'ओमिक्रॉन' पर वायरोलॉजिस्ट की चेतावनी, लोगों को गुमराह न करें, क्योंकि अभी इसके बारे में नहीं है खास जानकारी

कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट को लेकर वायरोलॉजिस्ट ने कहा है कि इसके बारे में लोगों को टीवी पर ज्यादा गुमराह न किया जाए बल्कि सावधानी बरतने को कहा जाए क्योंकि इस वेरिएंट के बारे में अभी दुनिया के पास कोई खास जानकारी नहीं है।

फोटो : सोशल मीडिया
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ऐशलिन मैथ्यू

कोविड -19 से पैदा हुई बीमारियों और कई किस्म के रूप सामने आने के लगभग दो साल बाद, वायरस के ओमीक्रॉन रूप ने एक बार फिर लोगों में भय पैदा कर दिया है और नीति निर्धारक यानी सरकार इस विषय में अभी तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया सामने नहीं रख पाई है। कोरोना के ओमिक्रॉन वेरिएंट के बारे में 24 नवंबर को पहली बार दक्षिण अफ्रीका से विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया गया था। लेकिन अभी तक इसके बारे में बहुत अधिक जानकारियां नहीं हैं।

सरकार ने फिलहाल कहा है कि दुनिया भर में फैल रहे वायरस का ओमिक्रॉन वेरिएंट अभी भारत में नहीं है। लेकिन देश के शीर्ष वायरोलॉजिस्ट ने चेताया है कि जब तक वायरस डीएनए का पता लगाकर उसे अलग नहीं किया नहीं जाता और जीन सीक्वेंसिंग नहीं होती, तब तक ऐसा कहना सही नहीं होगा।

ऐसी खबरें आई हैं कि चंडीगढ़ में दक्षिण अफ्रीका से लौटा एक व्यक्ति कोविड पॉजिटिव पाया गया है। इस शख्स के परिवार के दूसरे सदस्य और घरेलू सहायक भी पॉजिटिव पाए गए हैं। चंडीगढ़ प्रशासन ने कहा कि इन केस के सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए दिल्ली में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) भेजे जाएंगे।

इधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि डेल्टा सहित अन्य प्रकारों के वेरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन कका संक्रमण अधिक गंभीर है या नहीं। शुरुआती आंकड़े बताते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में अस्पतालों में भर्ती होने की दर बढ़ रही है। अभी तक वहां 0.8 प्रतिशत नमूनों की सीक्वेंसिंग की जा रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक एडवाइजरी में कहा है कि, “शुरुआती लक्षण से लगता है कि इस वेरिएंट से लोगों में दोबारा संक्रमण होने का जोखिम बढ़ गया है। दक्षिण अफ्रीका के लगभग सभी प्रांतों में मामलों में तेजी आ रही है।” दक्षिण अफ्रीका के अलावा यह वेरिएंट यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग, बोत्स्वाना, इजरायल, जर्मनी, बेल्जियम, इटली, चेक रिपब्लिक, कनाडा, नीदरलैंड्स, डेनमार्क, पोर्तुगल, स्पेन और ऑस्ट्रिया में भी मिला है।

जॉर्ज इंसटीट्यूट में सीनियर रिसर्च फेलो डॉ ओमन जॉन का कहना है कि स्वास्थ्य के नजरिए से वायरस का नया वेरिएंट आना कोई अनोखी बात नहीं है। उनका कहना है कि ऐसा तब होता है जब संक्रमण के दौर में बिना वैक्सीन लिए बहुत से लोग एक दूसरे के संपर्क में आते हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि निगरानी सख्त है इसलिए समय से इस वेरिएंट का पता लग गया। उन्होंने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर डेल्टा वेरिएंट के कारण हुई थी, जिसे भारत ने इस साल जून में ही खतरनाक माना था। और अब ओमिक्रॉन आ गया है तो तो तैयारियां तो करनी होंगी।


डॉ जॉन ने कहा कि लोगों में अब पहले से ज्यादा चिंता है। लेकिन फिर भी सावधानी की जरूरत है। हमें देखना होगा कि किस उम्र के लोग संक्रमित हो रहे हैं और किन इलाकों में संक्रमण अधिक है। उन्होंने कहा कि वायरस को नियंत्रित रखने के लिए इस सब पर ध्यान देना होगा। उन्होंने बताया कि इस वेरिएंट से संक्रमित में कोई खास लक्षण नहीं होते, सिर्फ थकावट होती है और धीरे-धीरे उनकी तबीयत खराब होती है। पिछले वेरिएंट के विपरीत मरीजों में न तो स्वादहीनता की स्थिति होती है और न ही गंध की। सिर्फ मामूली चक्कर आने और नब्ज की गति बढ़ जाती है।

यही बात कर्नाटक के कोविड-19 बोर्ड के सदस्य डॉ वी रवि ने भी कही। उन्होंने कहा, “हमें अभी ओमिक्रॉन के बारे में बहुत कम जानकारी है। डब्ल्यूएचओ ने उन देशों को सूचीबद्ध किया है जहां इसकी पुष्टि हुई है। यह ज्यादा घातक है या नहीं इसका जवाब किसी के पास नहीं है। डेटा से निष्कर्ष निकालता है और इस बिंदु पर, कोई डेटा नहीं है। मैं निश्चित रूप से नहीं जानता कि यह संक्रामक है या नहीं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह अफ्रीका के भीतर तेजी से फैल गया है। यह मौजूदा वेरिएंट को काफी तेजी से बदल रहा है, लेकिन इसकी पुष्टि के लिए हमें वायरस को अलग करना होगा और इसकी तुलना पहले के स्ट्रेन से करनी होगी।"

यह मान लेना सही होगा कि ओमिक्रॉन संस्करण तेजी से फैल रहा है। डॉ रवि ने कहा कि, “यह मान लेना बेहतर है कि यह वेरिएंट एक अलग प्रकार की बीमारी पैदा कर सकता है क्योंकि यह वायरस म्यूटेट होता रहता है। हमें यह भी मानना ​​होगा कि म्यूटेशन के कारण, यह आंशिक रूप से वैक्सीन को भी बेअसर कर सकता है। अगर यह बहुत ही खतरनाक वायरस होता तो दक्षिण अफ्रीका में मौतों की संख्या बढ़ जाती। हर दूसरा व्यक्ति जो इससे संक्रमित है उसकी मौत हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। संक्रमण बढ़ा है, लेकिन मौतें नहीं हुई हैं। यह आंकड़े सिर्फ 100 सीक्वेंसिंग से निकले हैं, लेकिन हमें और डेटा उपलब्ध होने तक इंतजार करना होगा।”

डॉ जॉन कहते हैं, “इस समय भारत के लिए एकमात्र अच्छी बात यह है कि हमारे पास सीरो-कंवर्जिन की दर बहुत अधिक है। हमारे पास एक बड़ी आबादी है जिसमें डेल्टा के खिलाफ एंटीबॉडी हैं, इसलिए हमें यह देखने के लिए कुछ निगरानी की आवश्यकता है कि क्या पहले एंटीबॉडी वाले लोग इस बार संक्रमित हो रहे हैं या नहीं। हमें यह तभी पता चलेगा जब संक्रमित होने वालों और सर्वेक्षण में भाग लेने वालों का अच्छा रिकॉर्ड रखा होगा।”


वहीं वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील ने कहा कि दिल्ली में 97 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी हैं। मुंबई में यह 85-90 फीसदी है। इसका अर्थ है कि बड़ी संख्या में भारतीय ओमिक्रॉन या वायरस के किसी अन्य नए रूप से सुरक्षित हैं। डॉ जमील इंडियन सार्स कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्शिया के पूर्व हेड हैं।

दरअसल जरूरत इस बात की है कि सरकार इस बारे में स्पष्ट संदेश देशवासियों के सामने रखे। फिलहाल तो ऐसा भ्रम है कि जिन लोगों ने दक्षिण अफ्रीका या किसी अन्य देश की यात्रा नहीं की है, वे इस वेरिएंट से संक्रमित नहीं हो सकते। डॉ जॉन कहते हैं कि जरूरत इस बात की है कि क्लीनिकल डेटा सामने रखा जाए, और उसका विश्लेषण किया जाए। उन्होंने कहा कि, “दूसरी लहर भारत में काफी घातक साबित हुई है, इसलिए उससे सबक लेते हुए तैयारी करनी होगी। अभी हमें नहीं पता है कि भारत में ह वेरिएंट आया है या नहीं, हमें इस बारे में सारी जानकारी जुटानी होगी, न कि यह ऐलान करना कि ऐसा नही है।”

उधर डॉ रवि कहते हैं कि सीमाओं को बंद करना कोई समाधान नहीं है। जरूरत है कि देश की पूरी आबादी को वैक्सीन लगे। अभी तक सिर्फ 42 फीसदी लोग ही पूरी तरह वैक्सीन ले सके हैं। इनमें से 90 फीसदी ने कोविशील्ड वैक्सीन ली है और इसमें बहुत ही सीमित बूस्टर है। इसके लिए हमें आरएनए और डीएनए या फिर प्रोटीन वैक्सीन की जरूरत होगी। फिलहाल तो जोर सभी को दोनों डोज देने पर लगाना चाहिए।

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