24, अकबर रोड: कांग्रेस के जश्न और उदासियों का खामोश गवाह
कांग्रेस ने जनवरी 1978 में 24, अकबर रोड को अपना पता बनाया, जब इंदिरा गांधी मुश्किल सियासी दौर से दो-चार थीं। तब कांग्रेस-आई (उस समय इसी नाम से पार्टी जानी जाती थी) ने इसे अपना मुख्यालय बनाया और यह जगह पार्टी के लिए काफी भाग्यशाली साबित हुई।

24, अकबर रोड, नई दिल्ली...करीब चार दशकों तक देश की सबसे पुरानी पार्टी का मुख्यालय रहा यह पता अब अतीत होने वाला है। लुटियंस बंगलो जोन में स्थित यह इमारत अपने विशाल लॉन और बीच में बने कमरों में बेशुमार स्मृतियां संजोए हुए है। यह गवाह रहा है कांग्रेस की उथल-पुथल भरी यात्रा का, जिसमें हार की हताशा से लेकर जीत के जश्न की गूंज तक शामिल है।
इसी माह 15 जनवरी 2025 को कांग्रेस का मुख्यालय यहां से बदलकर नई इमारत में चला जाएगा लेकिन अकबर रोड का बंगला नंबर 24 इंदिरा गांधी के समय से लेकर वर्तमान समय तक का खामोश गवाह और दस्तावेज बना रहेगा।
यह जगह हमेशा गुलज़ार रही। करीब आधी सदी तक कांग्रेस की सियासत का केंद्र रहा यह बंगला देश की गौरवशाली सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी में आए कई मीठे-कड़वे पलों का गवाह रहा है। ऐसे पल जिनसे पार्टी बनी भी और टूटी भी। इसी इमारत से पार्टी ने कुछ शानदार रिकॉर्ड्स बनाए, तो कुछ ऐसे जिन्हें अच्छा नहीं कहा जा सकता।
विश्वनाथ प्रताप सिंह की बगावत, बाबरी मस्जिद का विध्वंस, कांग्रेस अध्यक्ष पद से सीताराम केसरी को कार्यसमिति द्वारा नाटकीय तरीके से हटाया जाना और फिर सोनिया गांधी को कांग्रेस की बागडोर संभालने के लिए मनाने के लिए इसी इमारत से कांग्रेस नेताओं का 10 जनपथ की तरफ कूच करना। ऐसे तमाम पलों का गवाह है यह पता।
इस इमारत ने पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार पर कांग्रेस की अंदरूनी चर्चा देखी-सुनी तो इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या के बाद शोक में डूबते हुए भी पार्टी को देखा। देश की राजनीति को हमेशा के लिए बदल देने वाले मंडल और हिंदुत्ववादी ताकतों को उभरते हुए भी इस इमारत ने देखा।
इसी पते पर हुई गहमा-गहमी वाली बैठक के बाद कांग्रेस ने युनाइटेड फ्रंट सरकार को बाहर से समर्थन देने का फैसला लिया, तो 2004 में एक जैसी विचारधारा वाली पार्टियों के साथ सत्ता साझा करने के फैसले भी यहीं हुए, जो स्वर्गीय मनमोहन सिंह की अगुवाई में 2014 तक चले।
24 अकबर रोड ने पार्टी में टूट के कई मौके भी देखे हैं। शरद पवार, तारिक अनवर और स्वर्गीय पी ए संगमा का पार्टी से अलग होकर एनसीपी बनने की कहानी की भी यह इमारत गवाह रही है। यह कांग्रेस के लिए एक झटका था और संकेत भी कि पार्टी कैसे ताकतवर क्षत्रपों को साथ लेकर चलने में नाकाम साबित हुई।
इस पुरानी पार्टी की बागडोर संभालने के बाद सोनिया गांधी ने जो रिकॉर्ड कायम किया, उसका तानाबाना भी इसी इमारत में बुना गया था। पार्टी की बागडोर संभालने का राहुल गांधी दौर भले ही छोटा रहा, लेकिन यह इमारत गवाह रही है कि कैसे मां-बेटे का प्रभाव कांग्रेस पार्टी पर छाया रहा है।
दरअसल, 24 अकबर रोड ने कांग्रेस के चरमोत्कर्ष को भी देखा है और इसके पतन को भी। यह इमारत सियासी बियाबान के उन दो धड़ों की गवाह है जिसमें शीर्ष पर पहुंचने का अहसास भी और फिर डूबने की मायूसी भी।
कल्पना कीजिए कि अगर बीती लगभग आधी सदी से देश का प्रमुख राजनीतिक पता रही इस इमारत के इतिहास पर लाइट एंड साउंड शो बनाया जाए तो कथानक और उप-कथानक, उतार-चढ़ाव, झटके और उथल-पुथल, जीत और हार, बागियों और वफादारों और न जाने क्या-क्या से भरा एक दिलचस्प नाट्यक्रम होगा।
उस दौर के पत्रकारों को आज भी याद है जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में ऐलान किया था कि उन्होंने पी वी नरसिम्हाराव का टिकट काट दिया है क्योंकि वे बाबरी मस्जिद की हिफाज़त करने में नाकाम रहे थे। यह ऐलान इतना बड़ा था कि इस प्रेस कांफ्रेंस को अचानक ही बीच में रोक देना पड़ा था।
इन सब घटनाओं से इतर 24 अकबर रोड एक ऐसा सार्वजनिक स्थान भी रहा जो सभी कार्यकर्ताओं के लिए खुला था, चाहे वे बड़े हों या छोटे और जिनमें पार्टी की असली ताकत है। कश्मीर से कन्याकुमारी और मणिपुर से द्वारका तक के कार्यकर्ता और नेता इसी इमारत में जीवंत लोकतंत्र के गवाह रहे हैं।
गुजरते सालों के साथ बदलाव भी हुए हैं। जहां गुजरे वक्त में कार्यसमिति की बैठकें पारंपरिक तरीके से जमीन पर बैठकर हुआ करती थीं, उनकी जगह अब मेज-कुर्सी ले चुकी है।
नब्बे के दशक के मध्य में इसी पते पर मुख्य प्रवेश द्वार के पास एक बड़ा सा बॉक्स रखा जाता था जिसे डोनेशन बॉक्स कहते थे। इसमें लोग पार्टी के लिए चंदा डालते थे और बेशुमार बार बड़े-बड़े नेताओं को उसमें पैसे डालते देखा गया। यह उस वक्त की बात जब सेल्फी का दौर नहीं शुरु हुआ था।
यह इमारत खासतौर से स्वर्गीय ऑस्कर फर्नांडिज को नहीं भुला सकती, जो कांग्रेस महासचिव रहते हुए रात 12 बजे के बाद कार्यकर्ताओं से मिलते थे और ‘ब्रदर ऑस्कर’ से मिलने के लिए लोगों का जमावड़ा रहता था। कार्यकर्ताओं के बीच वे इसी नाम से जाने जाते थे। इसी तरह लंबे समय तक पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे मोतीलाल वोरा भी दिन में यहां मौजूद रहते थे और कार्यकर्ताओं से मिलते थे। नरसिम्हाराव के दौर में जनार्दन पुजारी ने तो 24 अकबर रोड को जैसे अपना घर ही बना लिया था।
पुराने समय के लोगों को आज भी याद है कि वसंतदादा पाटिल और जी के मूपनार जैसे दिग्गज नेता किस तरह 24 अकबर रोड पर बैठकर पार्टी की गतिविधियों के जायजा लेते थे। राजीव गांधी के समय में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष कमलापति त्रिपाठी और उपाध्यक्ष अर्जुन सिंह के बीच की तनातनी भी यहां चर्चा का विषय रहा करती थी।
यूं तो पार्टी के प्रवक्ताओं और मीडिया डिपार्टमेट के प्रमुख के तौर पर प्रणब मुखर्जी, शिवराज पाटिल, वीरप्पा मोइली या जनार्दन द्विवेदी जैसे दिग्गजों के नाम स्मृतियों में हों, लेकिन वी एन गाडगिल जिस तरह के बयान देते थे, वो सुर्खियां बनते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी की पहली सरकार पर वी एन गाडगिल द्वारा 13 दिन का चमत्कार जैसा जुमला आज भी लोगों को याद है। एक खाटी कांग्रेसी और स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार की पृष्ठभूमि के कारण वे हमेशा बहुत ही चुटीले अंदाज में राजनीतिक विरोधियों पर कटाक्ष करते थे।
कांग्रेस पार्टी ने जनवरी 1978 में 24 अकबर रोड को अपना पता बनाया, जब इंदिरा गांधी अपने मुश्किल सियासी दौर से दो-चार थीं और पार्टी में दो विभाजन हो गए थे। तब कांग्रेस-आई (उस समय इसी नाम से पार्टी जानी जाती थी) ने इसे अपना मुख्यालय बनाया और यह जगह पार्टी के लिए काफी भाग्यशाली साबित हुई। दो साल के अंदर ही इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनकर सत्ता में वापस आ गई।
24 अकबर रोड ने ही कांग्रेस की ताकत का चरम भी देखा, जब 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनावों में राजीव गांधी 400 से ज्यादा सीटें जीतकर प्रधानमंत्री बने। यह आज भी एक रिकॉर्ड है।
लेकिन इसी इमारत ने मायूसी का वह दौर भी देखा जब मई 2014 के चुनाव में पार्टी न सिर्फ सत्ता से बाहर हुई बल्कि देश को आजादी दिलाने वाली सबसे पुरानी पार्टी अपने सबसे खराब प्रदर्शन में महज 44 सीटों पर सिमट गई।

दरअसल 80 का दशक कांग्रेस पार्टी का सुनहरा दौर रहा। कहते हैं कि एवरेस्ट की चोटी पर कोई बहुत देर तक नहीं रह सकता, कांग्रेस के साथ भी ऐसा ही हुआ। राजीव गांधी का कार्यकाल आखिरी ऐसा कार्यकाल रहा जब पार्टी ने अकेले अपने दम पर सत्ता हासिल की हो।
औरअब सबकी निगाहें रहेंगी कोटली रोड स्थित इंदिरा भवन पर जहां पार्टी अपना नया मुख्यालय बना रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि नई इमारत और नया पता कांग्रेस की किस्मत में क्या बदलाव ला सकता है, क्योंकि पार्टी नेता जायज मुद्दे उठा रहे हैं। कहते हैं न कि, ‘जब सर्दी आती है, तो वसंत बहुत दूर नहीं होता?’
(सुनील गताडे पीटीआई, दिल्ली में एसोसिएट एडिटर रहे हैं और वेंकटेश केसरी एशियन एज में सहायक संपादक रहे हैं। दोनों पत्रकारों लंबे समय तक कांग्रेस, संसद और देश की राजनीतिक रिपोर्टिंग की है।)
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