एक्सक्लूसिव: आलोक वर्मा पर बैठक में डरे हुए दिखे प्रधानमंत्री, हर हाल में उन्हें सीबीआई से हटाना चाहते थे- खड़गे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी भी हाल में आलोक वर्मा को सीबीआई से हटाना चाहते थे, और वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। इसके पीछे उनका डर था। यह कहना है विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का जो उन्होंने एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कहीं।

फोटो : सोशल मीडिया
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ऐशलिन मैथ्यू

लोकसभा में विपक्ष नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा के बारे में फैसला करने के लिए बुलाई गई उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी की बैठक से पहले ही प्रधानमंत्री तय कर चुके थे कि उन्हें हटाना है। इतना ही नहीं उनका बस चलता तो वह पहले ही दिन आलोक वर्मा को हटा देते।

नेशनल हेरल्ड से एक्सक्लूसिव बातचीत में खड़गे ने बताया कि कैसे समिति की पहली बैठक में ही पीएम जल्द से जल्द आलोक वर्मा पर फैसला करना चाहते थे। लेकिन जब खड़गे ने कहा कि कम से कम सीवीसी की रिपोर्ट को पढ़ने का वक्त तो मिलना चाहिए, और इस पर जस्टिस ए के सीकरी ने जब सहमति जताई, तो मजबूरी में पीएम को यह बात माननी पड़ी, और वे अगले दिन फिर इस मुद्दे पर मिलने के लिए तैयार हुए।

खड़गे ने बताया कि सीवीसी की रिपोर्ट 9 जनवरी को रात में उन्हें दी गई। इसके बाद 10 जनवरी को फिर से उच्चाधिकार प्राप्त समिति प्रधानमंत्री निवास पर शाम 4 बजे मिली। इस बैठक में खड़गे ने कहा कि आलोक वर्मा ने सीवीसी और जांच की निगरानी करने वाले जस्टिस (रिटायर्ड) ए के पटनायक के सामने जो बयान दिया है, वह भी उन्हें दिया जाए, लेकिन इससे इनकार कर दिया गया। खड़गे के मुताबिक, “प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय के अधिकारी इस बात के लिए तैयार ही नहीं हुए कि वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में जो बयान दिया है, वह भी उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बैठक में सदस्यों के सामने रखा जाए।”

खड़गे ने बैठक के दौरान राय दी थी कि चूंकि आलोक वर्मा के खिलाफ कुछ भी साबित नहीं हुआ है, इसलिए उन्हें एक मौका और दिया जाए। लेकिन प्रधानमंत्री इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसके बजाए प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्मा ने ‘गलती की है’ इसलिए उन्हें हटना पड़ेगा। जस्टिस सीकरी ने भी पीएम की बात का समर्थन किया।

मल्लिकार्जुन खड़गे के मुताबिक, “मैंने बार-बार कहा कि आलोक वर्मा के खिलाफ कुछ भी साबित नहीं हुआ है, यहां तक की सीवीसी ने भी लिखा है कि वर्मा पर लगाए गए आरोप सही नहीं हैं।” उन्होंने कहा कि, “जब रिपोर्ट ही साफ नहीं है और एकतरफा है तो फिर इस पर भरोसा कैसे किया जा सकता है?”

उन्होंने बताया कि यूं तो इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के प्रतिनिधि जस्टिस ए के सीकरी और उन्हें ही होना था, लेकिन प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा, प्रधानमंत्री कार्यालय में कार्मिक मंत्रालय के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह के अलावा कई एडीशनल सेक्रेटरी भी शामिल थे, जो प्रधानमंत्री की मदद कर रहे थे। जबकि जस्टिस सीकरी और खड़गे हर बात का खुद ही जवाब दे रहे थे।

खड़गे ने बताया कि, “वह हर हाल में उन्हें हटाकर पिछले व्यक्ति को इंचार्ज बनाना चाहते थे। यह तो उनके दिमाग में पहले से तय था, लेकिन फिर भी उन्होंने नहीं बताया कि वर्मा को हटाने के बाद वे किसे सीबीआई की इंचार्ज बनाएंगे।” खड़गे बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्मा को सीबीआई में बहाल करने के बाद से प्रधानमंत्री कार्यालय की बेचैनी साफ महसूस की जा सकती थी।

उन्होंने खुलासा किया कि उनका इरादा इस फैसले को लेकर कोई असहमति का पत्र लिखने का नहीं था और वे पहले से कोई भी पत्र लिखकर नहीं ले गए थे। वे तो सिर्फ कुछ नोट लिखकर ले गए थे, जो बैठक में बातचीत के दौरान काम आते। लेकिन तीन घंटे चली बैठक के बाद उन्हें लगा कि असहमति का नोट तो देना ही चाहिए।

खड़गे ने बताया कि ‘प्रधानमंत्री की बेचैनी शायद इसलिए थी कि आलोक वर्मा राफेल सौदे को लेकर की गई शिकायत पर जांच करना चाहते थे या फिर कोई और केस है जो सीबीआई के पास है। लेकिन एक बात तो साफ थी कि पीएमओ किसी भी हाल में वर्मा को सीबीआई से बाहर करने पर तुला हुआ था।’

आलोक वर्मा को अपनी बात कहने का मौका न दिए जाने पर अफसोस जताते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि अब यह साफ हो चुका है कि सीवीसी के वी चौधरी ने आलोक वर्मा से मिलकर राकेश अस्थाना के पक्ष में दबाव बनाया था। उन्होंने बताया कि, ‘अगर लोक वर्मा अस्थाना के खिलाफ की गई टिप्पणियां वापस ले लेते तो मामला वहीं सुलट जाता।’ यह बात आलोक वर्मा ने जस्टिस पटनायक को लिखित में बताई थी।

खड़गे ने कहा कि, “इसका अर्थ तो यही है कि सीवीसी पक्षपात कर रहा था और उसकी रिपोर्ट को एक तरफा ही माना जाएगा। ऐसी रिपोर्ट को सीबीआई डायरेक्टर के खिलाफ कार्रवाई का आधार कैसे बनाया जा सकता है।“

“मुझे लगता है कि पीएम किसी बात को लेकर आशंकित थे। उन्हें किसी न किसी बात का तो डर था। मैंने यह बात साफ महसूस की जब बहाली के एक घंटे के अंदर ही वे आलोक वर्मा को हटाना चाहते थे।“

खड़गे ने आशंका जताई कि जब आलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना के खिलाफ शिकायत वापस लेने से इनकार कर दिया तो पीएमओ को लगा होगा कि कहीं आलोक वर्मा प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई कार्रवाई न कर दें, और इसीलिए जल्दबाज़ी में उन्हें हटा दिया गया।

खड़गे ने कहा कि, “भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का पीएम का दावा एकदम गलत है।” उन्होंने कहा कि लोकायुक्त एक्ट 6 साल पहले पास हो चुका है, लेकिन करीब पांच साल से सत्ता में होने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी इस कानून में संशोधन करने को तैयार नहीं हैं जिसके तहत लोकसभा में विपक्ष के नेता के बजाए लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को सर्च कमिटी का सदस्य बनाया जा सके। इसका अर्थ है कि आपकी मंशा ही ठीक नहीं है।“

मल्लिकार्जुन खड़गे ने आलोक वर्मा मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीवीसी रिपोर्ट और जस्टिस पटनायक की रिपोर्ट सार्वजनिक किए जाने की मांग की है। इसे लेकर मंगलवार को खड़गे ने पीएम मोदी को एक पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने कहा है, “सीवीसी की जांच रिपोर्ट, जस्टिस एके पटनायक की जांच रिपोर्ट और चयन समिति की बैठक का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए, ताकि लोग इस मामले में निष्कर्ष पर पहुंच सके।”

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