आखिरकार महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश हुआ, पास हुआ तो लोकसभा में हर तीसरी सांसद होगी महिला

केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया है। इसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम का नाम दिया गया है। लेकिन इस बिल के पास होने के बाद भी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में महिलाओं को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।

लोकसभा का दृश्य
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नवजीवन डेस्क

बरसों तक महिला आरक्षण के मुद्दे पर मुंह छिपाती रही बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने आखिरकार नई संसद के पहले ही दिन महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया। मोदी सरकार ने इस बिल को 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' नाम दिया है। इस बिल के पास होने के बाद लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलना सुनिश्चित हो जाएगा। एक तरह से समझें तो लोकसभा और विधानसभा में हर तीसरा सदस्य एक महिला होगी।

नई संसद में कामकाज शुरु होते ही केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस बिल को पेश किया। इस बिल के पास होने के बाद मौजूदा लोकसभा में 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। इसी तरह उत्तर प्रदेश विधानसभा की कुल 403 सीटों में से 133 सीटें महिलाओं के हिस्से में आएंग, और दिल्ली की बात करें तो दिल्ली विधानसभा में कुल 70 में से 23 सीटें महिलाओं के लिए होंगी। इस विधेयक के अनुच्छेद 239 एए के तहत राज्य विधानसभाओं में भी महिला आरक्षण की व्यवस्था का प्रावधान है।

लेकिन अहम बात यह है कि जो बिल लोकसभा में पेश किया गया है, उसके मुताबिक महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण फिलहाल पंद्रह साल के लिए दिया जाएगा और उसके बाद भी उसे जारी रखने के लिए फिर से बिल लाना पड़ेगा।

इतिहास की बात करें तो इस बिल को कई बार पास कराने की पूर्व में कोशिश की जा चुकी है। सबसे ताजा मामला 2010 का है जब कांग्रेस की अगुवाई वाली मनमोहन सिंह सरकार ने भारी विरोध के बावजूद महिला आरक्षण को राज्यसभा में पास कर दिया गया था, लेकिन लोकसभा से बिल पास नहीं हो पाया था।

इस बिल को लेकर कई राजनीतिक दलों की मांग थी कि इसमें एससी-एसटी महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था हो, लेकिन जो बिल पेश किया गया है, उसमें मौजूदा आरक्षण के भीतर ही महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यानी लोकसभा और विधानसभाओं में फिलहाल जितनी सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं, उन्हीं में से महिलाओं के लिए भी 33 फीसदी सीटें होंगी।

मसलन वर्तमान में लोकसभा की 84 सीटें अनुसूचित जाति यानी एससी और 47 सीटें अनुसूचित जनजाति यानी एसटी के लिए आरक्षित हैं। महिला आरक्षण बिल आने के बाद एससी की 84 में से 38 सीटें और एसटी की 47 में से 16 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। लोकसभा में फिलहाल ओबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं है और वर्तमान में ओबीसी उम्मीदवारों को एससी-एसटी सीटें हटाने के बाद यानी कुल बची 412 सीटों में ही चुनाव लड़ना होता है।


एक और महत्वपूर्ण बात है कि महिला आरक्षण लागू होने के बाद ऐसा नहीं होगा कि महिलाएं सिर्फ आरक्षित सीटों से ही चुनाव लड़ सकेंगी। उन्हें बाकी बची सीटों पर भी चुनाव लड़ने की आजादी होगी।

एक और अहम बात है कि महिला आरक्षण लागू होने के बाद भी राज्ययसभा और जिन राज्यों में विधान परिषद है वहां महिलाओं के लिए आरक्षण नहीं होगा। यह बिल सिर्फ लोकसभा और विधानसभाओं में ही महिला आरक्षण की व्यवस्था करता है।

हालांकि अभी स्पष्ट नहीं है कि बिल के पास होने के बाद इसे कब से लागू किया जाएगा, लेकिन कहा जा रहा है कि बिल की व्यवस्था परिसीमन के बाद ही लागू होगी। नियमानुसार परिसीमन 2026 में होना है, और उससे पहले जनगणना भी होना जरूरी है क्योंकि 2011 के बाद से जनगणना नहीं हुई है। ऐसे में अगले साल यानी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में इस बिल के तहत महिला आरक्षण लागू होने की संभावना नहीं है।

ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि सरकार को यह सारी बात अच्छे से पता है और वह सिर्फ इस घोषणा के बहाने चुनाव में इसे भुनाना चाहती है।

वैसे संसद का विशेष सत्र शुरु होने से ऐन पहले पत्रकारों से बात करते हुए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि, ‘यह भले ही छोटा सत्र है, लेकिन काफी अहम है...’, उसके बाद से ही कयास लग रहे थे कि सरकार महिला आरक्षण बिल लेकर आने वाली है। देर शाम हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक से इन कयासों को हवा मिली और सूत्रों के हवाले से खबर आ गई कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दे दी है। इसके बाद ही केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण राज्यमंत्री प्रहलाद पटेल ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री को इसके लिए बधाई भी दे दी, और जल्द ही उस ट्वीट को डिलीट भी कर दिया। लेकिन तीर कमान से निकल चुका था।

दरअसल जिस तरह से बीते कुछ दिनों में कांग्रेस ने महिला आरक्षण को लेकर माहौल बनाया था, उससे मोदी सरकार दबाव में नजर आ रही थी। वैसे भी बीते वर्षों में महिला आरक्षण पर खासतौर से उन दलों के बीच एक तरह की आम सहमति बन चुकी थी जो इंडिया गठबंधन में शामिल हैं। इसके अलावा कल ही प्रहलाद पटेल की सोशल मीडिया पोस्ट से पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और एनसीपी नेता सुप्रिया सुले के साथ ही तमाम नेता मोदी सरकार से महिला बिल पास कराने का आग्रह कर इस मुद्दे पर अपनी मंशा जता चुके थे।


कांग्रेस कार्यसमिति की हैदराबाद में हुई बैठक के बाद कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर महिला आरक्षण बिल पर कांग्रेस के समर्थन की बात की थी। इसी तरह का पत्र 2018 में राहुल गांधी ने भी लिखा था।

इतना ही नहीं, आज सुबह जब संसद जाते हुए सोनिया गांधी से पत्रकारों ने महिला आरक्षण पर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा था, 'यह हमारा अपना बिल है...।'

इस पूरे मुद्दे पर बीजेपी को शर्मिंदा करने के लिए बीजेपी नेताओं और बीजीपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय के पुराने ट्वीट भी सामने आ चुके हैं जिसमें उन्होंने महिला आरक्षण विधेयक का मजाक उड़ाया था और इसका समर्थन करने के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी का मजाक उड़ाया था।

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