कोरोना वैक्सीन के ट्रायल से बिगड़ी वॉलंटियर की हालत, परिवार ने मांगा 5 करोड़ का मुआवजा, ‘सीरम’ का आरोप से इनकार

कोविड वैक्सीन के ट्रायल से बिगड़ी वॉलंटियर की हालत बिगड़ने पर परिवार ने कंपनी को कानूनी नोटिस तब भेजा जब उनकी शिकायत पर नियामक बोर्ड ने न तो कोई ध्यान दिया और न ही इस वैक्सीन का ट्रायल रोका गया।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) के लिए स्वेच्छा से कोरोना की वैक्सीन 'कोविशिल्ड' का प्रयोग करने वाले एक 40 वर्षीय व्यक्ति ने कंपनी पर 5 करोड़ रुपए का मुकदमा दायर किया है। इस शख्स का कहना है कि वैक्सीन ने उन पर बहुत बुरा असर डाला है जिससे उनकी याददाश्त कम होने लगी है और वैक्सीन के पहले वाली सामान्य जिंदगी की तरफ नहीं लौट पा रहे हैं। ध्यान रहे कि सीरम इंस्टीट्यूट अमेरिका की एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर भारत के ए वैक्सीन तैयार कर रही है।

हालांकि इस शख्स पर वैक्सीन का विपरीत प्रभाव एक महीने पहले हुआ था, वैक्सीन ट्रायल को नियमित करने वाली संस्था सेंट्रल ड्रह स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन – सीडीएससीओ ने अभी तक इस मामले पर कोई बयान जारी नहीं किया है। न ही इसने कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर पूछे गए सवालों पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। गौरतलब है कि इस समय देश के 17 शहरों में कोविशील्ड वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है और इसके लिए पंजीकरण अगस्त माह में शुरु हुए थे।


इस शख्स द्वारा वैक्सीन के विपरीत प्रभावों को उजागर करना उन प्रक्रियाओं के विपरीत है जो एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी वैक्सीन के ट्रायल के दौरान किसी व्यक्ति के बीमार पड़ने पर अपनाती हैं। वहां ट्रायल रोक दिया जाता है और एक स्वतंत्र निगरानी बोर्ड की मंजूरी मिलने के बाद ही इस पर आगे बढ़ा जाता है।

इस वॉलंटियर के परिवार ने कंपनी को कानूनी नोटिस तब भेजा जब उनकी शिकायत पर नियामक बोर्ड ने न तो कोई ध्यान दिया और न ही इस वैक्सीन का ट्रायल रोका गया। इस व्यक्ति की डिस्चार्ज शीट में लिखा गया है कि मरीज की इच्छा से डिस्चार्ज किया गया और वह “acute encephalopathy” से पीड़ित था। इसमें यह भी कहा गया कि मरीज की मानसिक स्थिति बदली हुई थी और वह चीजों को समझ नहीं पा रहा था। साथ ही मरीज के शरीर में विटामिन बी 12 और विटामिन डी की कमी थी वह संभवत: कनेक्टिव टिश्यू डिस्ऑर्डर से पीड़ित था।

न्यूज रिपोर्ट्स ने मुताबिक इस व्यक्ति की पत्नी के हवाले से कहा है कि इस वॉलंटियर ने वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के तीसरे चरण में चेन्नई के श्रीरामचंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन और रिसर्च में पंजीकरण कराया था। यह व्यक्ति एक बिजनेस कंसल्टेंट है और उसने 29 सितंबर, 2020 को सहमति पत्र भरा था। कंपनी को भेजे गए कानूनी नोटिस में कहा गया है कि वॉलंटियर के सूचना पत्र में साफ तौर पर कहा गया था कि वैक्सीन सुरक्षित है। इसके बाद ही पहली अक्टूबर को उसे वैक्सीन की पहली खुराक दी गई थी।


पहली खुराक के दस दिन के अंदर ही उसे जबरदस्त सिरदर्द और उलटी की शिकायत हुई, जिसकी वजह से उसे दिन भर के लिए बेड रेस्ट पर कर दिया गया। उसकी पत्नी का कहना है कि वैक्सीन की खुराक के बाद इस व्यक्ति के व्यवहार मं बदलाव हो गया है और उसकी याददाश्त कमजोर हो गई है। उसे तुरंत ही अस्पताल ले जाया गया। 11 अक्टूबर से 26 अक्टूबर के बीच उसका सीटी स्कैन, एमआरआई, कोविड टेस्ट आदि हुए। इसके बाद उसे आईसीयू में शिफ्ट करना पड़ा। उसकी तबीयत लगातार बिगड़ी है और दूसरे अस्पताल के डॉक्टरों से सलाह ली जा रही है।

इंस्टीट्यूट के डॉ एस आर रामाकृष्णन का कहना है कि हमने 26 अक्टूबर तक उसका मुफ्त इलाज किया और डिस्चार्ज कर दिया, लेकिन परिवार उसे फॉलोअप के लिए फिर से लेकर आया। उन्होंने माना कि अभी तक हम यह नहीं पता कर पाए हैं कि इस व्यक्ति की तबीयत इतनी खराब कैसे हो गई। उन्होंने कहा कि इस तबीयत का खराब होन में वैक्सीन की कोई भूमिका सामने नहीं आई है।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस परिवार के हवाले से कहा है कि 5 करोड़ के हर्जाने का दावा करने के पीछे उनका मकसद पैसा वसूलना नहीं है बल्कि वे चाहते हैं कि इंस्टीट्यूट वैक्सीन ट्रायल के लिए आने वाले लोगों को इसके विपरीत प्रभाव के बारे में साफ-साफ बता सकें। परिवार का कहना है कि क्या एक भारतीय की जिंदगी ब्रिटेन के किसी नागरिक से कम अहम है।

इस बीच आईसीएमार ने डॉ समीरन पांडा के जरिए कहा है कि वैक्सीन ट्रायल के प्रोटोकॉल के मुताबिक इस मामले की जांच होनी चाहिए। इससे पहले भारत बायोटेक द्वारा विकसित की जा रही वैक्सीन कोवैक्सिन के ट्रायल में भी विपरीत प्रभावों की बात सामने आई थी, और वहां भी ट्रालय को इसके बावजूद रोका नहीं गया था।

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