सीबीआई पर इस सर्जिकल स्ट्राइक में सीवीसी के कंधे से क्यों बंदूक चला रही मोदी सरकार? 

करोड़ों रूपए के रिश्वत घोटाले में प्रधानमंत्री कार्यालय के कूद पड़ने से मोदी सरकार भारी मुसीबत में फंस सकती है। कारण है कि सरकार ने सीबीआई में भारी उलटफेर के लिए बंदूक सीवीसी के कंधे पर रखकर चलाई है। लेकिन सीवीसी खुद इस पूरे मामले पर अभी तक खामोश है।

फोटो : सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

सीबीआई में करोड़ों के घूसखोरी के विवाद में प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ के बिना बुलावे कूदने के एक और अहम मामले में मोदी सरकार मुश्किल में फंस सकती है। वजह मोदी सरकार खुद बयान कर रही है कि सीबीआई में चल रही उठापठक को शांत करने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी ने हस्तक्षेप किया। दूसरी ओर - सीवीसी खुद इस पूरे मामले पर अभी तक खामोश है।

सीबीआई में करोड़ों के घूसखोरी के विवाद में प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ के बिना बुलावे कूदने के एक और अहम मामले में मोदी सरकार मुश्किल में फंस सकती है। वजह मोदी सरकार खुद बयान कर रही है कि सीबीआई में चल रही उठापठक को शांत करने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी ने हस्तक्षेप किया। दूसरी ओर - सीवीसी खुद इस पूरे मामले पर अभी तक खामोश है।

सरकार में कई लोगों को इस बात से हैरत है कि सीवीसी जैसी सर्वोच्च स्वायत्ता यानी ऑटोनॉमी वाली संस्था की ओर से सूचना प्रसारण मंत्रालय किस हैसियत से प्रेस नोट जारी कर सकता है? सीवीसी के मुखिया एक रिटायर्ड आईआरएस (भारतीय राजस्व सेवा) अधिकारी के वी चौधरी हैं और वही तीन सदस्यीय सीवीसी के अध्यक्ष हैं। केंद्र ने उन्हें सीबीडीटी के मुखिया पद से रिटायर होने के बाद सीवीसी में बिठाया था। सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका डाली है उसमें उन्होंने सीवीसी के आरोपों को खारिज करते हुए उन्हें जबरन छुट्टी पर भेजने के आदेश को चुनौती दी है और सीवीसी को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है।

हैरानी की बात है कि सीवीसी, जोकि भ्रष्टाचार के मामलों और सरकार की नीतियों पर कड़ी निगरानी रखने वाली सर्वोच्च संस्था है, उसने अभी तक सीबीआई के बाबत न तो खुद जुबान खोली और न ही अपनी वेबसाइट पर कोई प्रेस नोट जारी किया है। अलबत्ता सूचना प्रसारण मंत्रालय की तरफ से जारी प्रेस नोट में सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा पर सीवीसी से असहयोग करने का आरोप लगाया गया, लेकिन जबरन वसूली के आरोप में एफआईआर का सामना करने वाले राकेश अस्थाना के बारे में कोई जिक्र तक नहीं किया गया है।

सीवीसी की ओर से कहा गया है कि उसकी ओर से सीबीआई प्रमुख वर्मा को तीन पत्र लिखे गए, जिसमें अस्थाना के आरोपों का जवाब देने को कहा गया था, लेकिन वर्मा से कोई जवाब नहीं मिला। सीवीसी प्रमुख कहते हैं कि सीबीआई ने उसे आश्वस्त किया था कि वह तीन सप्ताह में सभी फाईलों के रिकॉर्ड ठीक कर लेगें लेकिन जानबूझकर आयोग के काम में रोड़े अटकाए जाते रहे। सीबीआई निदेशक पर यह भी आरोप लगाया गया है कि उनके व्यवहार के कारण जांच ऐजेंसी में आक्रामक माहौल पैदा हुआ है।

सीवीसी की ओर से कहा गया कि सीबीआई के कामकाज की देखरेख करने वाली संस्था के तौर पर सीवीसी एक्ट 2003 के अनुच्छेद 8, और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत सीबीआई मुखिया आलोक कुमार वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को अगले आदेश तक उनके दायित्वों से मुक्त किया जाता है। यह भी कि सरकार ने अनुच्छेद 4 (2) के तहत अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए अपने पास उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर प्राकृतिक न्याय के हित में दोनों अधिकारियों को उनके दायित्वों से अलग किया है।

गौरतलब है कि हाल के वर्षों में सीवीसी ने खुद कॉमनवेल्थ, टूजी और कोयला घोटालों की जांच का काम भी अपने हाथ में लिया था। एक स्वायत्त संस्था होने के बावजूद सीवीसी पर अपने कामकाज के लचर और ढुलमुल तौर तरीकों से काम करने के आरोप लगते रहे हैं।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को कैबिनेट बैठक के बाद कहा कि सीबीआई के मामलों में प्रधानमंत्री ने सीवीसी की सिफारिश के आधार पर फैसला लिया है। उनका कहना था कि दोनों ही वरिष्ठ अधिकारियों को छुट्टी पर भेजने का मकसद उनके द्वारा एक दूसरे पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की स्वतंत्र एसआईटी से जांच करना था। उनका कहना था कि इस तरह के मामलों की जांच कराने में सीवीसी ही सक्षम है।

सीबीआई हलकों में पिछले कई दिनों से इस बात की चर्चाएं गर्म रही हैं कि मीट कारोबारी मोईन कुरैशी के खिलाफ चल रही जांच के अलावा दोनों शीर्ष अधिकारियों के बीच और भी काफी कुछ ऐसा पक रहा था, जिसके पटापेक्ष से मोदी सरकार की जड़ें हिल सकती थीं। चूंकि, राकेश अस्थाना प्रधानमंत्री मोदी से उनके गुजरात कनेक्शन के कारण जाने जाते रहे हैं, इसलिए राफेल घोटाले की जांच के मामले में अपने बॉस वर्मा के पास लंबित पड़ी शिकायत पर भी वे स्वाभाविक तौर पर निगाह रखे हुए थे। जाहिर है कि इस चुनावी साल में राफेल मामले की सीबीआई जांच से मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जांच कराए जाने की याचिका दायर करने से पहले इस माह के शुरु यानी 4 अक्टूबर को दो पूर्व केंद्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी के साथ सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने सीबीआई हेडक्वार्टर में एजेंसी के डायरेक्टर आलोक वर्मा से मुलाकात की थी और उन्हें राफेल सौदे से जुड़े दस्तावेज उपलब्ध कराते हुए राफेल सौदे की जांच और आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग की थी। यह पूरा मामला अभी सीबीआई प्रमुख के विचाराधीन था।

यहां यह भी जानना जरूरी है कि आलोक वर्मा की सिन्हा, शौरी और भूषण से सीबीआई डायरेक्टर के कार्यालय में मुलाकात पर मोदी सरकार में शीर्ष स्तर पर गहरी नाराजगी जाहिर की गई थी। सूत्र बताते हैं कि पीएमओ की ओर सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को यह संदेश भिजवाया गया था कि राजनीतिक लोगों या किसी भी मामले में शिकायतकर्ताओं को सीबीआई हेडक्वार्टर में बुलाकर ज्ञापन लेकर गलत नींव डाली गई है।

गौरतलब है कि इन तीनों ने आलोक वर्मा से लोधी रोड स्थित सीबीआई हेडक्वार्टर में करीब 45 मिनट की मुलाकात की थी और उन बिंदुओं को विस्तार से सामने रखा था, जिसके तहत राफेल सौदे में भ्रष्टाचार और घोटाले की तरफ इशारा होता है। इस मुलाकात के बारे में सरकार के एक मंत्री ने कहा था कि अगर कोई सीबीआई में शिकायत करने आता भी है, तो उसे स्वागत कक्ष से ही वापस जाने को कहा जाता है। किसी सीबीआई अधिकारी से मुलाकात भी नहीं करने दी जाती।

इधर पिछले तीन-चार महीने से राफेल रक्षा सौदे में चूंकि छींटे सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर पड़ चुके हैं, इसलिए सीबीआई मुख्यालय इस मामले पर शुरू से एकदम मौन साधे हुए है। सीबीआई के लिए राफेल पर जांच का मामला टेढ़ी खीर इसलिए भी है, क्योंकि देश की यह सर्वोच्च जांच एजेंसी सीधे प्रधानमंत्री के प्रशासनिक नियंत्रण में आती है और राहुल गांधी समेत समूचा विपक्ष उन पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगा चुका है।

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