उम्मीद और जीवन भर की बचत छिन जाने से अमेरिका से निर्वासित लोग हताश, सपना दुःस्वप्न में बदला

उज्ज्वल भविष्य और बेहतर जीवन का सपना संजोए ये युवा अमेरिका से निकाले जाने के बाद चेहरे पर मायूसी और टूटे सपनों के साथ अपने घर लौट आए हैं। अमेरिका में बसने का उनका सपना उस समय दुःस्वप्न में बदल गया, जब अमेरिका ने उनके हाथों में हथकड़ी लगा देश से निकाल दिया।

उम्मीद और जीवन भर की बचत छिन जाने से अमेरिका से निर्वासित लोग हताश, सपना दुःस्वप्न में बदला
उम्मीद और जीवन भर की बचत छिन जाने से अमेरिका से निर्वासित लोग हताश, सपना दुःस्वप्न में बदला
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नवजीवन डेस्क

बेहतर जिंदगी का सपना लेकर और अपने घर बार छोड़कर अमेरिका जाने वाले भारतीय प्रवासी अपने सपनों के टूटने, भारी कर्ज और ट्रैवल एजेंटों द्वारा ठगे जाने की कहानियों के साथ हथकड़ी में बंधे बुधवार को देश वापस लौट आए। उम्मीद और जीवन भर की बचत छिन जाने से से ये निर्वासित लोग अब हताश हैं।

अमेरिकी सैन्य विमान से बुधवार को भारत लौटने के बाद ये निर्वासित अपना भविष्य अंधेरे में देख रहे हैं। अमेरिका से अवैध प्रवासी के तौर पर जिन 104 लोगों को निर्वासित कर भारत भेजा गया है उनमें पंजाब के 30 लोग शामिल हैं। होशियारपुर के दरापुर गांव के सुखपाल सिंह ने एक साल तक इटली में शेफ के रूप में काम करने के बाद अमेरिका जाने का फैसला किया था।

सुखपाल ने गुरुवार को बताया कि इटली में उन्हें और उनके दो दोस्तों को एक ट्रैवल एजेंट ने अमेरिका पहुंचाने का वादा किया और इसके लिए 30 लाख रुपये मांगे। सुखपाल ने अपनी जमा पूंजी और दोस्तों से उधार लेकर एजेंट को पैसे दिये। उसने बताया, ‘‘अमेरिका ले जाने के बजाय हमारे समूह को निकारागुआ ले जाया गया। वहां पहुंचते ही एजेंट के लोगों ने सभी के पासपोर्ट जब्त कर लिए और फिर हमारी खतरनाक यात्रा होंडुरास, ग्वाटेमाला और मैक्सिको होते हुए शुरू हुई।’’

उन्होंने बताया, "इस सफर में हमें 12 घंटे तक एक छोटी नौका में समुद्र पार कर मैक्सिको से अमेरिका की सीमा तक पहुंचाया गया। इस खतरनाक यात्रा के दौरान मेरे एक साथी की डूबने से मौत हो गयी।" सुखपाल ने कहा कि उन्होंने अपने परिवार को इस यात्रा के बारे में कुछ नहीं बताया था, और अमेरिका पहुंचकर उन्हें सरप्राइज देना चाहते थे।


उन्होंने कहा, "जैसे ही हम अमेरिका की सीमा पर पहुंचे, हमें अमेरिकी अधिकारियों ने पकड़ लिया और 12 दिनों तक एक हिरासत केंद्र में रखा।" उन्होंने कहा, "हिरासत केंद्र में हमें बुरा व्यवहार सहना पड़ा। हमें न तो कानूनी सहायता दी गई और न ही इमिग्रेशन अधिकारियों से मिलने का मौका मिला।" उन्होंने बताया, "खाने के नाम पर सिर्फ स्नैक्स और बीफ दिया जाता था। चूंकि मैं बीफ नहीं खाता, इसलिए सिर्फ स्नैक्स खाकर जिंदा रहा।"

इसके बाद कैदियों को हथकड़ी और बेड़ियों में बांधकर विमान में बिठाया गया और अमृतसर लाया गया। उन्होंने बताया, "फ्लाइट में हमें अपनी सीट से हिलने तक की इजाजत नहीं थी। वॉशरूम जाने पर भी सख्त पाबंदी थी। इसलिए मैंने मुश्किल से कुछ खाया या पिया।" उन्होंने बताया,"अमृतसर में फ्लाइट उतरने के बाद हमारी बेड़ियां खोली गईं और तब जाकर मुझे खाना मिला।"

गुरदासपुर के जसपाल सिंह को भी ट्रैवल एजेंट ने धोखा दिया। उन्होंने कहा, "मैंने अमेरिका जाकर अपने परिवार को अच्छी जिंदगी देने के लिए एजेंट को 40 लाख रुपये दिए थे, लेकिन मेरा सपना सीमा पर गिरफ्तारी के साथ ही खत्म हो गया।" जसपाल ने कहा, "मैंने एजेंट से वीजा सही प्रक्रिया से भेजने के लिये कहा था, लेकिन उसने मुझे धोखा दिया।" उन्होंने कहा, "मैं पिछले साल जुलाई में हवाई मार्ग से ब्राजील पहुंचा था और एजेंट ने भरोसा दिलाया था कि आगे की यात्रा भी फ्लाइट से होगी, लेकिन बाद में उसने मुझे गैरकानूनी तरीके से सीमा पार करने को मजबूर किया।"

इसी तरह एक अन्य निर्वासित अमृतसर के लालरू गांव के 22 वर्षीय प्रदीप सिंह को छह महीने तक कई देशों की यात्रा करने के बाद अमेरिका पहुंचते ही गिरफ्तार कर लिया गया। प्रदीप के माता-पिता ने उसे अमेरिका भेजने के लिए 41 लाख रुपये का कर्ज लिया था, लेकिन अब उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वह इसे कैसे चुकाएंगे।


उज्ज्वल भविष्य और बेहतर जीवन का सपना संजोए ये युवा अमेरिका से निकाले जाने के बाद चेहरे पर मायूसी और टूटे सपनों के साथ बेड़ियों में बंधे अपने-अपने घर लौट आए हैं। अमेरिका में बसने का उनका सपना उस समय दुःस्वप्न में बदल गया, जब अमेरिकी अधिकारियों ने उनके हाथों में हथकड़ी लगा देश से निकाल दिया।

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