पश्चिम बंगालः पंचायत चुनाव को लेकर हिंसा का दौर जारी, घायल CPM कार्यकर्ता की मौत, मरने वालों की संख्या 9 हुई

सीपीएम केंद्रीय समिति के सदस्य सुजन चक्रवर्ती ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने लोगों की मौत के बाद भी राज्य सरकार या राज्य चुनाव आयोग केंद्रीय सुरक्षा बलों के साथ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए अनिच्छुक है। यह अदालती आदेश का अपमान है।

पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव को लेकर हिंसा का दौर जारी, मरने वालों की संख्या 9 हुई
पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव को लेकर हिंसा का दौर जारी, मरने वालों की संख्या 9 हुई
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नवजीवन डेस्क

पश्चिम बंगाल में आगामी पंचायत चुनावों को लेकर झड़पों और हिंसा का दौर जारी है। चुनाव से संबंधित मौत का एक और मामला बुधवार को सामने आया, जब गोली लगने से घायल एक युवा सीपीएम कार्यकर्ता की मौत हो गई। इसी के साथ 8 जून को पंचायत चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद से चुनाव संबंधी हिंसा के कारण मरने वालों की कुल संख्या नौ हो गई है।

मृतक सीपीएम कार्यकर्ता की पहचान मंसूर आलम (23) के रूप में हुई है, जिसे उत्तरी दिनाजपुर जिले के चोपड़ा में नामांकन चरण के दौरान हुई हिंसा में गोली लगी थी। गंभीर रूप से घायल मंसूर आलम को 15 जून को एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मंगलवार देर रात उसकी मौत हो गई। इसके साथ ही चुनावी हिंसा में दक्षिण 24 परगना जिले के भांगर में सबसे ज्यादा तीन लोग मारे गए हैं।


सीपीएम केंद्रीय समिति के सदस्य सुजन चक्रवर्ती ने अपने कार्यकर्ता की मौत पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने लोगों की मौत की सूचना के बाद भी राज्य सरकार या राज्य चुनाव आयोग केंद्रीय सुरक्षा बलों के साथ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए अनिच्छुक है। विपक्षी पार्टियों ने राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग के इस रुख को आंखों में धूल झोंकने वाला और अदालत के आदेश का अपमान बताया है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने मंगलवार को कलकत्ता हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के पिछले आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें ग्रामीण निकाय चुनावों के लिए पूरे राज्य में केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती का निर्देश दिया गया था। हालांकि, शीर्ष अदालत के आदेश के बाद राज्य चुनाव आयुक्त ने केंद्रीय सशस्त्र बलों की महज 22 कंपनियों के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय से मांग की थी जिसे लेकर विवाद शुरू हो गया। इसका अर्थ है कि प्रत्येक जिले में एक कंपनी तैनात की जाएगी। इसे आंखों में धूल झोंकने वाला और अदालत का अपमान बताया जा रहा है।

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