भारत में कोरोना से होने वाली मौतों को छिपाया जा रहा है? आंकड़े सामने लाने से सरकार का ही फायदा

तो, क्या भारत में कोविड-19 से होने वाली मौतों को छिपाया जा रहा है? और अगर छिपाया जा रहा है, तो सही जानकारी का पता कैसे लगेगा? मौतों की संख्या की गणना करके सही जानकारी पता की जा सकती है। यह गणना दो पद्धति से की जा सकती है।

फोटो: सोशल मीडिया
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विवेकानंद माथने

लॉकडाउन नाम के लिए भले ही हट गया हो, कई तरह के प्रतिबंध अब भी जारी हैं। दरअसल, इस बात पर चतुर्दिक विचार-विमर्श होना स्वाभाविक ही है कि लॉकडाउन वाले या जैसे प्रतिबंध अब हटा देना चाहिए। क्योंकि सवाल यह भी है किआखिर, प्रतिबंध हटा भी दिए जाएं, तो कोविड-19 का संक्रमण रोकने के दूसरे उपाय कौन-से हैं। अब तक हुए अध्ययन के आधार पर शोधकर्ताओं का निष्कर्ष तो यही है कि जब तक कोरोना संक्रमण रोकने का कोई उपचार नहीं मिलता, तब तक यह जारी रहेगा। यह भी कहा जा रहा है कि देश-दुनिया की दो-तिहाई आबादी के कोरोना संक्रमित होने तक संक्रमण जारी रहेगा और इसकी समय-सीमा दो साल तक हो सकती है।

कोरोना संक्रमण और उससे होने वाली मौतों को लेकर पूरी दुनिया परेशान है। भारत में इससे मौतों की संख्या भले ही अपेक्षाकृत कम हो, संक्रमितों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में, कोरोना संक्रमित देशों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। एक, जहां कोरोना संक्रमण-दर और मृत्यु-दर ज्यादा है। इनमें चीन, अमेरिका, इटली, इंग्लैंड, स्पेन, फ्रांस, ब्राजील आदि देश शामिल हैं। दूसरे, जहां कोरोना संक्रमण-दर और मृत्यु-दर कम है। इनमें भारत सहित अन्य कई देश हैं। दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत में संक्रमण और मृत्यु का प्रतिशत बहुत कम है। सवाल है कि भारत में मृत्यु का प्रतिशत इतना कम होने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? अध्ययनों के मुताबिक, इसके पीछे कई कारण हैं। अव्वल तो कोविड-19 से हुई मौतों को ठीक से दर्ज नहीं किया गया। दूसरा, कोविड-19 से हुई मौतों को छिपाया भी गया लगता है। तीसरा, तापमान का संक्रमण और मृत्यु पर प्रभाव। चौथा, भारतीयों का मजबूत सुरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) और पांचवां, लॉकडाउन से संक्रमण रोकने में मिली मदद। यह भी सच है कि अगर भारत में शुरू से पर्याप्त संख्या में टेस्ट किए जाते तो संक्रमितों की संख्या बहुत ज्यादा हो सकती थी और नतीजे में मौतों का प्रतिशत और भी घट जाता।

तो, क्या भारत में कोविड-19 से होने वाली मौतों को छिपाया जा रहा है? और अगर छिपाया जा रहा है, तो सही जानकारी का पता कैसे लगेगा? मौतों की संख्या की गणना करके सही जानकारी पता की जा सकती है। यह गणना दो पद्धति से की जा सकती है। एक, पिछले तीन-चार सालों में, जनवरी से मई के बीच अलग-अलग बीमारियों से प्रतिमाह होने वाली मौतों और वर्ष 2020 में जनवरी से मई के बीच हुई मौतों की तुलना करके पता किया जा सकता है। ये आंकड़े अस्पतालों में दर्ज रिकॉर्ड के आधार पर प्राप्त किए जा सकते हैं। दूसरे, पिछले तीन-चार सालों में जनवरी से मई के बीच श्मशान में जलाने और कब्रिस्तान में दफन करने के रिकॉर्ड के आधार पर पता किया जा सकता है। इसे वर्ष2020 की जनवरी से मई तक के मृत्यु के रिकॉर्डों की तुलना करके जानकारी निकाली जा सकती है। यदि इन दोनों गणनाओं के मृत्यु के आंकडों में अगर विशेष उल्लेखनीय अंतर दिखाई दे तो उसे कोविड-19 से हुई मौतें माना जाना चाहिए।

मृत्यु का सही प्रतिशत जानने से लॉकडाउन खोलने या प्रतिबंध हटाने के संदर्भ में सच्चाई पता चल सकेगी। अगर प्रति वर्ष होने वाली मौतों की संख्या में बहुत ज्यादा अंतर आता है तो हम इस निष्कर्ष तक पहुंच सकते हैं कि मृत्यु संख्या छुपाई जा रही है। अगर प्रतिवर्ष होने वाली मौतों की संख्या में ज्यादा अंतर नहीं मिलता है तो हम इस निष्कर्ष तक पहुंच सकते हैं कि हर साल की तरह इस साल भी उतनी ही मौतें हुई हैं, केवल मृत्यु का कारण भर बदला है। मृत्यु के सही आंकड़े जानने से लॉकडाउन या प्रतिबंधों के संदर्भ में उचित निर्णय लेने में मदद होगी। अगर हर साल की तरह इन पांच महीनों की मृत्यु संख्या स्थिर है और केवल मृत्यु का कारण बदला है तो इसका मतलब यह होगा कि हम किसी के जान की अतिरिक्त कीमत नहीं चुका रहे हैं। ऐसे में लॉकडाउन या प्रतिबंध जारी रखने का कोई कारण नहीं होगा।


अगर मृत्यु का प्रतिशत बढ़ा है लेकिन अंतर बहुत ज्यादा नहीं है तो संक्रमित लोगों के लिए स्वास्थ्य की सुविधाएं उपलब्ध कराकर प्रतिबंध पूरी तरह हटा देने चाहिए। दुनिया में अनेक ऐसी बीमारियां हैं जिनसे मौतों का प्रतिशत कोविड-19 से बहुत ज्यादा है, फिर भी हम खतरा उठाकर अपना दैनंदिन व्यवहार जारी रखते हैं। अगर मृत्युका प्रतिशत बहुत ज्यादा होने के कारण प्रतिबंध जारी रखे जाते हैं और भुखमरी और डिप्रेशन से होने वाली मौतों की संख्या कोविड-19 के मृत्यु प्रतिशत से ज्यादा होती है तो ऐसी स्थिति में भी प्रतिबंध जारी नहीं रख सकते।

कोरोना पर ऋतु-परिवर्तन का क्या परिणाम होगा, यह देखना दिलचस्प है। भारत में बढ़ती धूप और गर्मी के साथ संक्रमण और मृत्यु-प्रतिशत कम होता गया है। अगर बारिश के दिनों में वायरस संक्रमण बढ़ता है, तब यह माना जा सकता है कि संक्रमण कम होने के लिए एक महत्वपूर्ण कारण तापमान भी है। भारत के लिए ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए यह राहत-जैसी बात है कि संक्रमण के दोगुना होने की दर और बंद हुए मामलों में मृत्यु संख्या लगातार कम होती जा रही है।

क्या प्रतिबंध हटा लेने पर मृत्यु-संख्या को नियंत्रित करने का कोई दूसरा रास्ता है? प्रतिबंध का उद्देश्य संक्रमण की श्रृंखला तोड़ना है। बार-बार साबुन से हाथ धोने और शारीरिक दूरी बनाए रखने के साथ-साथ इसके लिए दूसरे तरीके अपनाए जा सकते हैं। छींकने-खांसने से निकलने वाली बारीक बूंदों- ड्रॉपलेट्स, के साथ फैलने वाले कोरोना वायरस का अस्तित्वअलग-अलग सतहों पर एक-दो दिन ही टिक पाता है। अधिकतम सतहों पर वह एक दिन से लेकर कुछ घंटों तक में ही नष्ट होता पाया गया है। कुछ डॉक्टरों का कहना है कि मनुष्य-से-मनुष्य में संक्रमण के मामलों में ड्रॉपलेट्स के माध्यम से कोरोना संक्रमण के लिए 30 मिनट के संपर्क का समय लगता है, यानी किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में 30 मिनट आने से ही दूसरा व्यक्ति संक्रमित हो सकता है। टीबी के लिए यह संक्रमण समय आठ घंटे का है। अगर यह सच है तब हम किसी संभावित संक्रमण स्थान पर 30 मिनट से कम में कामकाज निपटाने और स्थान बदलते रहने की योजना भी बना सकते हैं।

सवाल है किअगले एक महीने के बाद की स्थिति क्या हो सकती है? इसकी समय सीमा संक्रमण की गति, यानी डबलिंग रेट पर निर्भर है। भारत में डबलिंग रेट तो बहुत ज्यादा है लेकिन मृत्यु का प्रतिशत बहुत कम है। ऐसी स्थिति में धीरे-धीरे प्रतिबंध हटा देना चाहिए। (सप्रेस)

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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Published: 14 Jun 2020, 7:00 PM