भारत से रिश्तों को लेकर अड़ियल रवैया बना इमरान के पतन का कारण, पाक सैन्य नेतृत्व को समझ आ गई है भारत की जरूरत

अब तक तलवारें लेकर खड़े रहे पाकिस्तानी शीर्ष नेतृत्व को भारत से रिश्ते सुधारने की जरूरत महसूस होने लगी है। जनरल बाजवा ने इसीलिए इमरान खान को पद छोड़ने पर एक तरह से मजबूर कर दिया। देखना है कि भारत के साथ बातचीत की औपचारिक शुरुआत कब तक हो पाती है।

फोटो : सोशल मीडिया
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प्रवीण साहनी

तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे नेता हैं जिन्होंने शहबाज शरीफ को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के बाद बधाई दी। मोदी ने पाकिस्तान के साथ आतंकवाद से मुक्त अच्छे रिश्तों की उम्मीद जताई। इसके जवाब में शहबाज शरीफ ने कहा कि पूरे इलाके में अमन-चैन के लिए कश्मीर मसले का हल होना जरूरी है।

मोदी- शहबाज के बीच हुई इस बातचीत का श्रेय पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा को जाता है जो भारत के साथ शांति स्थापित करने के लगातार प्रयास कर रहे थे। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान भी चाहते थे कि भारत के साथ अच्छे रिश्ते हों। अभी 2 अप्रैल को मुझे इस्लामाबाद सिक्योरिटी डॉयलॉग के लिए बुलाया गया था और उसी मौके पर सेना में काम करने वाले दो सीनियर जनरलों ने बातचीत में बताया कि 2019 में भारतीय बैकचैनल वार्ताकारों ने मोदी की पाकिस्तान यात्रा का आश्वासन दिया था। यही वजह थी कि फरवरी, 2019 में बालाकोट पर भारतीय वायुसेना के हवाई हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा शुरू किए गए ‘ऑपरेशन स्विफ्ट रिटॉर्ट’ के दौरान पकड़ लिए गए विंग कमांडर वर्द्धमान अभिनंदन को बिना देरी रिहा कर दिया गया था। लेकिन अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में बदलाव ने पाकिस्तान को सकते में डाल दिया। इमरान खान आपे से बाहर हो गए और सार्वजनिक तौर पर मोदी से सख्त ऐतराज जताते हुए उन्होंने भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को डाउनग्रेड कर दिया।

तनाव के उस माहौल में चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी और वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जनरल बाजवा को धैर्य रखने की सलाह देते हुए समझाया कि चीन को ब्रिटेन से हांगकांग को वापस पाने में 98 साल और पुर्तगाल से मकाऊ को हासिल करने में 103 साल लग गए। लेकिन इससे चीन के आगे बढ़ने और अपने लोगों की हालत बेहतर करने में कोई दिक्कत नहीं आई।

रावलपिंडी में जनरल बाजवा के साथ हुई बातचीत का नतीजा यह निकला कि पाक सेना को अपने देश की खुशहाली को अहम मानते हुए पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पर ध्यान लगाना चाहिए जो दो वजहों से भारत के साथ शांतिपूर्ण रिश्तों की पैरोकारी करती है। पहली, भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते बेहतर होने से पाकिस्तान को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को पूरा करने में मदद मिलेगी और दूसरी, युद्ध के बदले तौर-तरीकों से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए पाक सेना को अभी आधुनिक बनाने की जरूरत है। भारत और पाकिस्तान के बीच फरवरी, 2021 से जो संघर्ष विराम है, उसकी असल वजह यही है।

इस्लामाबाद सिक्योरिटी डॉयलॉग के दौरान जनरल बाजवा ने कहा कि सेना ने एक बड़ी स्टडी कराने के बाद फैसला किया है कि अगले पांच सालों के दौरान सेना के मौजूदा 5.38 लाख के आकार में खासी कमी की जाएगी। इससे जो पैसे बचेंगे, उसका इस्तेमाल सेना को मॉडर्न बनाने, खास तौर पर इसकी मारक क्षमता बढ़ाने और साइबर विशेषज्ञता बेहतर करने पर किया जाएगा। पाकिस्तान की सेना में दो-स्टार वाले अफसर के नेतृत्व में साइबर डिवीजन चल रहा है और ऐसा ही डिवीजन वायुसेना और नौसेना में भी बनाया जाएगा तथा इसके साथ ही एक ऐसी यूनिट असैनिक क्षेत्र में भी खोली जाएगी क्योंकि आज के हाइब्रिड युद्ध में इस तरह के केन्द्र दुश्मन के निशाने पर होते हैं।


पाकिस्तान की सबसे बड़ी चिंता यह है कि कश्मीर का क्या होगा? इस सवाल के जवाब में दोनों जनरलों में से सीनियर ने मुझसे कहा कि पाकिस्तान सेना मुशर्रफ के चार- सूत्री फॉर्मूले पर कश्मीर मसले को हल करने की हिमायती है। हालांकि इसके लिए जरूरी है कि दोनों पक्षों में किसी तरह की कोई बातचीत तो हो जिससे कि रिश्ते पटरी पर आ सकें। लेकिन भारत के साथ अमन-चैन कायम करने के सेना के रोडमैप से इमरान खान सहमत नहीं थे।

मोटे तौर पर मुशर्रफ फॉर्मूले के चार चरण हैं: पहला, भारत और पाकिस्तान- दोनों ही ऐसे क्षेत्रों की पहचान करें जिन्हें सुलझाने की जरूरत है। दूसरा, चिह्नित क्षेत्रों का असैन्यीकरण करना जिससे हिंसा के स्तर को कम करने में मदद मिले। तीसरा, पहचाने गए क्षेत्र/क्षेत्रों में स्व-शासन लागू करना। फिर एक संयुक्त प्रबंधन तंत्र विकसित करना जिसमें भारतीय, पाकिस्तानी और कश्मीरी हों जो स्व-शासन पर नजर रखने के साथ सभी पहचाने गए क्षेत्रों के वैसे विषयों पर विचार-विमर्श और सहमति बनाएं जो स्व-शासन के दायरे से बाहर हों।

मैंने उन जनरलों से कहा कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की वजह से भी कश्मीर मसला सुर्खियों में है। लद्दाख में पीएलए की मौजूदगी से भारतीय सेना के सामने कश्मीर में ऐसे युद्ध का खतरा मंडरा रहा है जिसमें पाकिस्तान की सेना को पीएलए से मदद मिल रही हो। जनरल ने मेरी बात गौर से सुनी लेकिन कोई जवाब नहीं दिया।

माना जाता है कि इमरान खान सेना की मदद से ही सत्ता में आए थे। लेकिन भारत से जुड़ी अहम विदेश नीति के मामले में रावलपिंडी से असहमत होकर इमरान खान ने उस बुनियादी नियम को तोड़ दिया था कि पाकिस्तान की रक्षा और विदेश नीति पर फैसला सेना ही करेगी। जैसा कि ब्रिगेडियर फिरोज हसन खान ने अपनी किताब ‘ईटिंग ग्रास’ में लिखा है कि 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद तब के सेना प्रमुख जनरल जहांगीर करामत ने कहा था कि अब परमाणु ताकत से लैस पाकिस्तान की विदेश नीति सेना तय किया करेगी।

जनरल बाजवा और इमरान खान के बीच अमेरिका और रूस के साथ नीतियों को लेकर भी मतभेद था। जनरल बाजवा अमेरिका और चीन- दोनों के साथ अच्छे रिश्तों के हामी हैं जबकि इमरान खान चाहते थे कि चीन और उसके रणनीतिक सहयोगी रूस के साथ मजबूत रिश्ते हों। इसी वजह से इमरान ने अमेरिका की इस चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया कि वह रूस न जाएं। खान ने खुलेआम यह आरोप भी लगाया कि अमेरिका चाहता है कि पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन हो जाए।


अमेरिका के साथ रिश्तों के मामले में पाकिस्तान के अनुभव कड़वे रहे हैं लेकिन अभी जो पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था का हाल है, उसे देखते हुए उसके लिए अमेरिका से रिश्ते आज भी अहम हैं। पाकिस्तान सेना फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की सूची से छुटकारा पाना चाहती है जिससे वह अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस जैसे तमाम एफएटीएफ सदस्य देशों से सैन्य उपकरण हासिल कर सके। दूसरी ओर, इमरान खान ने आरोप लगाया कि अफगानिस्तान को ध्यान में रखते हुए अमेरिका पाकिस्तानी सैन्य बेस चाहता था जिसके लिए उन्होंने इनकार कर दिया था।

वैश्विक भू-राजनीति पाकिस्तान के लिए एक अलग तरह के रुख का संकेत करती है। बड़ी स्वाभाविक सी बातहै कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच वैश्विक वर्चस्व की जोर-आजमाइश होगी। लेकिन यह शीतयुद्ध के उलट ज्यादातर शांतिपूर्ण ही होगी और तमाम देश दोनों गुटों में बंटते चले जाएंगे लेकिन ये गुट दूसरे गुट के लिए अपने दरवाजों को शीतयुद्ध की तरह बिल्कुल बंद नहीं कर लेंगे।

ऐसा इसलिए होगा क्योंकि चीनी गुट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के माध्यम से वैश्विक अर्थशास्त्र को बढ़ावा देने वाला और सबकी समृद्धि पर आधारित होगा। जाहिर है, इसे रूस का पूरा-पूरा समर्थन होगा। अमेरिकी गुट थोड़ी अधिक स्पष्टता के साथ दिखता है क्योंकि यह इस क्षेत्र में भारत जैसे सहयोगियों और रणनीतिक भागीदारों के साथ सैन्य क्षमताओं के निर्माण पर आधारित है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में बदलाव हो रहा है और इंटरनेट का बंटवारा अमेरिका के नेतृत्व और चीन के नेतृत्व वाली प्रौद्योगिकियों के बीच हो रहा है। ऐसे में दुनिया के छोटे-बड़े तमाम देश अपने व्यापारिक और वाणिज्यिक लाभ के लिए इनमें से किसी गुट में रहना पसंद करेंगे।

रूस की तरह पाकिस्तान उनमें नहीं होगा लेकिन इसके अलग कारण होंगे। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को चीन ने बीआरआई का एक बहुत अहम हिस्सा घोषित कर रखा है और इस वजह से पाकिस्तान के पास मौका है वैश्विक राजनीति में अपनी पहुंच से ज्यादा अहमियत हासिल करने और राष्ट्रीय सुरक्षानीति में किए गए वादों को पूरा करने का। चीन और पाकिस्तान के बीच सीपीईसी के दूसरे चरण के लिए करार हो चुका है और इस बार जो समझौता हुआ है, उसके तहत विशेष आर्थिक क्षेत्रों में ई-कॉमर्स, आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस और डेटा आधारित सूचना प्रौद्योगिकी इकाइयां लगाई जाएंगी। इस तरह पाकिस्तान के पास अपनी खराब अर्थव्यवस्था के बावजूद एक ही साथ तीसरी और चौथी औद्योगिक क्रांतियों में शामिल होने वाला दक्षिण एशिया का पहला देश बनने का मौका है।

इसके अलावा, पाकिस्तानी सेना को स्ट्रेट ऑफ होर्मुज और बाब अल-मंडाब जैसे चोक पॉइंट्स पर पीएलए की मदद करनी होगी जिसके लिए दोनों सेनाओं के बीच बेहतरीन तालमेल की जरूरत होगी। इसके अलावा रूस की तरह ही पाकिस्तान से भी शंघाई सहयोग संगठन पर ध्यान केन्द्रित करने की उम्मीद की जाएगी जिसमें तमाम मध्य एशियाई देश हैं।

वक्त के साथ जब अमेरिका और चीन के रिश्ते बदतर हो जाएंगे और अमेरिका चीन पर तरह-तरह की पाबंदियां लगाता जाएगा, एक समय आएगा जब पाकिस्तान के लिए एक साथ दो नावों की सवारी मुश्किल हो जाएगी। इसलिए पाकिस्तान में मिलीजुली व्यवस्था के कामयाब होने के लिए जरूरी है कि सरकार और सेना बराबर की भागीदार के तौर पर मिल-जुलकर चलें। पाकिस्तान सेना का भारत के साथ रिश्ते बेहतर करने का फैसला सही है तो इमरान खान का रूस के प्रति झुकाव भी सही है जिसका लंबे समय में पाकिस्तान को फायदा होगा।

(लेखक फोर्स पत्रिका के संपादक हैं। ये उनके अपने विचार हैं।)

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