क्या पहले से तय थी मौलाना सलमान नदवी की बर्खास्तगी?

कौम के कुछ नहनुमाओं की मीडिया में खूब चांदी होने वाली है। और इस सबकी भेंट चढ़ेगा बेचारा परेशान हाल हिंदुस्तानी मुसलमान।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक अहम सदस्य मौलाना सलमान नदवी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। तीन दिवसीय बैठक शुरू होने से पहले बोर्ड के कई सदस्यों के तेवरों से साफ जाहिर था कि आगे क्या होने वाला है। मौलाना सलमान नदवी अब खुद को पूरी दुनिया में पीड़ित और अमन का सिपाही बताएंगे और अब वह इस बात को साबित करने की कोशिश करेंगे कि जिस संगठन के वह अभी तक सदस्य थे औऱ जिसके हर फैसले में अब तक आगे आगे रहे थे, वह देश में बहाल अमन का सबसे बड़ा दुश्मन संगठन है।

देश का मीडिया भी यही सवाल करेगा और कुछ टीवी चैनलों के लिए तो ये एक मजेदार मुद्दा होगा, जिसमें मौलाना सलमान की मौजूदगी उसमें और तड़का लगा देगी। सवाल होगा कि मौलाना ने श्री श्री रविशंकर से मिलकर ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया कि उनको बोर्ड से बाहर कर दिया गया। सवाल होगा कि क्या किसी को अमन की बात करने का हक नहीं है?

इसमें कोई दो राय नहीं है कि एक साथ तीन तलाक मामले की तरह ही मौलाना सलमान पर फैसला लेने में भी बोर्ड ने किसी समझदारी का प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि उन्होंने खुद पर हमला करने के लिए खुद ही विरोधियों को हथियार उपलब्ध करा दिया है।

बोर्ड ने मौलाना सलमान के मामले को इतने गैरराजनीतिक और गैरसमझदारी के तरीके से डील किया है कि इस सारे मामले में बोर्ड शांति की दुश्मन और मौलाना सलमान पीड़ित की शक्ल में सामने आए हैं। इस सारे मामले को समझने के लिए इस ड्रामे के किरदार और इसके समय को समझना बहुत जरूरी है। हैदराबाद में होने वाली बोर्ड की बैठक से ठीक एक दिन पहले मौलाना सलमान श्रीश्रीरविशंकर से मुलाकात करते हैं। क्या जरूरी था कि बोर्ड की बैठक से एक दिन पहले ही मौलाना श्री श्री से मुलाकात करें? क्या ऐसा संभव नहीं था कि मौलाना पहले अपना इरादा बोर्ड के सामने रखते और अगर बोर्ड की राय होती तो फिर कोई समस्या ही नहीं खड़ी होती। और अगर बोर्ड उनकी राय से सहमत नहीं होता तो बोर्ड की बैठक के बाद भी मौलाना सलमान श्रीश्री से मिल सकते थे। इसके बाद जो होना था, वही होता। यानी उनको बोर्ड से निकाल दिया जाता। क्या बोर्ड उनकी बर्खास्तगी को कुछ दिनों तक टाल नहीं सकता था या इस पर चुप्पी साधकर इस मुद्दे को खुद अपनी मौत मरने नहीं दे सकता था?

बोर्ड की बैठक से एक दिन पहले उनकी श्री श्री से मुलाकात इस बात की तरफ इशारा करती है कि ये सब एक सोची समझी साजिश का हिस्सा था, जिसमें मौलाना सलमान जानबूझकर शामिल थे या फिर वे इस साजिश में फंस गए। मौलाना सलमान का इतिहास इस बात की तरफ इसारा करता है कि उन्होंने जो कुछ किया वह सोच-समझकर किया और उनको इस बात का भी अंदाजा था कि इसके बाद क्या होगा। मौलाना सलमान कोई छोटे बच्चे नहीं हैं कि वह इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकें कि उनके इस कदम का बोर्ड और कौम पर क्या असर पड़ेगा। वह इस बात को भी अच्छी तरह से जानते थे कि इस मुलाकात के बाद जब उनको बोर्ड से निकाला जाएगा तो राष्ट्रीय मीडिया के हीरो बनकर उभरेंगे।

अब बोर्ड में देखते हैं कि वह कौन लोग हैं, जिन्होंने मौलाना सलमान की बोर्ड से बर्खास्तगी में अहम भूमिका निभाई। अंदर क्या स्थिति थी और वहां क्य खिचड़ी पकी, इसके बारे में तो अंदर वाले ही जानें, लेकिन जो तस्वीर निकल कर सामने आई है उससे ये बात स्पष्ट है कि मौलाना की बर्खास्तगी में सैय्यद कासिम रसूल इलियास, कमाल फारूकी और असदुद्दीन ओवैसी की अहम भूमिका रही है।

सूत्रों के अनुसार बैठक के पहले दिन जब इस मुद्दे पर चर्चा हुई तो उस वक्त बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना राबे हसन नदवी और मौलाना अरशद मदनी ने सारे मामले पर चुप्पी साधे रखी। तीन सदस्य जो इस मामले में सबसे आगे आगे रहे उसमें असदुद्दीन ओवैसी के बारे में अक्सर ये बात कही जाती रही है कि उनके हर कदम से से बीजेपी और सांप्रदायिक शक्तियों को और ताकत मिलती है। कमाल फारूकी के संबंध में ये चर्चा है कि वह भी पहले एक बार श्री श्री रविशंकर से मुलाकात कर चुके हैं। सैय्यद कासिम रसूल इलियास, जो जमात-ए-इस्लामी हिंद की मजलिस ए शूरा के सदस्य हैं और जमात के संरक्षण में बने राजनीतिक दल वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भी हैं, उनके बारे में भी ये कहा जाता है कि इस राजनीतिक पार्टी का गठन ही असल में धर्मनिरपेक्ष वोटों के बंटवारे के लिए किया गया था।

पत्रकारिता जीवन के छोटे से अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि जो चीजें जैसे सामने आती हैं, असल में वैसी होती नहीं हैं और इस सबमें किरदार और ‘टाइमिंग’ बहुत अहमियत रखते हैं। इस ड्रामे क अहम किरदार और इसकी टाइमिंग से ऐसा महसूस होता है कि मौलाना सलमान की श्री श्री से मुलाकात और उसके बाद बोर्ड में उनका विरोध और फिर बर्खास्तगी पहले से ही तय थी और इस पूरे ड्रामे का ‘स्क्रीप्ट राइटर’ कोई और ही था। ये लोग सिर्फ उस स्क्रीप्ट के अनुसार पर अपना-अपना किरदार निभा रहे थे। जिसको गुस्से का किरदार मिला था, वह गुस्से का किरदार निभा रहा था और जिसको हीरो का किरदार मिला था, वह हीरो का किरदार निभा रहा था। अब इस ड्रामे के प्रचार के लिए राष्ट्रीय मीडिया पूरी तरह तैयार है। आने वाले दिनों में कौम के कुछ रहनुमाओं की मीडिया में खूब चांदी होने वाली है। इस सब की भेंट चढ़ेगा बेचारा परेशान हाल हिंदुस्तानी मुसलमान।

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