पंजाब में गेहूं की फसल पक कर तैयार, प्रवासी मजूदरों की बाट जोह रहे किसान, ‘कोरोना कर्फ्यू’ ने रोका रास्ता!

प्रवासी मजदूरों की बनिस्बत स्थानीय खेत मजदूरों की तादाद काफी कम है। मालवा के बठिंडा, मुक्तसर, फरीदकोट और फाजिल्का जिलों में ही पंजाबी खेत मजदूर ज्यादा हैं। शेष पंजाब फसल की कटाई के दौरान प्रवासी मजदूरों के हवाले रहता है।

फोटो: सोशल मीडिया
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अमरीक

पंजाब में गेहूं की फसल पक कर एकदम तैयार है और उसे काटने के लिए किसान हर साल बिहार और उत्तर प्रदेश सहित दूसरे राज्यों से आने वाले लगभग 8 लाख प्रवासी मजदूरों की राह देख रहे हैं, जबकि समूचे देश में लॉकडाउन के चलते उनका आना फिलहाल तो संभव नहीं दिख रहा है। ऐसे में किसानों की उम्मीद की आखिरी किरण स्थानीय मनरेगा मजदूर हैं, जो राज्य में लगभग 7 लाख के करीब हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश फसल कटाई के लिए सिद्धहस्त नहीं हैं। कंबाइनें फसल कटाई का एक विकल्प हैं, लेकिन वे नाकाफी हैं और कर्फ्यू-लॉकडाउन की दोहरी मुसीबत के चलते इन मशीनों के मालिक इनकी मरम्मत (सर्विस) नहीं करवा पा रहे। कुल मिलाकर कोरोना वायरस पंजाब के किसानों को बड़ी मुसीबत के हवाले कर रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आश्वस्त किया है कि गेहूं की फसल का एक दाना भी बेकार नहीं होने दिया जाएगा। फिर भी किसानों की चिंताएं बरकरार है।

25 मार्च के आसपास लाखों प्रवासी मजदूर पंजाब आकर डेरा डाल लेते थे। 70 के दशक से 2019 तक यह सिलसिला कायम था। रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर प्रवासी मजदूरों की भारी भीड़ रहती थी और किसान वहीं उनकी आगवानी करते थे। इस बार कर्फ्यू और देशव्यापी लॉकडाउन के चलते आलम सिरे से बदल गया है। रेलवे स्टेशन और बस अड्डे सुनसान हैं। आवाजाही के तमाम रास्ते पूरी तरह बंद हैं। जालंधर जिले के गांव खोजेवाला के किसान प्रदुमन सिंह बताते हैं कि उनके यहां बिहार के पूर्णिया जिले से हर साल 60 मजदूर गेहूं की कटाई और धान की रोपाई के लिए पिछले 40 सालों से आ रहे थे। इस दफा उनके आने के आसार नहीं हैं। उन्हें इन प्रवासी मजदूरों के मुखिया गंगाशरण यादव ने फोन पर कहा कि रेल गाड़ियां चल पड़ें तो वे तत्काल आ जाएंगे, क्योंकि उनके परिवार की रोजी-रोटी भी पंजाब की फसल कटाई पर निर्भर है। प्रवासी मजदूरों के ठेकेदार नरोत्तम दास के मुताबिक, मौजूदा वक्त में जो दशा पंजाब के किसानों की है, ठीक वही अपने-अपने प्रदेशों में कैद होकर बैठे प्रवासी मजदूरों की। यानी दोनों ओर बेबसी का आलम एक सरीखा है। कोरोना वायरस और लॉकडाउन दोनों को आर्थिक बदहाली दे रहा है।


हरित क्रांति के बाद पुरबिया प्रवासी मजदूर पंजाब के किसानों का फसल कटाई के लिए सबसे बड़ा सहारा बने। आतंकवाद के काले दौर में आतंकियों ने प्रवासी मजदूरों को निशाना बनाया। फिर भी वे पंजाब आते रहे। सूबे के खेतों को इन श्रमिकों के हाथ बेहद रास आते हैं। प्रख्यात पत्रकार अरविंद मोहन ने बाकायदा पूरे शोध के बाद पंजाब आने वाले प्रवासी मजदूरों पर किताब लिखी तो मरहूम अप्रीतम कथाकार अरुण प्रकाश ने 'भैया एक्सप्रेस' जैसी नायाब कहानी लिखी। मार्च महीने में पूरब से आने वाली गाड़ियों को अमूमन 'भैया एक्सप्रेस' ही कहा जाता था। लॉकडाउन ने इन तमाम गाड़ियों फौरी तौर पर बंद कर दिया है।

प्रवासी मजदूरों की बनिस्बत स्थानीय खेत मजदूरों की तादाद काफी कम है। मालवा के बठिंडा, मुक्तसर, फरीदकोट और फाजिल्का जिलों में ही पंजाबी खेत मजदूर ज्यादा हैं। शेष पंजाब फसल की कटाई के दौरान प्रवासी मजदूरों के हवाले रहता है, जो दरपेश हालात के मद्देनजर इस बार नदारद हैं। लोहिया के जमींदार लक्ष्मण सिंह कंबोज कहते हैं, "कुदरत के कहर ने हमें पुरबिया प्रवासी मजदूरों की अहमियत का एहसास शिद्दत से करवाया है। किसान अब भी उनका इंतजार कर रहे हैं। समझ से परे है कि वे नहीं आए तो हम क्या करेंगे?" प्रवासी मजदूरों के भरोसे रहने वाले पंजाब के लगभग हर किसान का घूम-फिर कर यही सवाल है। स्थानीय किसान चाहते हैं कि केंद्र सरकार लॉकडाउन में कुछ ढील देते हुए ऐसा प्रावधान करे कि किसी न किसी तरह पुरबिया प्रवासी मजदूर पंजाब आ सकें। बातचीत में तमाम किसान कहते हैं कि वे 'सोशल डिस्टेंसिंग' नियम का हर हाल में पूरा पालन करेंगे। जालंधर के गांव मंड के किसान गुरप्रीत सिंह के अनुसार, सरकार चाहे तो उनसे यह लिखित में ले ले। प्रवासी मजदूर किसानों का प्रबल सहारा हैं तो किसान आढ़तियों के बगैर भी अधूरे हैं।


पंजाब में 22 हजार से ज्यादा आढ़ती पंजीकृत हैं जो फसल खरीदते हैं। किसानों की मानिंद आढ़तिए भी दिक्कत में हैं, क्योंकि लगभग हर आढ़ती के यहां फसल की खरीद के दौरान 30 से 40 प्रवासी मजदूर कार्यरत रहते हैं। फेडरेशन ऑफ आढ़ती एसोसिएशन ऑफ पंजाब के प्रधान विजय कुमार कालड़ा के मुताबिक, बिहार, उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों से प्रवासी मजदूर गेहूं की कटाई के लिए पंजाब नहीं आए तो इसका नागवार असर किसानों के साथ-साथ हम पर भी पड़ेगा। देशव्यापी लॉकडाउन ने बहुत बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। केंद्र को कोई रास्ता निकालना चाहिए। ऐसा कई आढ़तियों का मानना है कि इस बार प्रवासी मजदूर पंजाब नहीं आए तो किसानों के साथ-साथ आढ़तियों की कमर भी बेतहाशा टूट जाएगी।

गौरतलब है कि 4 अप्रैल को राज्य के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशू की अगुवाई में हुई बैठक में प्रवासी मजदूरों की नाआमद के विकल्पों पर लंबा विचार विमर्श हुआ। तय किया गया कि जिला उपायुक्तों से मनरेगा मजदूरों की सूचियां मंगवाई जाएंगीं, ताकि उन्हें गेहूं की फसल की कटाई के काम में लगाया जा सके। लेकिन इसमें व्यवहारिक दिक्कत यह है कि लगभग 80 फीसदी मनरेगा मजदूर फसल कटाई में दक्ष नहीं हैं। वे मंडियों में तो काम कर सकते हैं, लेकिन खेतों में उन्हें अप्रशिक्षण के चलते समस्या आएगी। खैर, पंजाब के किसानों की फौरी दिक्कत गेहूं की पकी हुई फसल की कटाई की है और जून के बाद धान की रोपाई कैसे होगी, इस इस फिक्र से भी वे अभी से जूझ रहे हैं।

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