वोटर लिस्ट का विवाद: महुआ मोइत्रा बोलीं- चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण के जरिये बिहार के बाद बंगाल निशाना
मोइत्रा ने निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि यह संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के कई प्रावधानों का उल्लंघन करता है।

तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने रविवार को आरोप लगाया कि निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण करने का आदेश आगामी विधानसभा चुनाव में वास्तविक युवा मतदाताओं को मतदान से वंचित करने के लिए है और उसका अगला निशाना पश्चिम बंगाल होगा।
मोइत्रा ने निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि यह संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के कई प्रावधानों का उल्लंघन करता है।
मोइत्रा ने बातचीत में कहा, ‘‘उसने (निर्वाचन आयोग ने) अब बिहार के वास्तविक युवा मतदाताओं को वंचित करने के लिए इसे पेश किया है, जहां जल्द ही चुनाव होने वाले हैं। बाद में, वे बंगाल को निशाना बनाएंगे, जहां 2026 में चुनाव होने हैं।’’
उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी पहले ही इस मुद्दे को उठा चुकी हैं और निर्वाचन आयोग की ‘शैतानी योजना’ के बारे में बात कर चुकी हैं।
कृष्णानगर से लोकसभा सदस्य मोइत्रा ने कहा, ‘‘विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं ने भी इस कदम पर चिंता व्यक्त की है और निर्वाचन आयोग से इसे आगे न बढ़ाने की अपील की है। हमने अब इस मुद्दे में हस्तक्षेप करने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है।’’
मोइत्रा ने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण के आदेश का उद्देश्य ‘‘लाखों वास्तविक मतदाताओं को अक्षम करना है, जिनका जन्म 1 जुलाई 1987 और 2 दिसंबर 2004 के बीच हुआ है, तथा इससे केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मदद मिलेगी।’’
मोइत्रा ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपनी याचिका में अनुरोध किया है कि निर्वाचन आयोग को देश के अन्य राज्यों में इसी तरह के आदेश जारी करने से रोका जाए।
निर्वाचन आयोग ने 24 जून को बिहार में मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण करने के निर्देश जारी किए थे, जिसका उद्देश्य अपात्र नामों को हटाना तथा यह सुनिश्चित करना था कि केवल पात्र नागरिकों को ही मतदाता सूची में शामिल किया जाए।
मोइत्रा ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर साझा करते हुए पोस्ट किया, ‘‘ निर्वाचन आयोग बीजेपी की शाखा है - जो जमीन पर अपनी चालाकी भरी योजनाओं को क्रियान्वित कर रही है। नागरिकों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए सक्षम सेवाएं प्रदान करने के अपने संवैधानिक जनादेश को भूल गई है।’’
उन्होंने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(ए), 21, 325, 328 तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960 के प्रावधानों का उल्लंघन है।
मोइत्रा के अलावा, पीयूसीएल और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स जैसे कई नागरिक समाज संगठनों और योगेंद्र यादव जैसे कार्यकर्ताओं ने निर्वाचन आयोग के निर्देश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
निर्वाचन आयोग के मुताबिक तेजी से हो रहे शहरीकरण, लगातार हो रहे प्रवास, युवा नागरिकों के मतदान के लिए पात्र होने, मौतों की सूचना न देने तथा विदेशी अवैध आप्रवासियों के नाम सूची में शामिल होने के कारण यह प्रक्रिया आवश्यक हो गई थी।
आयोग ने कहा कि वह मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण में संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों का पूरी ईमानदारी से पालन करेगा।
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