देखना है दिल्ली चुनाव में शाहीन बाग से किस पार्टी को कितना करेंट लगता है, इसे भुनाने में तो सब लगे थे

दिल्ली विधानसभा चुनाव का प्रचार थम चुका है। इस दौरान एक ऐसा मुद्दा रहा जिस पर हर राजनीतिक दल का फोकस रहा, और वह है शाहीन बाग। लेकिन शाहीन बाग इस सबसे अलग अपने असली मुद्दे सीएए-एनआरसी पर केंद्रित रहा। अब देखना है कि शाहीन बाग का करेंट किसे लगता है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया
user

अफरोज आलम साहिल

दिल्ली विधानसभा चुनाव राजनीति का सबसे अहम मुद्दा ‘शाहीन बाग’ ही रहा, बल्कि यूं कहें कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने ही शाहीन बाग को चुनाव का सबसे बड़ा मसला बना दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ-साथ छोटे-बड़े सभी बीजेपी नेताओं के बयानों ने सियासत का केंद्र शाहीन बाग को बनाए रखा। यह बात दूसरी है कि खुद शाहीन बाग में सियासत कोई खास मुद्दा नहीं रहा। यहां लोग पिछले 50 से भी अधिक दिनों से संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और संभावित एनआरसी के विरोध में लगातार बैठे हुए हैं। बार-बार अफवाहें फैलाकर, हिंदूवादी संगठनों द्वारा उन पर हमला और गोली चलाकर इन्हें डराने की भरपूर कोशिश की जा रही है लेकिन ये प्रदर्शनकारी एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

यह बात इससे ही समझी जा सकती है कि दिल्ली में 8 फरवरी के मतदान, यहां किसकी हार-किसकी जीत की कितनी संभावना वगैरह को लेकर शाहीन बाग में कोई चर्चा करता भी नहीं दिखता। कोशिश भी करें, तब भी इस इलाके के ज्यादातर लोग इस तरह की बातचीत के प्रति उत्साहित तो छोड़िए, तैयार भी नहीं होते। उनका साफ तौर पर कहना है कि हमारे लिए सीएए-एनआरसी के खिलाफ विरोध पहले जरूरी है। जो चुनावी प्रचार यहां पिछले चुनावों में देखने को मिलता रहा है, वह इस बार कहीं नजर नहीं आया। वैसे, कुछ उम्मीदवारों और पार्टी कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर अपना प्रचार जरूर किया और लोगों से अपने पक्ष में वोट करने की अपील की। हां, वे साथ में यह कहना कतई नहीं भूले कि वे भी सीएए-एनआरसी के खिलाफ लड़ाई में पूरी तरह से साथ हैं।


बटला हाउस चौक के करीब चाय की एक दुकान पर कई लोग एक साथ खड़े हैं। इस संवाददाता ने जैसे ही दिल्ली चुनाव को लेकर अपनी बात शुरू की और उनसे सवाल किए कि इस बार क्या रुझान है, तो एक साहब भड़क जाते हैं और उलटा सवाल कर देते हैं, “आप किसी पॉलिटिकल पार्टी से हैं क्या? आप ही बता दीजिए कि किसको वोट दिया जाए?” उन्हें यह बात समझाने में काफी मुश्किल होती है कि पत्रकार हूं। लेकिन इस पर उनका कहना है कि फिर तो आपको शाहीन बाग में होना चाहिए। वह यहीं नहीं रुकते। यह भी कहते हैं कि, “इस बार हर मीडिया संस्थान के पत्रकार सिर्फ शाहीन बाग के प्रदर्शन की खबर करने आ रहे हैं और उनमें से ज्यादातर का मकसद सिर्फ यह है कि कैसे इस शाहीन बाग और पूरे जामिया नगर इलाके को बदनाम किया जाए। कुछ पत्रकार तो इसे कश्मीर तक बता चुके हैं और यह भी कह चुके हैं कि यहां धारा 370 लागू है। काश! मोदी और अमित शाह यहां से भी धारा 370 हटाकर इस इलाके के विकास के बारे में सोचते।“ यह पूछने पर कि क्या सरकार ने विकास कार्य नहीं कराए हैं, इस पर एक दूसरे जनाब का कहना था कि “यहां विकास चाहिए किसको? जब भी हम अपने अधिकार की बात करते हैं, सरकार हिंदू-मुसलमान का राग आलापना शुरू कर देती है।“

वहीं शाहीन बाग के चालीस फुटा चैराहे पर स्थित यादव जी की चाय दुकान पर बीजेपी नेताओं के बयान पर चर्चा रही, लेकिन इलाके की स्थानीय राजनीति को लेकर कोई बात नहीं हुई। वहां भी मौजूद अधिकतर युवाओं का कहना था कि अगर टीवी या सोशल मीडिया न होता या फिर, बीजेपी या आम आदमी पार्टी वाले शाहीन बाग पर बयानबाजी न करते, तो इस बार शायद पता भी नहीं चलता कि दिल्ली में चुनाव भी है। कुछ नौजवान कहते हैं कि आखिरी दिन देखेंगे कि कौन बेहतर उम्मीदवार है, हम उसी को वोट देंगे।

दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर आफताब आलम इन सबको एक अन्य नजरिए से देखते हैं। वह कहते हैं कि, “अगर पॉलिटिकल साइंस के फ्रेम वर्क से देखें तो यह ‘पॉलिटिक्स ऑफ अदराइजेशन’ है। इस तरह की राजनीति में एक खास तबके को इस तरह से पेश किया जाता है कि वह तुम्हारा दुश्मन है। इस देश में बीजेपी इसी तर्ज पर राजनीति करती रही है। वह हमेशा से मुसलमानों को दुश्मन बनाकर पेश करती आई है।“ वह कहते हैं कि, “शाहीन बाग पर लगातार आ रहे नेताओं के बयान सीधे-सीधे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति है। बीजेपी नेताओं को लग रहा है कि वे विकास के नाम पर चुनाव में कामयाब नहीं हो पाएंगे तो उनके लिए यही सबसे आसान रास्ता है कि लोगों को हिंदू-मुसलमान में बांट दो क्योंकि धर्म एक नशा है जिसमें इंसान तमाम बातें भूल जाता है।“


दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन डॉ. जफरुल इस्लाम खान कहते हैं कि “बीजेपी हर चुनाव के पहले ऐसे ही मुद्दे उठाती रही है ताकि मतदाताओं में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो। दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार-प्रसार में जिस तरह के बयान आ रहे हैं और सोशल मीडिया पर जिस तरह के ऑडियो- वीडियो घूम रहे हैं, वे सब उनकी सोची-समझी साजिश है। ऐसे बयानों और ऑडियो-वीडियो संदेशों से फर्क तो जरूर पड़ता है क्योंकि, मेरी नजर में, धर्म के आधार पर कही गई हर बात को नासमझ लोग जल्दी ही मान लेते हैं। मेरी राय में 70 फीसदी लोग बगैर सोचे-समझे भेड़ की तरह वोट देते हैं।“ डॉ. खान की नजर में, शाहीन बाग की तहरीक अब बहुत बड़ी हो चुकी है। वह कहते हैं, “यह तहरीक सिर्फ नागरिकता के मसले की नहीं है बल्कि इस तहरीक को मैं इस तरह से देखता हूं कि मुसलमानों को जो राजनीतिक तौर से हाशिये पर डाल दिया गया था, अब उन्होंने खुद आगे बढ़कर अपने आपको मुख्य राजनीतिक धारा में ढाल लिया है। मैं समझता हूं कि मुसलमानों की सुने बगैर बीजेपी के अलावा कोई भी राजनीतिक पार्टी चुनाव जीत ही नहीं सकती है।“

शाहीन बाग को हर पार्टी अपने हक में भरपूर इस्तेमाल करना चाहती है- बीजेपी इसका विरोध कर, तो लगभग सभी अन्य पार्टियां इसके पक्ष में खड़े होने की बात कहकर। हर पार्टी शाहीन बाग के नाम पर अपनी सरकार बनाने में लगी हुई है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि शाहीन बाग के धरने की वजह से दिल्ली में किस पार्टी को कितना करेंट लगता है।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia