भारत ने जो भी कूटनीतिक पूंजी कमाई थी, वो मोदी सरकार में सब अचानक काफूर हो गई!

मोदी की कूटनीति पूरी तरह से व्यक्ति-केन्द्रित रही और इसका नतीजा यह हुआ कि जब उनके ‘दोस्त’ ने मुंह मोड़ लिया, तो ऐसा लग रहा है कि 1990 के दशक से भारत ने जो भी कूटनीतिक पूंजी कमाई थी, वह सब अचानक काफूर हो गई

फोटो: Getty Images
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आशीस रे

जेफरी सैक्स जाने-माने अमेरिकी अर्थशास्त्री हैं और कई दूसरे बुद्धिजीवी अमेरिकियों की तरह वह भी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के धुर आलोचक हैं। कोलकाता में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा: ‘डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका का प्रतिनिधित्व नहीं करते। न तो वह अमेरिका के लिए अच्छे हैं और न भारत के लिए।’ इसी क्रम में उन्होंने कहा, ‘मुझे पता है कि ट्रंप के पीएम मोदी के साथ बेहतरीन रिश्ते थे और कई मौकों पर उनकी मुलाकात हुई। भारत में कई लोगों को लगा कि इनका रिश्ता सबसे अच्छा है… लेकिन सच कहूं तो, अमेरिका के साथ गठबंधन न करें; फिलहाल ऐसा करना भारत के लिए अच्छा नहीं।’

क्रिसमस की पूर्व संध्या पर वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के हवाले से कहा गया कि भारत अमेरिका के साथ एक ‘शुरुआती व्यापार फ्रेमवर्क डील’ के करीब है। यह एक सतर्क-सधा बयान था, जिसमें कुछ भी ठोस बात नहीं थी और इससे यह सच्चाई भी नहीं बदलती कि भारत को अब भी निर्यात पर 50 फीसद का दंडात्मक टैरिफ देना पड़ रहा है। 

ट्रंप प्रशासन ने भारत के प्रति जिस तरह का ठंडा रुख अख्तियार कर लिया है और अमेरिका की नई वैश्विक रणनीति में उस जिस तरह किनारे कर दिया है, यह बेहद अजीब है क्योंकि यह सब ‘एक प्यारे दोस्त’ के साथ गर्मजोशी के साथ गले मिलने और बड़ी-बड़ी बातें करने के बाद हुआ है। मोदी की कूटनीति पूरी तरह से व्यक्ति-केन्द्रित रही और इसका नतीजा यह हुआ कि जब उनके ‘दोस्त’ ने मुंह मोड़ लिया, तो ऐसा लग रहा है कि 1990 के दशक से भारत ने जो भी कूटनीतिक पूंजी कमाई थी, वह सब अचानक काफूर हो गई। 


इसका असर विदेश जाने वाले भारतीयों पर भी पड़ा है। अमेरिका में करियर और जिंदगी के सपने देखने वालों के लिए एच-1बी वीजा पर यह सख्ती बहुत परेशान करने वाली है। दिल्ली में अमेरिकी दूतावास वीजा रिन्यू करने में भी देरी कर रहा है। एच-1बी और एच-4 वीजा आवेदन करने वालों और उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल की ज्यादा कड़ाई से जांच की जा रही है, और वीजा अपॉइंटमेंट को बड़े पैमाने पर री-शेड्यूल/कैंसिल किया जा रहा है। सैन फ्रांसिस्को में काम करने वाले ऐसे कई टेक कर्मचारी हैं जो इस कारण नौकरी खो रहे हैं कि वे एक साल तक अमेरिका वापस नहीं जा पाएंगे। इसके अलावा ऐसे बहुत लोगों के घरों का मालिकाना हक भी खतरे में पड़ गया है जिन्होंने अमेरिका में ताउम्र नहीं भी तो लंबे समय तक रहने के मकसद से वहां घर खरीद रखे थे।

मीडिया में एक व्यक्ति के हवाले से कहा गया है: ‘जनवरी 2026 में मेरी शादी होनी है जिसके लिए मैं भारत आया था, लेकिन अब मैं 2027 तक यहीं फंसा रहूंगा।’ अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा: ‘हम आवेदकों को सलाह देते हैं कि वे जितनी जल्दी हो सके, आवेदन करें और मानकर चलें कि प्रोसेसिंग समय कुछ ज्यादा होगा।’

जहां तक ​​आवेदकों की सोशल मीडिया प्रोफाइल की जांच की बात है, तो अमेरिकी विदेश विभाग ने पुष्टि की है कि इन गतिविधियों की जांच ‘एच-1बी प्रोग्राम के गलत इस्तेमाल’ से बचने के लिए की जा रही है। टूरिस्ट वीजा आवेदन की भी जांच हो रही है। अगर प्रक्रिया के किसी भी चरण में यह पता चलता है कि व्यक्ति ने ऑनलाइन ट्रंप प्रशासन की आलोचना की तो उसे रोका जा सकता है। फर्ज कीजिए कि कोई 2026 में फुटबॉल वर्ल्ड कप देखने के लिए अमेरिका जाना चाहता है और वह अमेरिकी एयरपोर्ट तक भी पहुंच जाता है, और तब पता चलता है कि उसने ट्रंप या उनके प्रशासन की आलोचना कर रखी है तो उसे वहीं रोका जा सकता है। 


देश में मुसीबत

अपने दूसरे कार्यकाल के पहले कुछ महीनों के भीतर ही ट्रंप ने जिस तरह की आक्रामकता दिखाई, उसके बाद ट्रंपवाद को अंदर से ही गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया। टैरिफ को हथियार बनाने के उनके फैसले से अनुमान के मुताबिक ही अमेरिका में महंगाई खासी बढ़ गई है। एक आम अमेरिकी को खाने और हेल्थकेयर पर अब कहीं ज्यादा खर्चना पड़ रहा है। यहां तक ​​कि उनके कट्टर समर्थक, यानी मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) समर्थक भी निराश हैं। ओपिनियन पोल दिखा रहे हैं कि ट्रंप की लोकप्रियता गिर रही है।

प्रतिनिधि सभा और सीनेट- दोनों में बहुमत होने के बावजूद उन्हें कानून लाने में मुश्किल हो रही है। तमाम रिपब्लिकन सांसद चिंतित हैं कि उनका समर्थन करने से अगले साल नवंबर के मिड-टर्म चुनावों में उनके खुद के दोबारा चुने जाने की संभावनाओं पर असर पड़ सकता है। समर्थन की कमी से निपटने के लिए ट्रंप एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के जरिये शासन कर रहे हैं। हालांकि अगर सदन मंजूरी न दे तो ऐसे ऑर्डर की उम्र सीमित होती है। 

ट्रंप ने अपनी ‘अमेरिका फर्स्ट’ वाली बातों और सख्त विदेश नीति के दांव-पेच से अमेरिकियों का ध्यान भटकाने की कोशिश की है। वह खुद को वैश्विक शांतिदूत के तौर पर पेश करते हैं और नोबेल शांति पुरस्कार पर अपनी दावेदारी के पक्ष में अभियान चलाते हैं जबकि वह इसराइल का समर्थन जारी रखते हैं, इराक पर बमबारी करते हैं और वेनेजुएला में सत्ता परिवर्तन की चालें चलते हैं। (यह सूची यहां खत्म नहीं हो जाती।) 


चार साल से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भी उनका नजरिया असल में युद्ध खत्म करके शांति बहाल करने वाला नहीं है, बल्कि इस झगड़े का एक व्यापर मौके के तौर पर इस्तेमाल करना है। उनके वार्ताकार भी कोई प्रशिक्षित राजनयिक नहीं बल्कि बिजनेसमैन हैं - दोस्त स्टीव विटकॉफ और दामाद जेरेड कुशनर। पश्चिम के विभाजित होने के कारण रूस के लिए इससे बेहतर समय कभी नहीं रहा।

ट्रंप के रूस की तरफ झुकाव का असर यह है कि यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की अपने देश का लगभग पांचवां हिस्सा एक स्वायत्त या आजाद असैन्य मुक्त आर्थिक जोन के तौर पर छोड़ने जा रहे हैं। दूसरे शब्दों में, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इसका फायदा उठाएंगे। 

ट्रंप की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति 2025 ऐसे अमेरिका को ध्यान में रखती है जहां उसके दबदबे को कोई चुनौती न हो। नार्को-टेररिज्म के खिलाफ युद्ध के नाम पर वह खनिज तेल संपन्न वेनेजुएला में सत्ता बदलने पर तुले हुए हैं। युद्ध संबंधी अधिकार बहाल करने का प्रस्ताव आने वाला है और जबकि डेमोक्रेट सांसद वेनेजुएला में सत्ता-बदलाव के लिए अमेरिका के युद्ध में जाने के खिलाफ समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं, नए साल में ऐसा प्रस्ताव पास हो जाए तो कोई हैरानी नहीं होगी।


लेकिन ट्रंप के लिए सबसे बड़ा खतरा दोषी ठहराए गए पीडोफाइल जेफरी एपस्टीन से जुड़ी फाइलें हैं, जिन्हें कांग्रेस के एक कानून के बाद डीक्लासिफाई किया गया है। अमेरिकी न्याय विभाग ने अब तक पीड़ितों की सुरक्षा के नाम पर काफी काट-छांट के बाद इस दस्तावेज का एक हिस्सा जारी किया है, हालांकि उसने इसके साथ एक्सप्लेनेटरी नोट नहीं रखा जबकि ऐसा करना अमेरिकी कानून के तहत जरूरी था। 

कांग्रेसी सदस्य नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए अदालत जाने की तैयारी कर रहे हैं।जेल में खुदकुशी कर लेने वाले एपस्टीन से ट्रंप चाहे जितनी दूरी बनाएं, यह बिल्कुल साफ है कि दोनों के बीच झगड़ा होने से पहले वे दोस्त थे। यह छोटी सी बात कि ट्रंप ने 1993 और 1996 के बीच एपस्टीन के निजी जेट में कम-से-कम आठ बार यात्रा की थी, अपने आप में बहुत कुछ बताती है।

यह पहले ही सामने आ चुका है कि एपस्टीन की जांच और मुकदमे के दौरान ट्रंप का भी नाम आया था। सीएनएन ने रिपोर्ट किया कि हाल ही में सार्वजनिक कागजों के बंडल में ‘जे. एपस्टीन’ के दस्तखत वाला एक पत्र भी है, जो एक दूसरे सेक्स अपराधी को लिखा गया था, जिसमें लिखा है, ‘हमारे राष्ट्रपति भी जवान, आकर्षक लड़कियों के लिए हमारे प्यार को साझा करते हैं।’ यह 2019 में ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान लिखा गया था। न्याय विभाग ने इस लेटर को ‘फर्जी’ बताया है।