उत्तर प्रदेश: चुनावी समर में स्वामी प्रसाद मौर्य के अकेले उतरने से कितने बदलेंगे समीकरण!

सपा-बसपा में बारी-बारी से रहे स्वामी प्रसाद मौर्य यूपी की राजनीति के चर्चित चेहरा हैं। अब उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव में अकेले उतरने का ऐलान कर दिया है। इससे राज्य के सियासी समीकरणों पर कितना असर होगा!

स्वामी प्रसाद मौर्य
स्वामी प्रसाद मौर्य
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डॉ. उत्कर्ष सिन्हा

कुछ महीने पहले तक अपने बयानों से उत्तर प्रदेश की राजनीती में सुर्खियां बटोरने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या आज अकेले पड़े दिखाई दे रहे हैं। स्वामी प्रसाद की राजनितिक स्थिति इस वक्त तेज हवाओं के बीच घुमते पत्ते सरीखी दिख रही है। वैसे तो उन्होंने अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, लेकिन पूरी तरह यह भी साफ नहीं है वे इस ऐलान पर बने रहेंगे या नहीं या कोई और फैसला लेंगे।

स्वामी प्रसाद मौर्य बीते कोई चार दशक से सियासत के मैदान में हैं। 1980 में लोकदल से अपनी सियासी पारी का आगाज करने वाले मौर्य ने बीते चार दशको में बीएसपी, बीजेपी और समाजवादी पार्टी तक की यात्रा की। और अब राष्ट्रीय शोषित समाज के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली है। इससे पहले बीते आठ साल के दौरान स्वामी प्रसाद ने तीन ठिकाने बदले है और अब जब उन्होंने अपनी पार्टी बना ली है तो वर्तमान राजनीती के खांचे में उनकी जगह नहीं बन पा रही।     

अब तक के सियासी सफर में सत्ता सुख से लेकर नेता प्रतिपक्ष तक के ओहदे पर आसीन रहे स्वामी प्रसाद मौर्य बीएसपी में प्रदेश अध्यक्ष, सरकार में मंत्री, विधान परिषद में नेता सदन तक रहे तो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तक का अहम ओहदा पाया। 2007 में तो चुनाव हारने के बाद भी मायावती ने उन्हें सरकार में राजस्व मंत्री बनाया और विधान परिषद भेजा। हालांकि बाद में उन्होंने विधानसभा उपचुनाव में कुशीनगर से जीत हासिल की।

वर्षों बीएसपी के साथ रहने के बाद जब वे उससे अलग हुए तो उन्होंने मायावती पर विचारधारा से भटकने और पैसा वसूली जैसे तमाम आरोप लगाये। इसी तरह समाजवादी पार्टी छोड़ी तो उन्होने पार्टी में अपनी उपेक्षा का आरोप लगा दिया। वैसे सपा से विदाई के पीछे उनके विवादित बयान मुख्य कारण माने जाते हैं। मनुवाद के विरोध में स्वामी इतने आगे निकल गए कि उन्होंने राम और तुलसी दास के ऊपर भी तीखे सवाल उठा दिए। इसके बाद अयोध्या के हनुमान गढ़ी के महंत के साथ उनकी हाथापाई तक हुई और हिंदूवादी संगठनों ने स्वामी के सर पर इनाम भी रख दिया।


इस विवाद के बीच सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की चुप्पी स्वामी को खलने लगी, साथ ही सपा के बुछ ब्राह्मण नेताओं ने भी उनकी आलोचना कर दी। हालांकि सपा से इस्तीफा स्वामी प्रसाद ने जब सपा से इस्तीफ़ा दिया तब रामगोविंद चौधरी जैसे वरिष्ठ सपा नेताओं ने उनके पक्ष में पत्र भी लिखे, मगर स्वामी ने अपनी राह अलग चुन ली।

स्वामी के बयानों का असर उनकी बीजेपी सांसद बेटी पर भी पड़ा, जिनका टिकट बीजेपी ने इस बार काट दिया है। दूसरी तरफ उनके बेटे उत्कृष्ट मौर्य दो बार चुनावी मैदान में असफल हो चुके हैं। ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य के पूरे परिवार के राजनितिक अस्तित्व पर फिलहाल सवालिया निशान लगा हुआ है।

शुरु में तो स्वामी प्रसाद मौर्य ने खुद को इंडिया अलाएंयस का हिस्सा बताया था, लेकिन बाद में खुद ही उससे अलह होने का ऐलान करते हुए अकेले चुनाव में उतरने की घोषणा कर दी। उनका आक्षेप है कि इंडिया अलायंस की तरफ से उन्हें कोई माकूल जवाब नहीं मिला। इसके चलते उन्होंने फिलहाल दो सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं जिनमें से एक कुशीनगर सीट से खुद का चुनाव लड़ने की बात कही है।

लेकिन इस सबके बीच यह भी रोचक है कि हाल के दिनों में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मौर्य के खिलाफ कोई कड़ी टिप्पणी नहीं की है और न ही कोई बयान दिया है। ऐसे में कुछ राजनितिक पंडितो का इशारा ये भी है कि यदि स्वामी प्रसाद मौर्या कुशीनगर सीट से  दावेदारी करते हैं तो परोक्ष रूप से उन्हें गठबंधन का सहयोग मिल सकता है। कारण है कि उत्तर प्रदेश की सियासत के केंद्र में आ चुके पिछड़े वर्ग के वोटरों के हिस्से में स्वामी प्रसाद का असर रहा है और इन परिस्थितियों में ऐसी संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता।

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