आखिर क्यों हो नीट जरूरी! जस्टिस राजन कमेटी ने उठाए सवाल, कहा- इससे कुछ छात्रों को ही मिलेगा लाभ

जस्टिस ए के राजन समिति का इस साल जून में गठन किया गया और इसने इस विषय पर आम लोगों की भी राय मांगी थी। उसे 86 हजार लोगों के सुझाव मिले जिनमें से 65 हजार ने नीट का विरोध किया था जबकि 18 हजार ने इसे सही बताया था।

फोटो : सोशल मीडिया
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शालिनी सहाय

क्या सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए होने वाले नेशनल एलिजिबिलिटी एट्रेन्स टेस्ट (नीट) राष्ट्रहित के खिलाफ है? न्यायमूर्ति (रिटायर्ड) ए के राजन समिति को ऐसा ही लगता है और इसी वजह से उसने तमिलनाडु सरकार को सुझाव दिया है कि वह नीट से पीछा छुड़ाने के कानूनी और वैधानिक उपाय करे।

इस समिति की रिपोर्ट का असर पूरे देश के छात्रों पर पड़ने जा रहा है। समिति ने नीट की वैधता पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि केंद्र सरकार राज्यों के अधिकार क्षेत्र का हनन नहीं कर सकती। इसका कहना है कि राज्य यूनिवर्सिटी, मेडिकल कॉलेज और अस्पताल खोलते हैं और इसमें दाखिले का अधिकार केंद्र सरकार अपने हाथ में नहीं ले सकती।

समिति का कहना है कि नीट सीबीएसई के छात्रों, संपन्न छात्रों, अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों और कोचिंग इंस्टीट्यूट का मददगार है और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। सीबीआई ने एक रैकेट का पर्दाफाश किया है जिसमें नागपुर की एक शैक्षिक सलाहकार फर्म पर आरोप है कि वह 50 लाख रुपये लेकर छात्रों की जगह किसी और को नीट परीक्षा में बैठाती थी। इस खुलासे से राजन समिति की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने की बात की पुष्टि भी हो जाती है।

हाल ही में तमिलनाडु विधानसभा ने राज्य के लिए नीट की बाध्यता खत्म करने का विधेयक पारित किया जो अभी राष्ट्रपति के पास लंबित है। इसे मंजूरी मिलने की संभावना नहीं ही है क्योंकि बेशक इस विधेयक को सभी दलों का समर्थन हो लेकिन भाजपा इसके खिलाफ है। दिलचस्प बात यह है कि गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए नरेंद्र मोदी ने नीट का विरोध किया था लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में 2013 के उस फैसले को पलट दिया तो उन्होंने ही नीट का रास्ता साफ किया। गुजरात, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश समेत तमाम राज्यों ने नीट का विरोध किया था। बहरहाल, 2017-18 से यह लागू हो गया। समिति की रिपोर्ट ने सियासी रंग ले लिया है। तमिलनाडु भाजपा ने समिति पर राजनीतिक पक्षपात का आरोप लगाया है।

न्यायमूर्ति राजन कहते हैं कि एम्स और पीजीआई-जैसे कॉलेज और शोध संस्थान अब भी दाखिले के लिए अपनी अलग परीक्षा लेते हैं। ऐसे में, जब राष्ट्रपति की ओर से बिल को मंजूरी मिल जाती है तो हाईस्कूल के नंबर के आधार पर तमिलनाडु के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला होगा और जो छात्र प्रीमियर इंस्टीट्यूट या डीम्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना चाहेंगे, उन्हें ऐसा करने की पूरी आजादी होगी। वह कहते हैं कि चूंकि ‘शिक्षा’ संविधान की समवर्ती सूची वाला विषय है, केंद्र सरकार राज्यों के साथ सलाह-मशविरा करके संस्थानों को चलाने के नियम-कानून तो बना सकती है लेकिन यूनिवर्सिटी को चलाने के राज्यों के अधिकार का अतिक्रमण नहीं कर सकती। समिति की दलील है कि चूंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य और अस्पताल राज्य सरकार की जिम्मेदारी हैं, मेडिकल कॉलेज में दाखिले का काम केंद्र सरकार अपने हाथ में नहीं ले सकती। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नीट संविधान की मूल भावना और संघवाद के सिद्धांत के खिलाफ है ।

जस्टिस राजन कहते हैं कि भारत कोई एकरूप देश नहीं। ग्रामीण छात्रों की शहरी छात्रों से, उत्तर प्रदेश के छात्र की तमिलनाडु के छात्रों से या फिर पॉश-निजी स्कूलों में पढ़ने वालों की गांवों के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वालों से तुलना नहीं की जा सकती।


समिति का इस साल जून में गठन किया गया और इसने इस विषय पर आम लोगों की भी राय मांगी थी। उसे 86 हजार लोगों के सुझाव मिले जिनमें से 65 हजार ने नीट का विरोध किया था जबकि 18 हजार ने इसे सही बताया था।

समिति का कहना है कि नीट ने जैसे कोचिंग संस्थानों के लिए मनमानी फीस वसूलने का माहौल तैयार कर दिया है। बिना कोचिंग छात्र तीन घंटे में 180 सवालों का जवाब नहीं दे सकते और ऐसे में वे परीक्षा पास नहीं हो पाते। ज्यादातर छात्र कोचिंग की फीस देने की स्थिति में नहीं होते, इसलिए मेडिकल में दाखिला नहीं ले पा रहे। नीट में उम्र की कोई पाबंदी नहीं या कई बार प्रयास किए जा सकते हैं, इसलिए मेडिकल कॉलेजों में ‘रिपीटर्स’ की संख्या तेजी से बढ़ी है। मेडिकल पढ़ने वाले ऐसे भी छात्र हैं जिन्होंने आठवीं कक्षा से ही कोचिंग शुरू कर दी थी, तो कई ने स्कूल पास होने के बाद 2-3 साल कोचिंग करके नीट में बैठने का विकल्प चुना। जस्टिस रमन कहते हैं कि कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट ने छात्रों को स्कोरिंग मशीन बनाने की कोशिश की है। छात्रों के नीट और कोचिंग पर ध्यान केंद्रित करने के साथ खास तौर पर विज्ञान विषयों में स्कूल में सिखाने पर ध्यान काफी कम हो गया है। इतना ही नहीं, नीट के बाद मेडिकल छात्रों की औसत आयु भी अधिक हो गई है। समिति ने एक रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी को नीट पास कर मेडिकल कॉलेज में पढ़ते भी पाया।

तमिलनाडु के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में नीट के बाद अन्य राज्यों के छात्रों की संख्या बढ़ गई है। जाहिर है, ये छात्र चिकित्सा शिक्षा पूरी होने के बाद अपने राज्य लौट जाएंगे। नतीजा, तमिलनाडु को आने वाले समय में डॉक्टरों की कमी का सामना करना पड़ेगा। तमिलनाडु के लगभग हर जिले में अब एक मेडिकल कॉलेज होने के कारण यह सुनिश्चित करने का इरादा था कि जिले के छात्र चिकित्सा शिक्षा प्राप्त करें और उन्हीं जिलों में सेवा करें।

न्यायमूर्ति राजन सवाल करते हैं, ‘सीबीएसई, संपन्न परिवारों और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के कितने छात्र गांवों में सेवा करना चाहेंगे?’ राजन का मानना है कि अगर नीट जारी रहता है तो तमिलनाडु आजादी से पहले के अपने उस दौर में पहुंच जाएगा जब मद्रास में भी चिकित्सा स्नातक दुर्लभ थे।

ऐसी ही आशंका अन्य राज्यों ने भी व्यक्त की। डेरेक ओ’ब्रायन कहते हैं कि राज्य सरकार जनता के पैसे से मेडिकल कॉलेज खोलती है और अगर उसमें दूसरे राज्यों के छात्रों को बड़ी संख्या में दाखिला दे दिया जाता है, तो यह उस राज्य के लोगों और करदाताओं के साथ नाइंसाफी होगी।

न्यायमूर्ति राजन समिति ने यह भी पाया कि निजी मेडिकल कॉलेज 30 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये या उससे अधिक की फीस वसूल रहे हैं। लेकिन जब दाखिले की बात आई तो निजी मेडिकल कॉलेजों ने नीट में सिर्फ 22 फीसदी अंक हासिल करने वाले छात्रों को दाखिला दे दिया। आखिर यह कैसी योग्यता है?


जनवरी, 2018 में एनईईटी की मेरिट सूची को ‘प्रतिशत से पर्सेंटाइल’ में कैसे बदला गया, इसका विवरण मांगने वाले एक आरटीआई आवेदन के जवाब में केंद्र सरकार ने दिसंबर, 2018 में यह जवाब भेजा: ‘आपको सूचित किया जाता है कि चूंकि प्रतिशत से पर्सेंटाइल सिस्टम में परिवर्तन के संबंध में फाइल ट्रेस करने योग्य नहीं है, इसलिए जानकारी / दस्तावेज प्रदान नहीं किए जा सकते हैं’।

समिति का मानना है कि राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) अनुचित आचार और किसी छात्र के बदले किसी और के परीक्षा देने पर रोक लगाने में सक्षम नहीं। ऐसे कुछ ही मामले प्रकाश में आए हैं और समिति का मानना है कि ऐसे ज्यादातर मामले सामने आ ही नहीं पाते। समिति का अंदाजा है कि देश के कई हिस्सों में दलालों और एजेंसियां उग आई हैं जो मोटा पैसा लेकर किसी और से परीक्षा दिलवा देती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘मेरिटोक्रेसी’ के नाम पर ‘वंशानुगत अभिजात वर्ग’ को स्थापित किया जा रहा है।

समिति का निष्कर्ष है- नीट के जाने का समय आ गया है।

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