ब्लैक फंगस से भी घातक व्हाइट फंगस ने दी दस्तक, पटना में मिले 4 मरीज, मचा हड़कंप

देश में ब्लैक फंगस से भी घातक व्हाइट फंगस के कई मामले मिलने से हड़कंप मच गया है। व्हाइट फंगस की चपेट में आने वाले मरीजों में आसानी से इसकी पहचान करना भी मुश्किल है। विशेषज्ञों के मुताबिक व्हाइट फंगस होने की वजह भी प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

कोरोना महामारी के बीच देश के कई राज्यों में ब्लैक फंगस यानी म्यूकरमाइकोसिस के कई मामले सामने आने से खौफ बढ़ता जा रहा है। इस बीच बिहार की राजधानी पटना में व्हाइट फंगस के 4 मामले मिलने से हड़कंप मच गया है। डॉक्टरों के अनुसार यह ब्लैक फंगस से भी ज्यादा घातक है। यह फेफड़ों के गंभीर संक्रमण का मुख्य कारण है। इसके अलावा यह इंसान की त्वचा, नाखून, आंत, किडनी समेत कई महत्वपूर्ण अंगों पर भी घातक असर डालता है।

इन सभी मरीजों का इलाज पटना मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल में किया गया। समय पर इसकी पहचान होने और तत्काल इलाज से ये सभी मरीज अब ठीक हो गए हैं। यहां के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. एसएन सिंह ने बताया कि इन चारों मरीजों में कोरोना जैसे लक्षण तो थे, लेकिन इनकी रैपिड एंटीजन, रैपिड एंटीबॉडी और आरटी-पीसीआर जांच की रिपोर्ट निगेटिव आईं। साथ ही उन पर कोरोना संबंधी दवाओं का भी कोई असर नहीं हो रहा था। ऐसे में उनकी वृहद जांच कराई गई, जिसमें व्हाइट फंगस होने की जानकारी मिली। डॉ. सिंह ने बताया कि समय पर एंटी फंगल दवाएं देने के बाद मरीज ठीक हो गए।


कोरोना और व्हाइट फंगस में फर्क करना बेहद मुश्किल है। डॉक्टरों ने बताया कि जब मरीज का सीटी स्कैन किया जाता है तो फेफड़े में संक्रमण के लक्षण कोरोना जैसे ही नजर आतेहैं, जिससे अंतर करना बेहद मुश्किल हो जाता है। ऐसे मरीजों का रैपिड एंटीजन और आरटी-पीसीआर टेस्ट भी निगेटिव आता है। डॉक्टरों ने बताया कि अगर सीटी स्कैन में कोरोना जैसे लक्षण दिख रहे हों और जांच में निगेटिव आ रहा हो तो बलगम का कल्चर कराने से व्हाइट फंगस की पहचान की जा सकती है।

जानकारी के अनुसार व्हाइट फंगस की चपेट में वे कोरोना मरीज आ रहे हैं, जो ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं। डॉक्टरों के मुताबिक, व्हाइट फंगस होने की वजह प्रतिरोधक क्षमता की कमी है। इसके अलावा डायबिटीज, एंटीबायोटिक का सेवन या काफी समय तक स्टेरॉयड लेना भी इसका कारण बन रहा है। कैंसर के मरीजों को भी इस फंगस से सावधान रहने की जरूरत है। इसके अलावा नवजातों पर भी इसके असर की संभावना है। महिलाओं में यह ल्यूकोरिया का मुख्य कारण है।


हालांकि, डॉक्टरों को कहना है कि व्हाइट फंगस से बेहद आसानी से बचा जा सकता है। ऑक्सीजन या वेंटिलेटर पर मौजूद मरीजों के उपकरण, खासकर ट्यूब आदि जीवाणु मुक्त होने चाहिए। उनकी बार-बार सफाई होनी चाहिए। ऑक्सीजन सिलेंडर ह्यूमिडिफायर के लिए स्टरलाइज वाटर का इस्तेमाल करना चाहिए। डॉक्टरों ने कहा कि इस फंगस से मरीजों को बचाने के लिए सबसे जरुरी है कि मरीज जो ऑक्सीजन ले रहा है, वह विषाणुमुक्त हो।

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Published: 20 May 2021, 6:14 PM