‘शहरी नक्सली’ का ढिंढोरा, दलित आंदोलन से ध्यान भटकाने की साजिश: जिग्नेश मेवाणी 

दलित मोदी सरकार के निशाने पर शुरू से रहे हैं और यही कारण है कि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में दलितों पर हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। यह कहना है दलित कार्यकर्ता और गुजरात के वडगाम से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी का।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

दिल्ली में हुए 'यूथ की आवाज' कार्यक्रम में शामिल होने आए जिग्नेश मेवाणी का कहना है कि, “मौजूदा केंद्र सरकार, सांप्रदायिक, जातिवादी, फासीवादी, पूंजीवादी और नाकारा है।" उन्होंने कहा कि बीते चार साल में दलितों पर अत्याचार में बेतहाशा वृद्धि हुई है।

आईएएनएस से बातचीत में जिग्नेश मेवाणी ने कहा कि, "दलितों पर बीते चार वर्षो में जितने अत्याचार हुए हैं, उतने पहले कभी देखने को नहीं मिले। मोदी राज में दलितों पर अत्याचार बढ़ा है। ऊना के दलितों को न्याय नहीं मिला, रोहित वेमुला को न्याय नहीं मिला। सहारनपुर के पीड़ितों को न्याय नहीं मिला। इन्होंने चंद्रशेखर आजाद रावण को जेल में डाल दिया।"

मेवाणी ने कहा, "ये मनुस्मृति को जलाने के बजाय संविधान को जला रहे हैं। एट्रोसिटी के कानून को बिगाड़ रहे हैं। संविधान से छेड़छाड़ कर रहे हैं। अंबेडकर की प्रतिमाएं तोड़ी जा रही हैं.,.दलित तो नाराज होंगे ही।"

इस सवाल पर कि जिग्नेश भी तो दलित कार्ड खेल रहे हैं, उन्होंने कहा कि, "हां, रामविलास पासवान जैसे लोग आरोप लगाते हैं कि देश में जाति कार्ड विशेष रूप से दलित कार्ड खेला जा रहा है, लेकिन मैं साफ कर दूं कि कोई दलित कार्ड नहीं खेल रहा है, जो लोग पीड़ित हैं, वे आवाज उठा रहे हैं। यह उनकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। मगर सरकार ने विरोध की हर आवाज को दबाने की सोच रखी है और दबाने की कोशिश भी कर रही है।"

इन दिनों नया शब्द 'शहरी नक्सली' सुर्खियों में है, इसका जिक्र करने पर जिग्नेश कहते हैं, "यह टर्म शहरी पागलों ने ही ईजाद की है। यह दलित आंदोलन को पटरी से हटाने की साजिश है। इंसानों के हक के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं को डराने और मोदी जी के लिए सहानुभूति हासिल करने की कोशिश है।"

बड़ी संख्या में युवाओं को राजनीति से जोड़ने का आह्वान करते हुए जिग्नेश ने कहा कि वह खुद को युवा नेता कहलवाना पसंद करते हैं और उनका मानना है कि युवा बेहतर तरीके से राजनीति से जुड़ें, तो देश और राजनीति की दिशा बदल सकती है।"

आपकी नजर में युवा होने का पैमाना क्या है? इस सवाल का सीधा जवाब न देते हुए उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि किसी नेता को उसके काम के लिए तरजीह दी जानी चाहिए, लेकिन उम्र का फैक्टर भी मायने रखता है। युवाओं में जोश होता है, बेहतर काम करने की लगन होती है, वे मेहनती होते हैं। इसलिए उम्र को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।"

मेवाणी कहते हैं, "यूथ की आवाज पूरी दुनिया में गूंजनी जरूरी है। युवा वर्ग को अपनी बात रखने का मौका दिया जाना चाहिए।"

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