बनारस में परचे रद्द होने से भी मोदी की राह नहीं हुई आसान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नामांकन के दौरान उमड़ी भीड़ और बड़ी मात्रा में गुजरात से लाए गए गुलाब के गट्ठरों ने कुछ सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसे-ऐसे चेहरे यहां लोगों को उस दिन नजर आ रहे थे जिन्हें न तो पहले देखा गया था, न अब वे मिल रहे हैं।

सवाल तो इस पर भीः तेज बहादुर यादव ने बनारस में गठबंधन की ओर से नामांकन किया, तो पूरी बीजेपी  परेशान हो गई। यह सुरक्षा का झंडा उठाने वालों को सुरक्षाकर्मी रहे एक व्यक्ति की ओर से दी गई चुनौती थी। परचा खारिज होने के बावजूद तेज बहादुर झुके नहीं हैं।
सवाल तो इस पर भीः तेज बहादुर यादव ने बनारस में गठबंधन की ओर से नामांकन किया, तो पूरी बीजेपी परेशान हो गई। यह सुरक्षा का झंडा उठाने वालों को सुरक्षाकर्मी रहे एक व्यक्ति की ओर से दी गई चुनौती थी। परचा खारिज होने के बावजूद तेज बहादुर झुके नहीं हैं।
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हिमांशु उपाध्याय

दशाश्वमेध घाट की सीढ़ियों पर बैठी एक छोटी गोल की चर्चा को सही मानकर चलें तो लगता है, यहां बैठे बृजरमन शर्मा, नवेंदु प्रकाश, ज्योति चौबे, केशव केवट और कन्हैया सिंह की दृष्टि दूर तक जा रही है। वास्तव में मोदी के रोड-शो के जरिये शक्ति प्रदर्शन कर रहे संघ ने दोहरा निशाना साधाः एक, यहां लड़ाई एकतरफा बताने की कोशिश हुई; दो, उसने इस बात को भी आजमाया कि वह कितनी भीड़ जुटा सकता है।

लोग इस बात का उत्तर तलाश रहे हैं कि सभी मतदाता बीजेपी के खाते में हैं, तो बाकी राजनीतिक पार्टियों के लोग कहां गए। बौद्धिक तबके के लोग भीड़ की जुटान को सीधे-सीधे उपद्रव की आशंका से जोड़कर देख रहे हैं। दरअसल, संघ से जुड़े लोगों का भी मानना है कि गुजरात और बिहार ही नहीं, राजस्थान से भी लोग बुलाए गए। कई प्रांतों के संघ कार्यकर्ताओं को अनिवार्य रूप से मोदी के रोड-शो में शामिल होने को कहा गया था।


वजह भीहै। यह अब आम जानकारी है कि रोड-शो के दौरान मोदी पर बरसने वाली फूल की पंखुड़ियां किस तरह ट्रकों से बंडलों में ढोकर लाई गई थीं। अब तो उसके फोटो की सोशल मीडिया में भरमार है। जगह-जगह वे लोग खास तौर से तैनात किए गए थे जो लोकल नहीं थे, दूसरे राज्यों से आए थे। बीजेपी के स्थानीय नेता- कार्यकर्ता, एक तरह से, हतप्रभ हैं कि जिन कामों को वे बरसों से कर रहे थे, पता नहीं, किन लोगों ने उसे हथिया लिया। यहां रवींद्रपुरी के बीजेपी दफ्तर में तैनात लोगों के चेहरे पर शिकायती अंदाज के साथ असंतोष की शिकन देखी जा सकती है। नाम देने या बताने में गुरेज करने वाले ऐसे लोग खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं।

इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है जिसमें न्यूज चैनल से बातचीत करते एक खांटी बनारसी बुजुर्ग से जब पूछा जाता है कि बनारस के लिए मोदी ने क्या किया, तो वह ताव से कह रहे हैं, अइसन है, मोदी कुछ कइलन-वइलन नाहीं। खाली जुमला पढ़लन। बड़-बड़ बात के सिवा कछुओ नाहीं। इहे त हाल हौ मोदीक। (ऐसा है, मोदीने कुछ किया-विया नहीं। सिर्फ जुमले गढ़े। बड़ी-बड़ी बातों के सिवा कुछ नहीं। यही तो हाल है मोदी का)।


यहां के एक टीवी पत्रकार इसे दूसरे ढंग से समझाते हैं। वह कहते हैं कि मोदी का रोड शो कई चैनलों पर बिना विज्ञापन लगातार तीन घंटे तक चला। ऐसा कभी नहीं होता। हर दस सेकेंड के विज्ञापन पर बड़े चैनलों को कम-से-कम एक लाख रुपये मिलते हैं। आप सोच लीजिए, चैनलों पर नियमित विज्ञापन रोकने और रोड-शो को दिखाने के लिए कितने खर्च किए होंगे। वैसे, चैनल ही बता सकते हैं कि इनके लिए किस-किसने-कितने पैसे उन्हें दिए हैं।

इसमें शक नहीं कि बनारस में जीत के लिए सत्तापक्ष अंधाधुंध खर्चकर रहा है। फिर भी, सपा-बसपा-रालोद गठबंधन और कांग्रेस के नेता यह मानने के लिए तैयार नहीं कि बनारस में मोदी के लिए चुनाव का रास्ता निष्कंटक है। जिला कांग्रेस अध्यक्ष प्रजानाथ शर्मा कहते हैं, अबकी हमारी पूरी तैयारी है। बहुत मजबूती से लड़ेगी यहां कांग्रेस। जोश और आत्मविश्वास से लबरेज अजय राय को कांग्रेस ने फिर अपना उम्मीदवार बनाया है। गठबंधन के सतीश की राय में भीड़ पर जाने की जरूरत नहीं है। वह दार्शनिक अंदाज में अपनी बात रखते हैं, साहब, भीड़ का कोई आचरण नहीं होता। उसके चरण किस तरफ जाएंगे, कोई नहीं जानता। हां, गठबंधन के सालिड मतदाता हैं जो कहीं जाने वाले नहीं। वे मोदी को तो समर्थन नहीं ही देने वाले। गठबंधन से उम्मीदवार बनाए गए बर्खास्त बीएसएफ कर्मी तेज बहादुर का परचा जिस तरह रद्द किया गया, उससे मोदी विरोधी मतों की गोलबंदी होना तय है।


विरोधी पक्ष की बातों को वे लोग हवा दे रहे हैं जिन्हें काशी विश्वनाथ कॉरीडोर निर्माण में अपने घर, अपनी दुकानें गंवानी पड़ी हैं। जिन लोगों को पर्याप्त मुआवजा नहीं मिल पाया है, उनका दर्द भी मोदी का रास्ता रोकने में मदद कर सकता है। विश्वनाथ कॉरीडोर में ध्वस्त हुए मकान मालिकों में कई ऐसे लोग भी रहे जो आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हैं। इनमें केवट और दलित भी शामिल हैं। आरोप है कि मुआवजा राशि के वितरण में भी भेदभाव किया गया। ऐसे लोग, धीमे से ही सही, यह जरूर कहते हैं किअबकी चुनाव में अपना विरोध दर्ज करने से उन्हें कौन रोक लेगा?

कॉरीडोर मामले में पीड़ितों की तरफदारी करने वाले कृष्णकुमार शर्मा ने दावा किया कि रसूखदार और संपन्न लोगों ने अधिकारियों के साथ तालमेल कर अपने जमीन, मकान या फिर दुकान कीचौहद्दी में जमकर गेम किया और धन लाभ अर्जित किया। उन्होंने अपनी जमीन का रकबा ज्यादा बताया और अधिक मुआवजा हथिया लिया।

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Published: 02 May 2019, 8:00 AM