आकार पटेल का लेख: तेहरान की फिलिस्तीन नीति के चलते इज़रायली दबाव में ईरान को आंखें दिखा रहे हैं ट्रम्प

विश्व स्तर पर भारत एक कमजोर ताकत है, लेकिन फिर भी हमें इन दो देशों के उस टकराव को टालने की कोशिश करनी चाहिए जिससे भारत समेत सभी का नुकसान ही होगा।

फोटो : सोशल मीडिया
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आकार पटेल

अमेरिका ने ईरान के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया था,ल लेकिन किन्हीं कारणों से इसे टाल दिया। आधुनिक दौर में ही यह संभव है जब आप आधी रात में मशीनों को वापस बुला सकते हैं। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने कहा कि उन्होंने यह हमला इसलिए रद्द किया क्योंकि उन्हें पता चला था कि इस हमले में करीब 150 ईरानी नागरिक मारे जाते। वैसे वे इन्हें मारना चाहते थे क्योंकि उन्होंने अमेरिकी सेना के एक ड्रोन को अपनी सीमा के नजदीक मार गिराया था।

ट्रम्प इधर काफी समय से ईरान के साथ युद्ध करने के लिए बेचैन नजर आ रहे हैं। उनकी सरकार के कुछ और लोग (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन जैसे लोग) भी इसके पक्ष में हैं। अमेरिका की इस कारगुजारी से तेल के दाम इस सप्ताह करीब 10 फीसदी उछल गए हैं जिसका असर भारत और इस जैसे दूसरे देशों पर पड़ रहा है जो तेल आयात पर ही निर्भर हैं।

सवाल यह है कि आखिर ईरान के साथ अमेरिका युद्ध क्यों चाहता है? लेकिन जवाब सीधे-सीधे समझ में आने वाला नहीं है। सभ्य भाषा में कहें तो ईरान पश्चिम का सबसे पुराना दुश्मन है। कोई 2400 साल पहले ईरानी सेना ने सबसे पहले डेरियस और फिर जेरेस के नेतृत्व में ग्रीस पर हमला किया और एथेंस को तबाह कर दिया था। और यह बात कोई और नहीं बल्कि ग्रीक ही बताते रहे हैं। हेरोडुटस द्वारा लिखित ऐतिहासिक संदर्भों से पता चलता है कि ईरानी सेना में बहुत सारे भारतीय लड़ाके भी थे। पूरे प्राचीन इतिहास में ग्रीक ईरानी बादशाह को उसके लोगों के जीवन पर गहरे प्रभाव के कारण उसे ग्रेट किंग (मेगस) कहते रहे हैं। मिस्त्र, ईरान, अफगानिस्तान और पंजाब हमला करने वाले मेसीडोनिय के आक्रांता को उसके युद्ध कौशल के कारण सिकंदर महान कहा जाता रहा है। सिकंदर को महान की उपाधि डेरियस तृतीय से मिली है।


सिकंदर की मृत्यु सिर्फ 33 वर्ष की उम्र में हो गई थी, और उसकी मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य बंट गया जिस पर सैन्य जनरलों ने शासन किया। पंजाब से लेकर तुर्की और ईरान तक सिकंदर के साम्राज्य का बड़ा हिस्सा सेलेकस निकेटर (निकेटर का शाब्दिक अर्थ होता है विजेता और इसी को जूता बनाने वाली कंपनी नाइकी इस्तेमाल करती है)। पार्थियन शासक आर्साकेस के शासन में ईरान ने अपने देश पर पुन: कब्जा कर लिया। यह सभी लोग पारसी धर्म पद्धति को मानने वाले थे।

पार्थिया के लोगों ने तीन सदियों तक पश्चिमी शक्ति के दूसरे सबसे बड़े सत्ता केंद्र रोम के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। ईरानी सैन्य लड़ाकों का दूसरा समूह ससानिया था जिसने सातवीं शताब्दी में अरबों के हमले होने तक ईरान पर शासन किया। कोई 400 साल पहले ईरान सफाविदियों के शासन में शिया हो गया, लेकिन भारत पर शासन करने वाला सबसे प्रसिद्ध शिया शासक जिसने मुगल साम्राज्य का अंत किया, नादिर शाह एक सुन्नी थी।

आधुनिक दौर में अमेरिका सक्रिय रूप से ईरान की राजनीति के साथ छेड़छाड़ करता रहा है। 1953 में ईरान के निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेह को सीआईए द्वारा रचित एक तख्ता पलटकी साजिश में हटा दिया गया। मोसादेह ने दरअसल ईरान के तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इसके अलावा ईरान-इराक युद्ध को भी अमेरिका की शह मिलती रही और उसने सद्दाम हुसैन की मदद की, हालांकि बाद में सद्दाम हुसैन से उसके रिश्ते खराब हो गए थे।

जिम्मी कार्टर के शासन के दौरान 1979 में तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर ईरानी क्रांतिकारियों ने कब्जा कर लिया था और दूतावास के कर्मचारियों को कई सप्ताह बंधक बनाकर रखा गया था। इसके बाद से ही कभी भी अमेरिका के रिश्ते ईरान के साथ सामान्य नहीं रहे। अमेरिका में ईरानी नागरिकों को आज भी पाकिस्तानी दूतावास से ही सेवाएं दी जाती हैं।


अपने परमाणु कार्यक्रमों के लेकर ईरान ने बराक ओबामा सरकार के साथ एक समझौता कर लिया था। उम्मीद की जा रही थी कि चलो आखिरकरा दो अहम देश फिर एक बार मित्र हो जाएंगे। लेकिन डॉनल्ड ट्रम्प के विचित्र शासन में यह उम्मीद दम तोड़ चुकी है।

पाठकों को यह जानना जरूरी है कि ईरान का राष्ट्रीय धर्म शिया इस्लाम है। सामान्य तौर पर शिया इस्लाम शांत रहने वाला धर्म है। शियाओं का विश्वास है कि 12वें इमाम मुहम्मद अल महदी 869 ईसवी में पैदा हुए थे और वे आज भी जिंदा हैं और गायब हैं, उन्हें खुदा ने छिपा दिया है और वक्त आने पर वे फिर सामने आएंगे। शिया आज भी उनकी वापसी का इंतजार करत हैं, लेकिन इस दौरान वे बाहरी दुनिया से अलग-थलग रहे और अपने ही दुनिया में मगन रहे। इसीलिए उन्हें आमतौर पर शांत माना जाता है।

यह भी रोचक है कि जितने भी पाकिस्तानी या कश्मीरी गुट भारत के खिलाफ लड़ रहे हैं, इनमें से एक भी शिया नहीं है। जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, हरकतुल मुजाहिदीन, अल उमर, अल कायदा, इस्लामिक स्टेट जैसे सारे के सारे गुट सुन्नी हैं। दरअसल शियाओं में जिहादी आतंकवाद की कोई जगह ही नहीं है।

लेकिन, फिलिस्तीनी गुटों को ईरान समर्थन करता रहा है, इनमें वे सुन्नी गुट भी हैं जो इजरायल से लड़ रहे हैं। शायद यही कारण है कि अमेरिका को ईरान से नफरत है। वैसे ईरान का अमेरिका के साथ कोई सीधा बैर नहीं है। अमेरिका से उसकी सीमा नहीं मिलती है। संभवत: सिर्फ इज़रायल के कहने पर ही अमेरिका ईरान पर सख्ती करता है क्योंकि यह फिलिस्तीनी गुटों का समर्थन करता रहा है और ईरान फिलिस्तीनी इलाकों से इजरायल के कब्जे का विरोध करता रहा है।

भारत के शिया चार समूहों में बांटे जा सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ा समूह बारहवें इमाम को मानने वाला है। इनके इमाम इराक और ईरान में कुम और कर्बला में हैं। भारत के ईरान के साथ सभ्य रिश्ते रहे हैं। अरबों को भले ही उर्दू न आती हो, लेकिन बोलचाल में वे ईरानियों के करीब हैं। भारत की मौजूदा सरकार के दौर में भी ईरान की भारत के साथ दोस्ती है।

विश्व स्तर पर भारत एक कमजोर ताकत है, लेकिन फिर भी हमें इन दो देशों के उस टकराव को टालने की कोशिश करनी चाहिए जिससे भारत समेत सभी का नुकसान ही होगा।

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