योगी सरकार के दावे तो हैं लाखों करोड़ के निवेश के, लेकिन जमीन पर नहीं दिख रहे कारखाने, RTI ने खोल दी सारी पोल

सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत आवेदन पर उत्तर प्रदेश सरकार ने जो आधी-अधूरी जानकारी दी है उसे आधार पर कहा जा सकता है कि गाजे-बाजे के साथ दावे भले ही लाखों करोड़ के निवेश किए जा रहे हों, जमीनी हकीकत यह है कि कारखाने तो कहीं दिख ही नहीं रहे।

सोशल मीडिया
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के संतोष

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस वार्षिक रैंकिंग में उत्तर प्रदेश उछलकर दूसरे रैंक में पहुंच गया है और योगी आदित्यनाथ सरकार के अफसर-मंत्री इसे लेकर काफी उछल-कूद कर रहे हैं लेकिन सबकुछ कागजी ही है। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत नवजीवन को मिली आधी-अधूरी जानकारी और जमीन पर की गई जांच-पड़ताल बताती है कि उद्योगों को लगाने के प्रयास सिरे नहीं चढ़ रहे और सबकुछ जस का तस है।

पहले तो यही जानने की जरूरत है कि यह ‘उपलब्धि’ है क्या जिसका इतना गाजा-बाजा बजाया जा रहा है। केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने स्टेट बिजनेस रिफॉर्म एक्शन प्लान (बीआरएपी), 2019 की रिपोर्ट जारी करते हुए पिछले 5 सितंबर को बताया कि केन्द्र सरकार के उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ने राज्यों को 186 सुधार कार्यक्रम लागू करने को कहा था। इसमें उद्योगपतियों से फीड बैक मांगे गए थे। इनमें जो सूचनाएं हासिल हुईं, उनके आधार पर ही यूपी को ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में दूसरा स्थान मिला है। साफ है कि ईज ऑफ डूइंग का कोई संबंध निवेश और नए उद्योगों के लगने आदि से नहीं है।

इस कागजी उपलब्धि से अलग, उद्योगों को लगाने या इसके लिए निवेश आमंत्रित करने के मामले में यूपी सरकार का हाल अब भी बेहतर नहीं है। आरटीआई के तहत नवजीवन को मिली सूचना से पता चलता है कि यूपी में पिछले दस वर्षों के दौरान यूपी सरकार ने जबसे इन्वेस्टर्स कॉन्क्लेव या इनवेस्टर्स समिट करना आरंभ किया है, तबसे निवेश और कम ही हो रहा है। मार्च, 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के लगभग एक साल के अंदर ही 21 और 22 फरवरी को लखनऊ में हुए यूपी इन्वेस्टर्स समिट में 1,045 एमओयू हुए जिनमें 4.28 लाख करोड़ रुपये निवेश का आश्वासन किया गया। लेकिन 2016-17 में 22,813.39 करोड़ और 2017- 18 में 14,627.92 करोड़ रुपये के निवेश हुए। इससे पहले समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में दो इन्वेस्टर्स समिट आयोजित किए। दिल्ली में 12 जुलाई, 2014 को हुए पहले सम्मेलन में 42,461 करोड़ रुपये के 22 समझौता ज्ञापन (एमओयू) हुए। लेकिन 2014-15 में 7,671.20 करोड़ रुपये का ही निवेश हुआ। 2015 में 10 सितंबर को मुंबई सम्मेलन में भी 50 एमओयू तो 36,353 करोड़ रुपये के हुए, पर निवेश हुए 2015-16 में 6,566.63 करोड़ रुपये।

लेकिन इन आंकड़ों से खुश होने की जरूरत नहीं है। दरअसल, आरटीआई में जानकारी मांगी गई थी कि किन- किन कंपनियों ने कब-कब किस-किस उद्योग में कितनी- कितनी राशि का प्रस्ताव किया और वास्तव में कितना निवेश किया है। इसके जवाब में कहा गया कि कंपनियों द्वारा किए गए निवेश के विवरण तीसरी पार्टी की सूचना होने की वजह से शेयर नहीं किए जा सकते। यही वह पेंच है जहां असली सूचना है। उद्योग विभाग के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि जितना निवेश सरकार बता रही है, उससे आप यह नहीं कह सकते कि इतने करोड़ रुपये के उद्योग लग गए हैं और उनमें उत्पादन शुरू हो गए हैं।


सिर्फ चुनावी मंचों पर नौकरियां

सरकार का दावा है कि साढ़े चार साल में दो लाख करोड़ से अधिक का निवेश हुआ और 28 लाख से अधिक युवाओं को रोजगार मिला। इन्वेस्टर समिट की 43 फीसदी परियोजनाएं धरातल पर उतरने को तैयार हैं। 48707.49 करोड़ की 156 परियोजनाएं कार्यान्वित हो चुकी हैं जबकि 63,955 करोड़ की 174 परियोजनाएं प्रक्रिया में हैं। इनके अलावा 86,261 करोड़ की 429 परियोजनाओं को भी जरूरी सुविधाएं मिल चुकी हैं। विभिन्न औद्योगिक विकास प्राधिकरण की तरफ से उद्यमियों को अपने उद्योग लगाने के लिए करीब 740 एकड़ भूमि दी गई है जिसमें 1,097 भूखंड आवंटित हुए हैं। कोविड-19 के संकट काल में भी करीब 45 हजार करोड़ रुपये के नए निवेश के प्रस्ताव सरकार को मिले हैं। इसी दौरान चीन से सैमसंग डिस्पले यूनिट 4,800 करोड़ रुपये की उत्तर प्रदेश के नोएडा में स्थापित हुई है। लेकिन जमीन पर कुछ दिख नहीं रहा। पहले तो निवेश सम्मेलन में होटल के खाली कमरों का ही 1.80 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। दोनों सम्मेलन के बाद एक साथ ही इसका भुगतान किया गया। इसमें गड़बड़ी की शिकायत सीएम से की गई। प्रमुख सचिव ने जांच की और करीब एक साल बाद 2020 में सिर्फ पर्यटन निदेशालय के तृतीय श्रेणी के कर्मचारी परिजात पांडेय को ही दोषी पाया गया।

उधर, प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अमूल को छोड़कर कोई बड़ी इंडस्ट्री स्थापित नहीं हो सकी है। करीब 200 करोड़ के निवेश से स्थापित हो रहे प्लांट का काम भी अभी अंतिम चरण में है। इस प्लांट की योजना सपा सरकार में बनी थी। कानपुर में भी वास्तविक निवेश भविष्यकाल में ही हो रहा है। योगी सरकार के इन्वेस्टर समिट के बाद यहां 65,000 करोड़ के निवेश का दावा किया गया। लेकिन आईआईए, कानपुर चैप्टर के राष्ट्रीय अध्यक्ष जय हेमराजानी का कहना है कि ‘कानपुर में 500 करोड़ का भी निवेश नहीं होगा। सरकार को इंडस्ट्री को सहूलियत देनी होगी।’ वहीं, रिमझिम इस्पात ने सरकार के साथ 550 करोड़ का एमओयू यह कहते हुए रद्द कर दिया कि विभागीय अफसर उत्पीड़न कर रहे हैं। वीवो, नोकिया, हायर, एनटीपीसी, आईओसी, आईटीसी-जैसी दो दर्जन से ज्यादा मल्टीनेशनल कंपनियों की परियोजनाओं का अता-पता नहीं है।


खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर के लिए इन्वेस्टर समिट में 12,000 करोड़ के एमओयू हुए। पर निवेश 1,000 करोड़ का भी नहीं हुआ। सरिया की प्रमुख फैक्ट्री गैलेंट के विस्तार और अंकुर उद्योग की सरिया फैक्ट्री में 700 करोड़ का निवेश हुआ। दोनों फैक्ट्रियों का काम योगी सरकार के आने के पहले से चल रहा था। मुंबई की अवाडा कंपनी ने इन्वेस्टर समिट में 8,450 करोड़ की लागत से 1,550 मेगावाट के सोलर एनर्जी प्लांट को लेकर एमओयू किया था। सहजनवां में 250 एकड़ को लेकर किसानों से सहमति पत्र लेने के बाद मामला स्टॉप डयूटी की छूट को लेकर फंस गया। बथवाल ब्रदर्स के पवन बथवाल का कहना है कि ‘दस होटल के लिए 10 हजार करोड़ का निवेश प्रस्ताव जमीन की उपलब्धता नहीं होने से पूरा नहीं हो रहा है।’ अडानी समूह का 400 करोड़ रुपये से कौशल विकास केन्द्र खोलने का प्रस्ताव भी हवा में है। दक्षिण भारत की क्रॉकरी की एक प्रतिष्ठित कंपनी ने 2.50 एकड़ में उद्योग लगाने के लिए औपचारिकता पूरी कर ली लेकिन जमीन और बिजली दरों को देखते हुए पांव पीछे खींच लिया।

चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष एस के अग्रवाल का कहना है कि ‘टेक्सटाइल उद्योग में एक करोड़ के निवेश पर 30 और सामान्य निवेश में एक करोड़ पर 7 से 9 लोगों को रोजगार का अवसर मिलता है। सरकार पारदर्शी तरीके से सहूलियत और सब्सिडी दे, तब ही फैक्ट्रियां लगेगीं।’ वहीं एक दूसरे पदाधिकारी का कहना है कि ‘वर्तमान में गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण 5800 रुपये वर्ग मीटर में जमीन दे रहा है। वह भी मांग पर उपलब्ध नहीं है। औद्योगिक बिजली 8 से 11 रुपये प्रति यूनिट है।’ रामनगर औद्योगिक एसोसिएशन के अध्यक्ष देव भट्टाचार्य का कहना है कि ‘दावा हकीकत में बदलने के लिए निवेश की नीति को सरल बनाने की जरूरत है। तभी पाइपलाइन में फंसी योजनाएं मूर्तरूप में दिखेंगी।’

रोजगार कार्यालयों में लंबी लाइन

योगी सरकार 4.50 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी, 3.50 लाख संविदा पर नियुक्ति, बड़ी औद्योगिक इकाइयों में 3.50 लाख नौकरियों के साथ बैंक ऋण देकर रोजगार देने का दावा कर रही है। उसका यह भी कहना है कि 82 लाख एमएसएमई इकाइयों में 2.16 हजार करोड़ का कर्ज बांटकर लगभग दो करोड़ लोगों को रोजगार से जोड़ा गया है। ‘एक जनपद-एक उत्पाद’ योजना में 25 लाख लोगों को रोजगार दिया गया है। लेकिन इनके उलट, एक नौकरी के लिए आवेदनों की संख्या के साथ रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या असल तस्वीर प्रस्तुत कर देती है। हकीकत यह है कि प्रयागराज की चार भर्ती संस्थाओं की 11 प्रमुख भर्तियों में 1,59,024 पदों पर चयन का युवाओं को इंतजार है। 69 हजार शिक्षकों की नियुक्ति का मामला कोर्ट में है।

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