पंजाब डायरी: अकाली से अकाली लड़े, लड़ी आप से आप! किसी के लिए भी आसान नहीं है तरन-तारन की राह
किसी भी दल के लिए तरन-तारन की राह बहुत आसान नहीं लगती। पिछले कुछ साल में जिस तरह से इस पूरे क्षेत्र में सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश हुई है, उसने धर्मनिरपेक्ष राजनीति करने वालों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है

पंजाब की तरन तारन सीट के लिए विधानसभा चुनाव 11 नवंबर को होना है। उत्तर भारत में हो रहे इस अकेले उपचुनाव में जो दांव लगे हैं, वे बहुत बड़े हैं। पंजाब में विधानसभा चुनाव फरवरी 2027 में होने हैं। इस लिहाज से इसे उसके पहले की आखिरी राजनीतिक जोर-आजमाइश भी माना जा रहा है। इसीलिए पंजाब के सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत भी झोंक दी है।आम आदमी पार्टी के विधायक कश्मीर सिंह सोहल के निधन के कारण खाली हुई तरन तारन सीट की बुनावट ऐसी है कि उसमें पूरे पंजाब का अक्स देखा जा सकता है। पाकिस्तानी सीमा से सटा तरन तारन और आस-पास का इलाका प्रदेश के सबसे ज्यादा नशा प्रभावित इलाकों में गिना जाता है। इसका ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण है और कुछ ही महीने पहले इस इलाके ने बाढ़ की विभीषिका को भी झेला है।
एक दौर में यह सबसे ज्यादा आतंकवाद प्रभावित इलाकों में भी गिना जाता था। पाकिस्तानी सीमा पर होने के कारण यहां सबसे ज्यादा घुसपैठ भी होती थी। तस्करी तो आज भी होती है। कई विश्लेषक इसे पंथक प्रभाव वाला क्षेत्र भी कहते हैं। यानी वह इलाका जहां अकाली राजनीति और दूसरे सिख गुटों का खासा प्रभाव हो। हालांकि यह तर्क पूरी तरह से सही नहीं है। यहां से 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के धर्मवीर अग्निहोत्री ने जीता था। उन्होंने अकाली दल के उम्मीदवार को तब हराया था, जब अकाली दल और भाजपा साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे थे।
अब जब इसे पंथक प्रभाव वाला क्षेत्र कहा जा रहा है, तो उसका कारण पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजे भी हैं। तरन तारन सीट खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र में पड़ती है। उस चुनाव में यहां से निर्दलीय लड़ रहे वारिस पंजाब दे संगठन के अतिवादी अमृतपाल सिंह ने चुनाव जीता था। यह चुनाव उन्होंने असम की डिब्रूगढ़ जेल से ही लड़ा था जहां उन्हें रासुका के तहत गिरफ्तार करके रखा गया था। वे अभी भी जेल में ही हैं। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष और सांसद अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग नहीं मानते कि उस चुनाव का साया इस विधानसभा उपचुनाव पर पड़ेगा।
वह कहते हैं, 'उस समय यहां एक वैक्यूम था जिसका फायदा अमृतपाल को मिला। अब वैसे हालात नहीं हैं।' वारिस पंजाब दे ने इस उपचुनाव में भी उम्मीदवार उतारा है। मनदीप सिंह सनी निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उन्हें अकाली दल वारिस पंजाब दे का उम्मीदवार कहा जा रहा है। पिछले दिनों शिरोमणि अकाली दल का विभाजन हो गया था और अकाली दल के अलग हो गए गुट ने वारिस पंजाब दे के उम्मीदवार को अपना समर्थन दिया है।
दूसरी तरफ सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई वाले अकाली दल ने एक रिटायर प्रिंसिपल सुखविंदर कौर रंधावा को चुनाव मैदान में उतारा है। लेकिन ज्यादा चर्चा उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों की नहीं, बल्कि इस बात की हो रही है कि उनके दिवंगत पति धर्मी फौजी की गिनती कभी पंजाब के गैंगस्टर्स में होती रही है। जिसे पंथक वोट कहा जा रहा है, इन स्थितियों में उनका बंटना भी लगभग तय है। लेकिन अकाली दल के परंपरागत वोट दो से ज्यादा हिस्सों में भी बंट सकते हैं क्योंकि आम आदमी पार्टी ने तरन तारन से इस बार हरमीत सिंह संधु को चुनाव मैदान में उतारा है जो इसके पहले तीन बार इसी क्षेत्र से अकाली दल के विधायक रह चुके हैं।
पिछला चुनाव यहां से आप ने ही जीता था, लेकिन इस बार तरन तारन उपचुनाव में उतरी आप पूरी तरह से अलग है। 2022 के चुनाव में जो उसके मुद्दे थे, उनका अब पार्टी नाम तक नहीं ले रही। कुछ ही दिन पहले डीआईजी हरचरण सिंह भुल्लड़ के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले जिस तरह से उजागर हुए और उनके घर से जो नगदी बरामद हुई, उसने पार्टी के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के मुद्दे की हवा भी निकाल दी है। ठीक इसी समय चंडीगढ़ में बनाए गए पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के कथित 'शीश महल' का मामला सामने आने से भी पार्टी बचाव की मुद्रा में आ गई है।
पिछले चुनाव में पार्टी ने सभी महिलाओं को एक हजार रुपये महीने देने का जो वादा किया था, वह अभी भी जमीन पर नहीं उतरा है। पिछले चार साल के शासन और बाढ़ आपदा के समय खराब प्रबंधन ने भी ऐसे बहुत से सवाल खड़े कर दिए हैं जिनका पार्टी ठीक से जवाब नहीं दे पा रही है। आप की मुसीबत सिर्फ इतनी ही नहीं है। पार्टी से अलग हो गए एक गुट, जो अपने आप को असली आम आदमी पार्टी कहता है,ने भी तरन तारन से पिछले विधायक कश्मीर सिंह सोहल के भतीजे को चुनाव मैदान में उतार दिया है।
पंजाब के वरिष्ठ कांग्रेसी और विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा कहते हैं, 'अकाली दल तीन टुकड़ों में बंट चुका है। आम आदमी पार्टी के दो टुकड़े दिख रहे हैं। ऐसे में सिर्फ कांग्रेस ही एकजुट होकर चुनाव लड़ रही है।' लेकिन कांग्रेस के लिए भी राह बहुत आसान नहीं है। पिछले कुछ साल में जिस तरह से इस पूरे क्षेत्र में सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश हुई है, उसने धर्मनिरपेक्ष राजनीति करने वालों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। पंजाब में अक्सर यह कहा जाता है कि उपचुनाव वही पार्टी जीतती है, जो सत्ता में होती है। क्या तरन तारन इस चलन को बदलने जा रहा है?
दिल्ली का धुआं और पंजाब की आग
पंजाब में किसान संगठनों ने एक बार फिर ताल ठोंकनी शुरू कर दी है। उनका गुस्सा पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ दायर एफआईआर और उन पर लगाए गए जुर्माने को लेकर है। संयुक्त किसान मोर्चे ने सभी जिला मुख्यालयों में डिप्टी कमिशनरों को तुंरत ही मुकदमे और जुर्माने वापस लेने के लिए ज्ञापन दिए हैं। इस बार पंजाब में अभी तक पराली जलाने के तीन हजार से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं। टीवी चैनलों को पंजाब के खेतों में जल रही इस आग की सैटेलाइट से ली गई तस्वीरें दी जा रही हैं, जो हर दूसरे दिन ब्रेकिंग न्यूज बन रही हैं। इसे ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रदूषण का असली गुनहगार बताया जा रहा है।
साथ ही मीडिया को यह खबर भी दी जा रही है कि पंजाब के किसानों ने सैटेलाइट को गच्चा देने के तरीके भी निकाल लिए हैं। यह बताया जा रहा है कि एक्वा सैटेलाइट और विजिबिल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट दोपहर और देर रात को ही तस्वीरें ले पाते हैं। इससे बचने के लिए किसान दोपहर बीत जाने पर ही पराली जलाते हैं।
पिछले सप्ताह मानसा के किसान नेता जसबीर सिंह ने नेशनल हेराल्ड को बताया था कि धान की फसल कटाई के बाद पराली जलाना किसानों की मजबूरी बन जाता है, क्योंकि अगर नवंबर के पहले 10-12 दिन में गेहूं की बुआई नहीं की गई, तो पैदावार कम हो जाती है। ऐसे में खेतों को तुरंत साफ करने का एक ही तरीका बच जाता है कि वहां जमा पराली को आग लगा दी जाए। वह यह भी कहते हैं कि जिस तरह से पराली के इस्तेमाल के तरीके निकल रहे हैं, मुमकिन है कि तीन चार साल बाद इसे जलाने के जरूरत ही न पड़े, लेकिन अभी कोई और विकल्प नहीं है।
शायद यही वजह है कि भारी हंगामे, एफआईआर और जुर्माने के बावजूद पराली जलाने का यह सिलसिला रुक नहीं रहा। यह भी सच है कि प्रदूषण को लेकर पंजाब के किसानों का नैरेटिव नकारात्मक हो चुका है। वहां अक्सर यह पूछा जाता है कि पंजाब में पराली जलाने से दिल्ली में ही प्रदूषण क्यों होता है, पंजाब में क्यों नहीं होता? पंजाब से दिल्ली के बीच और कहीं क्यों नहीं होता? ऐसे कुछ तर्कों में दम भी है। इस मसले पर कानूनी लड़ाई लड़ रहे वकील चरणपाल सिंह बताते हैं कि नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट को जो आंकड़े दिए गए थे, उसके हिसाब से दिल्ली के प्रदूषण में पराली का योगदान सिर्फ पांच प्रतिशत ही है, फिर भी पराली जलाए जाने को सबसे बड़ा गुनहगार बताया जाता है।
समस्या शायद इसलिए भी है कि पराली जलाने का मसला हमेशा ही दिल्ली के प्रदूषण की हायतौबा के साथ उठाया जाता है और पंजाब के किसानों को कोसा जाता है। अगर पंजाब और वहां के किसानों को उससे होने वाले नुकसान की बात की जाए, तो बात शायद लोगों को ज्यादा समझ में आए।
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