फिर पुराने ढर्रे पर योगी सरकार, महीनों बाद भी गन्ने का भुगतान नहीं, क्रशर और जूस वालों को गन्ना बेच रहे किसान

यूपी सरकार खुद मान रही है कि 27 फीसदी किसानों का भुगतान नहीं हो सका है। किसानों का करीब 9 हजार करोड़ रुपये बकाया है। कोर्ट में लंबित मामलों को जोड़ दें, तो आंकड़ा 15 हजार करोड़ पहुंचेगा। यह हालत हर साल की है। इसलिए किसानों ने गन्ना उपजाना भी कम कर दिया है।

प्रतीकात्मक फोटो
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नवजीवन डेस्क

चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक ने 14 दिनों के अंदर गन्ना मूल्य भुगतान का वादा किया था। लेकिन योगी सरकार फिर पुराने ढर्रे पर है। कई महीनों बाद भी किसानों का भुगतान नहीं हुआ है। सरकार खुद स्वीकार रही है कि ‘27 फीसदी किसानों का भुगतान नहीं हो सका है।’ लिहाजा, किसान नकदी के लिए क्रशर और जूस कारोबारियों को गन्ने की बिक्री कर रहे हैं।

प्राइवेट चीनी मिलों के संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) की बीते दिनों जारी रिपोर्ट बताती है कि यूपी में गन्ना बुआई का क्षेत्रफल भले ही बढ़ गया हो लेकिन चीनी मिलों तक पिछले साल की तुलना में काफी कम गन्ना पहुंचा है। गन्ना क्षेत्र पिछले साल 26.79 लाख हेक्टेयर था जो बढ़कर लगभग 27.75 लाख हेक्टेयर हो गया है। लेकिन पिछले सत्र में 11 लाख टन गन्ने की पेराई हुई थी जबकि इस सत्र में 10 लाख टन गन्ने की ही पेराई हो सकी है। इक्का-दुक्का चीनी मिलें चल रही हैं, बावजूद इसके पिछले बार के आंकड़े तक पहुंचना मुश्किल दिख रहा है।

दरअसल, गन्ना मूल्य भुगतान सबसे बड़ा संकट है। सरकारी आकड़ों के मुताबिक, 14 मई तक वर्तमान पेराई सीजन में 24,708.61 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ जो कुल देनदारी का 73.34 प्रतिशत है, यानी करीब 9 हजार करोड़ रुपये किसानों का बकाया है। कोर्ट में लंबित मामलों को जोड़ दें, तो आंकड़ा 15 हजार करोड़ पहुंचेगा। हालांकि सरकार की तरफ से दावा किया जा रहा है कि टॉप बॉरर रोग और बेमौसम बारिश के चलते गन्ने का उत्पादन ही कम हुआ है। इसलिए खरीद कम हुई है लेकिन मूल वजह यह है कि गन्ने का रकबा ही कम होता जा रहा है। गोरखपुर में 2019- 20 में 4,200 हेक्टेयर में गन्ना बोया गया था जो 2021-22 में महज 2,785 हेक्टेयर है। वहीं गन्ना बेल्ट माने जाने वाले मुजफ्फरनगर और सहारनपुर जैसे जिलों में उत्पादन में करीब ढाई फीसदी की कमी आई है।

बकाया भुगतान की दिक्कतों और नकदी की जरूरत को देखते हुए किसानों ने विकल्प खोज लिया है। क्रशरों और गन्ने का रस बेचने वाले कारोबारियों पर उनकी निर्भरता बढ़ी है। पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल के जिलों में क्रशरों पर इस बार पिछले साल की तुलना में डेढ़ गुना गन्ना अधिक पहुंचा है। शामली में गुड़ के बड़े कारोबारी राजेन्द्र अग्रवाल बताते हैं कि ‘देश में 70 फीसदी चीनी, गुड़, शीरा से लेकर एथनॉल की जरूरत यूपी से पूरी होती है। तिल वाले गुड़, ड्राई फ्रूट वाले गुड़ के चलते क्रशर पर गन्ना अधिक आ रहा है। वहीं प्रदेश में 25 साल बाद खांडसारी इकाइयों को लाइसेंस जारी होने से गुड़ के कारोबार में इजाफा हुआ है।’


पश्चिमी यूपी के बिजनौर, चांदपुर, शामली, मुजफ्फरनगर इलाकों में गुड़ का कारोबार बड़े पैमाने पर होता है। बिजनौर में गुड़ कारोबारी संजय जायसवाल का कहना है कि ‘बिस्किट की फैक्ट्रियों के साथ ही आयुर्वेद दवाओं में गुड़ का इस्तेमाल बढ़ा है। कोरोना काल में च्यवनप्राश की बढ़ी डिमांड से भी गुड़ की मांग बढ़ी है। इसके साथ बेकरी के आइटम में गुड़ वाले उत्पादों की मांग बढ़ी है।’ पूर्वांचल में भी स्थितियां पश्चिम जैसी ही हैं। कुशीनगर में क्रशर चलाने वाले राजन जायसवाल का कहना है कि ‘पहले की तुलना में क्रशर वालों की स्थिति भी खराब है लेकिन कोरोना काल की तुलना में इस बार स्थिति कुछ अच्छी रही। एक क्विंटल गन्ने के एवज में जितना मूल्य चीनी मिल वाले दे रहे हैं, उतना ही क्रशर पर भी दिया जा रहा है। चीनी मिलों पर गन्ना बिक्री के लिए लंबी लाइन और अड़चनों के इतर क्रशर पर तत्काल भुगतान से किसानों को सहूलीयत मिलती है।

बस्ती के सल्टौआ के गन्ना किसान सीताराम चौधरी का कहना है कि ‘पहले चीनी मिलों की पर्ची पर ही दुकानदार खाद, बीज के साथ जरूरत के सामान उधार में दे देता था। अब भुगतान संबंधी दिक्कत को देखते हुए एक दिन की उधारी भी संभव नहीं है। नकदी की प्राथमिकता में किसान गन्ने की उपज को या तो क्रशर मालिकों को बेच रहा है या फिर दूसरी फसल पर शिफ्ट हो रहा है।’

शहरों के साथ-साथ कस्बाई इलाकों में भी गन्ने के जूस की खपत बढ़ी है। अनुमान के मुताबिक, प्रदेश में करीब दस लाख क्विंटल गन्ने की खपत जूस के लिए होती है। कानपुर में जूस के बड़े कारोबारी पंकज गोयल का कहना है कि ‘कोरोना काल में गन्ने के रस की बिक्री 80 फीसदी तक गिर गई थी लेकिन इस साल जूस की दुकानों से लेकर ठेले पर गन्ने की खपत में बढ़ोतरी हुई है।’ बांदा के कारोबारी जितेन्द्र गुप्ता के पास जूस के 20 ठेले हैं। वह बताते हैं, ‘गन्ना मुजफ्फरनगर से मंगाते हैं। भाड़ा लेकर गन्ना 500 रुपये पड़ता है।’ इसी तरह गोरखपुर में गन्ना जूस का कारोबार करने वाले राजअनंत पांडेय ने एक एकड़ गन्ने को सुरक्षित करा लिया है। किसान से उनका अनुबंध है कि जून महीने तक वह 450 रुपये क्विंटल की दर से गन्ना खेत से उठाएंगे।

किसान संजय निषाद का कहना है कि ‘दूसरी फसल भले ही नहीं ले पाते हैं, पर गन्ने से ही अच्छी कमाई हो जाती है।’ गोरखपुर, कुशीनगर से लेकर महराजगंज के 100 से अधिक किसानों का गन्ने का जूस बेचने वाले कारोबारियों से एग्रीमेंट है। जूस के लिए गन्ने की प्रजाति 8436 की खूब डिमांड है। राजस्थान के कारोबारी मुजफ्फरनगर के किसानों को इस प्रजाति के गन्ने के एवज में 800 से 850 रुपये क्विंटल तक दे रहे हैं। मुजफ्फरनगर के जट मुझेडा, रोहाना समेत कई क्षेत्र के किसानों ने गन्ने को रोक रखा है। किसान महेश त्यागी का कहना है कि ‘गन्ने की प्रजाति 8436 की पैदावार तो कम है लेकिन दाम अच्छे मिलते हैं। कोल्हुओं पर भी इस प्रजाति का गन्ना 425 रुपये क्विंटल में बिक जाता है।’

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