसार, 5,000 पशुओं पर एक पशुचिकित्सालय का मानक है लेकिन यूपी में 21,000 पशुओं पर भी एक चिकित्सालय नहीं है। प्रदेश में 205.66 लाख गोवंशीय, 306.25 लाख महिषवंशीय के साथ लाखों अन्य पशुओं का इलाज भगवान भरोसे ही हो रहा है।'

वैसे, एक और बात। देश में दूध के उत्पादन में पहले नंबर पर होने का दावा करने वाले यूपी में पिछले कुछ दिनों से अमूल, पराग और ज्ञान जैसी नामी कंपनियों के मक्खन गायब हैं। घी, क्रीम से लेकर चीज की भी किल्लत है।

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