आकार पटेल का लेख: जब कश्मीर, असम और अयोध्या हो सरकार की प्राथमिकता, तो किसे पड़ी है चिंता गिरती जीडीपी की

एक राष्ट्र के तौर पर हम खुद ही अपने टुकड़े करने पर तुले हैं, जो हमारे फैसलों और चुने गए रास्ते की परिणति है। और, पूरी दुनिया हमें यह मानने भी नहीं देगी कि हमारे ऊपर होते जुल्म जायज हैं क्योंकि यह तो हमारे अंदरूनी मामले हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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आकार पटेल

देश की विकास दर इस तिमाही में 5 फीसदी पर पहुंच गई। यह बीते 6 साल की सबसे कम दर है। मेक इन इंडिया का मुकुट माने जाने वाले मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की हालत तो एक फीसदी से भी नीचे पहुंच गई है। यह लगातार दूसरी बार है कि जब हम 6 फीसदी का आंकड़ा नहीं छू सके हैं, जबकि जीडीपी आंकने के तरीके बदल दिए गए हैं, जिन्हें पूर्व आर्थिक सलाहकार समेत तमाम अर्थशास्त्री गलत मानते हैं।

सरकार को अब बहुत काम करना है। सबसे पहले तो वह यह सोचे कि क्या करना है और फिर उस पर अमल करे। यह तय है कि जब तक बहुत अधिक विकास दर हासिल नहीं की जाती तब तक गरीबी खत्म करने का लक्ष्य हासिल नहीं हो सकता। यह बेहद चिंता की बात है, भले ही हम किसी भी धर्म, जाति या क्षेत्र के हों।

एक कायदे की विकास दर हासिल करना कोई शैक्षणिक अभ्यास नहीं है। कुछ महीने पहले ही हमें पता चला कि देश में बेरोजगारी की दर 50 साल के निचले स्तर के आसपास है। लेकिन फिर भी हम सही दिशा की तरफ नहीं बढ़े। यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हमारे पास गिरती अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने का बहुत कम समय बचा है। इसके अलावा पर्यावरण परिवर्तन जैसी और भी चुनौतियां हमारे सामने हैं।

दुर्भागय से इस दिशा में कोई खास काम होता नजर नहीं आता, क्योंकि सरकार का ध्यान कहीं और लगा हुआ है। इस वक्त ही नहीं बल्कि आने वाले कुछ सालों में भी सरकार को फुर्सत नहीं मिलने वाली क्योंकि असम, कश्मीर और अयोध्या को लेकर जो कुछ हुआ है या होने वाला है, उसके प्रभाव सामने आने लगेंगे।


असम में एनआरसी के अंतिम आंकड़े जारी हो चुके हैं और 19 लाख से ज्यादा लोग गैर-भारतीय घोषित कर दिए गए हैं। यह आंकड़े एक बेहद लचर प्रक्रिया से सामने आए हैं, जिसकी चर्चा फिर कभी। लेकिन नतीजा यह है कि हमने ऐसा रास्ता चुन लिया है कि हम गिरते जा रहे हैं और इस रास्ते को नतीजे भयावह होंगे।

सबसे पहला तो यही कि इन 19 लाख लोगों से वोट देने का अधिकार छीन लिया जाएगा, भले ही उनके पास वोटर आईडी कार्ड हो या न हो। सुब्रहमण्यन स्वामी जैसे तमाम बीजेपी नेता है जो लगातार कहते रहे हैं कि सभी मुसलमानों से वोट देने का अधिकार छीन लिया जाना चाहिए। दूसरा असर यह होगा कि जिस तरह पिछली बार हमने करीब एक हजार लोगों को विदेशी बताकर जेल में डाला था, वैसे ही इन 19 लाख लोगों को जेल में डालेंगे, जबकि इन्होंने कोई अपराध नहीं किया है।

परिवार टूटेंगे, बेटियां, बहनें, माएं और पत्नियां पुरुषों से अलग जेल में होंगी, उनके पास एक दूसरे से संपर्क का कोई इंतजाम नहीं होगा। जेल भेजे गए बच्चे पूरी जिंदगी सलाखों के पीछे गुजारने को मजबूर होंगे।

जब एक हजार के करीब लोगों को जेल भेजा गया था तो बाकी देश ने कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दिखाई थी। लेकिन जब 19 लाख लोगों को यातना शिविरों के आकार की जेलों में भेजा जाएगा, तो क्या तब भी भारत चुप रहेगा।

कश्मीर में आम नागरिकों को उनके बुनियादी अधिकारों से महरूम करने को एक महीना होने को आया है। कर्फ्यू जारी है, संचार साधन हैं नहीं, विरोध प्रदर्शन करने का कोई तरीका नहीं है और फैसले लेने में उनकी बात सुनी नहीं जा रही है। इस सबसे हमने अपने दुश्मनों को यह कहने का मौका दे दिया है कि हम एक अत्याचारी शासन हैं। वजह यह भी है कि हमने लगभग हर किसी को बंद कर रखा है, उन्हें भी जो भारत के समर्थक हैं, क्योंकि जब प्रतिक्रिया होगी तो पता नहीं क्या होगा।

आने वाले कई सालों तक हमें कश्मीर में अब प्रतिरोध और विरोध प्रदर्शन देखने को मिलेंगे। जिस तरह असम में 1000 लोगों को जेल में डालकर हम भूल गए, वैसा ही कश्मीर में जो कुछ हो रहा है उसे हम नजरंदाज़ करने लगेंगे क्योंकि ये सब इतने लंबे अर्से तक चलने वाला है। लेकिन जब कश्मीर से पाबंदियां हटेंगी और उसके बाद जो कुछ सामने आने की आशंका है, उसे नजरंदाज़ करना शायद मुश्किल होगा।


एक और मुद्दा है जो आने वाले दिनों में हमारा ध्यान अपनी तरफ खींचेगा। यह है अयोध्या में राम मंदिर का मामला। संभावना है कि सुप्रीम कोर्ट इस साल के खत्म होते-होते फैसला सुना देगा। हाल के दिनों में न्यायपालिका का जो रवैया रहा है और हमारे आसपास जो कुछ हो रहा है, उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अयोध्या को लेकर क्या फैसला होने वाला है।

लेकिन फैसला जो भी हो, मंदिर के नाम पर हम इतनी हिंसा देख चुके हैं कि मंदिर मुद्दे को जिंदा करना बेहद खतरनाक होगा। असम और कश्मीर की तरह ही अयोध्या मुद्दा भी लंबे समय से ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ था और देश की स्मृति में धूमिल होने लगा था और मान लिया गया था कि यह प्राथमिकता का मुद्दा है ही नहीं।

अब ये सब बदलेगा। इन तीनों ज्वलंत मुद्दों को लेकर सबकुछ हमारी आंखों के सामने बदल रहा है। देश का ध्यान और भावनाएं दोनों इन पर केंद्रित हो रही हैं। इन सबको इतना उछाला जा रहा है, जितना इससे पहले कभी नहीं हुआ।

अपने ही लोगों के साथ देश के रवैये और निरंतर होने वाले अत्याचार का विरोध करने वाले लोग यह सब देख-सुनकर चुप रहने वाले नहीं हैं। एक तरफ विदेशी, गद्दार जैसे शब्दों का उच्चारण करने वाले भावनाओं में उछल रहे होंगे, तो दूसरी तरफ कथित एंटी-नेशनल भी गुस्से उबल रहे होंगे।

एक राष्ट्र के तौर पर हम खुद ही अपने टुकड़े करने पर तुले हैं, जो हमारे फैसलों और चुने गए रास्ते की परिणति है। और, पूरी दुनिया हमें यह मानने भी नहीं देगी कि हमारे ऊपर होते जुल्म जायज हैं क्योंकि यह तो हमारे अंदरूनी मामले हैं।

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