उत्तराखंडः रोज नए घोटालों के आरोप में घिरते धामी, ऐसे ही नहीं है धुआं, कहीं तो लगी होगी आग
एक के बाद एक तमाम घोटालों और अनियमितताओं के सामने आने से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए खड़ी हुईं मुश्किलें।

जब पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, तो उन्होंने राज्य को भ्रष्टाचार-मुक्त बनाने का वादा किया था। लेकिन उन्होंने प्रदेश को इसकी ठीक उलटी दिशा में दौड़ा दिया। हालत यह है कि घोटाले उतने आम हो चुके हैं, जितने इस मौसम में होने वाले भूस्खलन।
ताजा मामला पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत से जुड़ा है। रावत ने आरोप लगाया है कि राज्य की बीजेपी सरकार में वन मंत्री रहते हुए उन्होंने पार्टी की संगठनात्मक गतिविधियों के लिए कराई गई 30 करोड़ की एफडी में एक करोड़ से ज्यादा का योगदान किया। रावत के मुताबिक, यह पैसा धामी के मुख्यमंत्री रहते हुए 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले खनन माफिया से इकट्ठा किया गया था। रावत का दावा है कि मानदंडों को ताक पर रखकर तुरत-फुरत खनन परमिट दिए गए। वह कहते हैःं ‘यह ऋषिकेश भूमि घोटाले जैसा है, जो रमेश पोखरियाल निशंक के मुख्यमंत्री रहते हुए हुआ था। उन्होंने हरिद्वार विकास प्राधिकरण (एचडीए) को भूमि आवंटन के लिए एक पत्र भेजा था। एचडीए ने फौरन रिपोर्ट तैयार की, जिसके बाद उसी दिन भूमि आवंटित कर दी गई।’ दूसरी ओर, उत्तराखंड के बीजेपी नेताओं का दावा है कि रावत ने ये आरोप सिर्फ इसलिए लगाए, क्योंकि उनके खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच चल रही है। रावत 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी छोड़ कांग्रेस में आ गए थे।
पहली बार पहाड़ों में मोदी विरोधी नारे गूंजे
इस बीच, धराली-हर्षिल में आपदा से निपटने के तरीके पर बीजेपी के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत ने खुलकर धामी की आलोचना की। धराली त्रासदी के पांच दिन बाद ग्रामीणों ने उन्हें मिले सिर्फ पांच हजार रुपये के मुआवजे के खिलाफ प्रदर्शन किया। बीते सालों में पहली बार यहां की घाटी में मोदी विरोधी नारे गूंजे। ग्रामीण ‘मोदी जी घाम तपो’ (मोदी द्वारा उत्तराखंड को सर्दियों में धूप सेंकने के लिए आदर्श जगह के रूप में प्रचारित करने का संदर्भ) और ‘केन्द्र सरकार मुर्दाबाद’ के नारे लगा रहे थे।
तेज होते बीजेपी विरोधी माहौल को देखते हुए राज्य के कई मंत्री मोदी-शाह से मिलने दिल्ली पहुंचे और धामी की तानाशाही कार्यशैली की शिकायत की। अपनी मुश्किलों का एहसास होने पर धामी ने आखिरकार मंत्रिमंडल के विस्तार का फैसला किया। मंत्रिमंडल में 12 मंत्री पद हैं।धामी ने पांच खाली रखे थे। उनके सात मंत्रियों में से कृषि और ग्रामीण कल्याण मंत्री गणेश जोशी पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मामला चल रहा है। हालांकि नैनीताल हाईकोर्ट ने मंत्रिमंडल को उनके खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया, लेकिन कार्रवाई नहीं होने पर मामला फिर हाईकोर्ट के पास पहुंच गया है।
एक और घोटाले में उलझे धामी
धामी एक और घोटाले में उलझे हैं। 21 अगस्त को 33 वर्षीय जितेंद्र सिंह ने खुदकुशी कर ली।सुसाइड नोट और वीडियो संदेश में सिंह ने बीजेपी नेता हिमांशु चमोली को अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया। सिंह ने चमोली पर एक प्लॉट को मंजूरी दिलाने के नाम पर 35 लाख रुपये लेने का आरोप लगाया। सुसाइड नोट में आरोप लगाया गया है कि सिंह को न जमीन मिली और न पैसे वापस हुए। धामी के दाहिने हाथ के तौर पर जाने जाने वाले चमोली ने खुद को मुख्यमंत्री का ओएसडी (विशेष कार्य अधिकारी) बताकर पैसे वसूले। फिलहाल चमोली को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ जांच शुरू कर दी गई है। इस बीच, मुख्यमंत्री कार्यालय ने खंडन किया है कि चमोली उनके कार्यालय में ओएसडी थे।
नैतिक पतनशीलता ने किया शर्मसार
जून में एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आई। बीजेपी की 37 वर्षीय नेता अनामिका शर्मा ने अपनी 13 वर्षीय बेटी को जबरन शराब पिलाई और अपने प्रेमी सुमित पटवाल और उसके सहयोगी को उससे बलात्कार करने दिया और उसने कथित तौर पर अपनी बेटी से कहा कि ‘यह सामान्य बात है’।
पुलिस अधिकारी कमल सिंह भंडारी ने मीडिया को बताया: ‘नाबालिग के साथ आठ बार सामूहिक बलात्कार हुआ और हर बार उसकी मां की मौजूदगी में। ऐसी पहली घटना जनवरी में एक कार के अंदर हुई थी। यह उत्पीड़न मार्च तक आगरा और वृंदावन के होटलों सहित कई जगहों पर जारी रहा। हरिद्वार के एक होटल में भी उसके साथ मारपीट की गई, जो अनामिका शर्मा और सुमीत पटवाल के नाम पर लीज पर था।’ जून में नाबालिग ने पिता को आपबीती सुनाई, जिन्होंने पुलिस को सूचना दी। रिसेप्शनिस्ट अंकिता भंडारी के हत्यारों को पकड़ने में पुलिस की नाकामी के बाद कांग्रेस ने इसे बीजेपी नेताओं की नैतिक पतनशीलता का जीता-जागता उदाहरण बताया है।
पंचायत चुनाव में हुई खुली गुंडागर्दी
हाल ही में हुए पंचायत चुनावों के दौरान पांच कांग्रेस उम्मीदवारों के अपहरण के मामले में भी उत्तराखंड पुलिस की निष्क्रियता साफ दिखाई दी। नैनीताल हाईकोर्ट में दायर याचिका के साथ प्रस्तुत वीडियो में चुनाव के दिन तलवारधारी अपराधी एक मतदान केन्द्र के पास मंडराते दिखाई दे रहे हैं जो पांच जिला पंचायत सदस्यों को जबरन घसीट कर ले गए।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेन्द्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की दो सदस्यीय पीठ ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पी.एन. मीणा के तबादले का आदेश दिया। लेकिन जैसा कि राज्य में आम बात है, पांचों कांग्रेसी जिला पंचायत सदस्यों ने अपहरण का खंडन कर दिया। बहरहाल, भगवा पार्टी को चुनौती देने के लिहाज से असलहे की कमी नहीं, लेकिन प्रदेश कांग्रेस की ओर से उसे अब तक कोई वास्तविक चुनौती नहीं मिली है। प्रदेश कांग्रेस इस तरह निष्क्रिय है कि अब तक प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति तक नहीं कर पाई है।
जड़ तक सड़ांध
उत्तराखंड वन विभाग में बड़ा विवाद खड़ा हो गया जब मैगसेसे पुरस्कार विजेता आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने खुलासा किया कि मसूरी वन प्रभाग के 7,375 सीमा स्तंभ गायब हैं। अभी हल्द्वानी में मुख्य वन संरक्षक (योजना) के पद पर काम कर रहे चतुर्वेदी ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक समीर सिन्हा को तीखा पत्र लिखने का साहसिक कदम उठाया, जिसमें खास तौर पर मसूरी के रायपुर रेंज में वन भूमि पर व्यापक अतिक्रमण की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) की मांग की गई। उन्होंने डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) अमित कंवर और स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों पर अवैध कब्जे को बढ़ावा देने में मिलीभगत का भी आरोप लगाया। उन्होंने लिखा- ‘स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से ये अवैध कब्जे वर्षों से जारी हैं।’ उन्होंने आगाह किया कि अगर जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो ‘मसूरी वन प्रभाग का बचा हुआ वन क्षेत्र भी अतिक्रमणकारियों के हाथ चला जाएगा।’
अमित कंवर ने अपना बचाव करते हुए कहा- ‘जिन खंभों पर सवाल उठाया गया है, वे पूरे मंडल के हैं। ये दो जिलों टिहरी और देहरादून की छह रेंजों और 33 बीटों में फैले हैं। यह मुद्दा हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में सामने आया है और आंकड़े कई सालों के हैं। जल्द ही इस पर एफआईआर भी दर्ज की जाएगी।’ चतुर्वेदी का पत्र व्यवस्था की कड़ी आलोचना करता है और इस सवाल का जवाब मांगता है कि भ्रष्टाचार और अवैध संपत्ति अर्जित करने के आरोपी अधिकारियों को ‘ईमानदारी प्रमाणपत्र’ कैसे दिए जाते हैं और उन्हें ‘उत्कृष्ट’ प्रदर्शन करने वालों का दर्जा कैसे दे दिया जाता है।
कृत्रिम झील की क्या जरूरत
भारी बारिश, बार-बार होने वाले हिमस्खलन और मलबे की लहरों से इस अगस्त में दो झीलें बन गईं। एक हर्षिल में सेना शिविर के पास भागीरथी नदी पर जो तीन किलोमीटर तक फैली हुई है।और दूसरी यमुना नदी पर स्याना चट्टी में 1,200 फुट लंबी और 20 फुट गहरी। मानव निर्मित आपदाओं से त्रस्त और उफनती झीलों और नदियों से घिरे राज्य में यह चौंकाने वाला मामला है कि पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पौड़ी में सतपुली के पास न्यार नदी पर एक कृत्रिम झील विकसित करने पर जोर दे रहे हैं। मौजूदा जल संसाधनों के प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता को संबोधित करने के बजाय सरकार बेकार की परियोजनाओं पर पैसे झोंक रही है।
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