आकार पटेल का लेख: गोडसे का बयान गौर से पढ़ो, मौजूदा सरकार और उसकी विचारधारा बिल्कुल वैसी ही नजर आएगी

गोडसे के इस बयान में मुझे ऐसा कुछ भी नहीं दिखता जिससे मौजूदा सरकार, प्रधानमंत्री, उनकी पार्टी और उनकी विचारधारा असमहत हो। प्रज्ञा ठाकुर गलत नहीं थी, और इसी कारण से तो उसे लोकसभा का टिकट देकर चुनाव में उतारा गया।

फोटो : Getty Images
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आकार पटेल

निजी तौर पर मेरा कुछ खास इस चुनाव में दांव पर नहीं लगा है। मैं ठीक-ठाक पैसे वाला हूं, दरम्यानी उम्र का सवर्ण हिंदू पुरुष हूं। मैंने जीवन में कभी कोई खास दिक्कत, तकलीफ या पक्षपात का सामना नहीं किया है। इस तरह मुझे न तो सरकार से कुछ चाहिए और न ही कुछ मिलने की उम्मीद है।

सरकार की किसी भी नीति का मुझ पर खास असर नहीं पड़ता। दस साल के मनमोहन सिंह के शासन में या अब पीएम मोदी के या वाजपेयी के पांच-पांच साल के शासन में मेरी जिंदगी में कोई खास बदलाव नहीं आया।

यहां तक कि बेहद दखल देने वाली सरकारी नीतियों ने भी मेरी या मेरे जैसों की जिंदगी को नहीं छुआ। नोटबंदी का मुझपर कोई असर नहीं हुआ। मैं किसी भी एटीएम की कतार में नहीं लगा, और मुझे कोई दिक्कत भी नहीं हुई। मेरे पास आधार कार्ड या राशन कार्ड नहीं है। सरकार के साथ मेरा लेना-देना बहुत सीमित है। हर कुछ साल के बाद मुझे अपना पासपोर्ट रिन्यू कराना होता है और इसके लिए मुझे पासपोर्ट दफ्तर में करीब घंटा इंतज़ार करना पड़ता है। इसके अलावा मोदी, वाजपेयी या किसी की भी सरकार हो, उसका मेरे ऊपर किसी तरह का अच्छा या बुरा असर नहीं पड़ता।


मैं आयकर के सबसे ऊंचे स्लैब से टैक्स देता हूं, क्योंकि मेरे पास मेरी जरूरत से ज्यादा पैसे हैं और अगर मैं उनमें से नहीं हूं जिन्हें केंद्रीय बजट में टैक्स कटौती का ऐलान होता है से कोई राहत नहीं मिलती हो।

सुरक्षा के मोर्चे पर, मरे वर्ग और उसे मिले सम्मान के चलते किसी भी राजनीतिक हिंसा का भी मुझपर कोई असर नहीं पड़ता है। मैंने दो दंगों को बेहद करीब से देखा, समझा, जाना और महसूस किया है। लेकिन इसे भी मुझे न तो शारीरिक और न ही आर्थिक नुकसान हुआ। मैं मंदिर के नजदीक एक हिंदू आबादी में रहता हूं, तो मुझे किसी असुरक्षा का एहसास भी नहीं हुआ और न ही मेरे किसी जानने वाले को कभी कोई नुकसान पहुंचा।

मैं निश्चित रूप से किसी भी हिंसा से कोई उत्साहित या प्रभावित हुआ और न ही मुझे कभी किसी अस्मिता की रक्षा या उसके खोने का एहसास हुआ। मुझे गुजराती होने पर शर्म आई थी और आज भी आती है। किसी भी एक समुदाय पर सामूहिक हमला बर्बरता है। सभ्य लोग ऐसा नहीं करते, सभ्य लोग इसे माफ नहीं करते या सही नहीं ठहराते और न ही अनदेखा करते हैं।

लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी किसी भी दल ने (सत्ता या विपक्ष) ऐसा कुछ वादा नहीं किया, जिससे मेरी जिंदगी में कोई बदलाव आए। मैं अब 50 साल का हो गया हूं, और कई आम चुनाव देख चुका हूं और किसी से भी मुझपर ऐसा कोई असर नहीं हुआ, जैसा कहा जाता रहता है। इस बार एक उम्मीदवार ने महात्मा गांधी के हत्यारे को देशभक्त कह दिया। उसकी पार्टी ने उसे माफी मांगने को कहा, लेकिन हकीकत यह है कि वह कह तो सही रही थी।

गोडसे उसी तरह देशभक्त था, जिस तरह मौजूदा केंद्र सरकार और इसके नेता देशभक्ति की परिभाषा तय करते हैं। एक आम भारतीय जो समय से अपना टैक्स चुकाता है और देश के हर कानून को मानता है, वह देशभक्त नहीं है। देशभक्त होने के लिए आपको पाकिस्तान के खिलाफ उलटा सीधा बोलना जरूरी है।


गोडसे भी जब गांधी जी को गोली मारी थी तो कहा था, “...इस सबसे ऊपर मैंने उस सबका अध्ययन किया जो वीर सावरकर और गांधी जी ने बोला या लिखा है, मेरे लिहाज़ से किसी और कारण के बजाए इन दो विचारों और क्रिया कलापों ने ही बीते तीस साल में भारतीयों के मन-मस्तिष्क को प्रभावित करने का काम किया है।”

गोडसे का गांधी जी के बारे में विचार था, “…32 साल में जमा गुस्से का नतीजा था यह, मुस्लिम परस्ती के लिए किए गए उनके उपवास के कारण आखिरकार मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि अब गांधी को तुरंत खत्म करना जरूरी है। जब गांधी जी की मर्जी से कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने उसे देश को टुकड़े किए, जिसकी हम देवता की तरह पूजा करते हैं, मेरा दिमाग भयंकर गुस्से से भर उठा। मुझे निजी तौर पर किसी से कोई बैर नहीं है, लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगा कि मौजूदा सरकार की नीतियों के कारण मेरी नजर में उसका कोई सम्मान नहीं है। इस सरकार की नीतियां जरूरत से ज्यादा मुस्लिम परस्त हैं। लेकिन मुझे यह भी साफ दिख रहा था कि सरकार की यह नीतियां सिर्फ गांधी जी की मौजूदगी के कारण हैं। ”

गोडसे के इस बयान में मुझे ऐसा कुछ भी नहीं दिखता जिससे मौजूदा सरकार, प्रधानमंत्री, उनकी पार्टी और उनकी विचारधारा असमहत हो। प्रज्ञा ठाकुर गलत नहीं थी, और इसी कारण से तो उसे लोकसभा का टिकट देकर चुनाव में उतारा गया।

जैसा कि मैंने पहले कहा, इससब से मुझे असलियत में कोई फर्क नहीं पड़ता और इसीलिए मैंने एक आजाद उम्मीदवार प्रकाश राज को वोट दिया। उन भारतीयों को यह देखना होगा जो इस चुनाव से बहुत प्रभावित हुए हैं, कि मैंने किसे वोट दिया है। हम जैसे बहुत से लोगों सरकार के क्रिया-कलापों के चलते शारीरिक तौर पर नुकसान पहुंचाया जा सकता है। हम जैसे लाखों लोग होंगे जिन्हें बहुसंख्यवादी विचारधार के उन्माद से डर लगता है।

मुझे अपने साथी भारतीयों की भलाई और सुरक्षा की फिक्र है जो इस चुनाव से प्रभावित हैं, इसीलिए मैंने वोट दिया है।

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