हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से मर रहे हैं कोरोना के मरीज, क्या हम दुनिया में मौत का सामान भेज रहे हैं?

भारत के प्रधानमंत्री तो केवल प्राचीन ग्रंथों में विज्ञान खोजते हैं और बादलों में रडार को विफल करते हैं, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप तो रोज कोविड-19 का इलाज खोज लाते हैं। अब अमेरिकी स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी कहने लगे हैं की ट्रंप जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

दुनिया में आज के दौर के ज्यादातर शासक निरंकुश, दक्षिणपंथी, कट्टरवादी, छद्म-राष्ट्रवादी और जनता से दूर होने के साथ ही सबसे बड़े बेवकूफ भी हैं- इसका उदाहरण अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अच्छा मिलना कठिन है। दुनिया का इतिहास अगर आगे लिखा जाएगा तो उसमें आज के दौर के शासकों की बेवकूफियों पर जरूर एक अध्याय होगा।

भारत के प्रधानमंत्री तो केवल प्राचीन ग्रंथों में विज्ञान खोजते हैं और बादलों में रडार को विफल करते हैं, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप तो यहां रोज कोविड-19 की दवा खोज लाते हैं। पहले मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन, फिर एंटी-वायरल दवा रेम्देसेविर, फिर पराबैगनी किरणें और अब तो डिसइन्फेक्टैंट पीने की सलाह भी देने लगे हैं। अब तो अमेरिका के बड़े स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी कहने लगे हैं की ट्रंप अपनी प्रेस ब्रीफिंग द्वारा जनता के स्वास्थ्य से सक्रिय खिलवाड़ करने लगे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोविड-19 के मरीजों पर किए गए एक बड़े प्रयोग में रेम्देसेविर अप्रभावी साबित हो गई है। इसे एक अमेरिकी कंपनी ने बनाया था और यह कुछ वायरस को मारने में सक्षम है। पर, एबोला वायरस के संक्रमण के दौर में भी यह दवा अफ्रीका में बेअसर रही थी। कोविड-19 के 237 मरीजों के साथ किए गए प्रयोगों में 158 रोगियों को यह दवा दी गई और शेष 79 का उपचार बिना इस दवा के किया गया। जिन्हें रेम्देसेविर दी गई, उनमें 14 प्रतिशत लोगों की मौत हो गई, जबकि जिन्हें यह दवा नहीं दी गई थी, उनमें मृत्य दर 13 प्रतिशत ही रही। रेम्देसेविर लेने वाले मरीजों में इस दवा के कुछ गंभीर दुष्परिणाम भी देखे गए।

कुछ समय पहले तक अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप के अनुसार मलेरिया की दवाएं ही कोविड-19 का एकमात्र इलाज थीं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मना करने के बाद भी भारत को धमका कर उन्होंने ये दवाएं हासिल कीं। अब तक अमेरिका में कुछ मौतें केवल मलेरिया की दवाओं से उपचार के कारण दर्ज की गई हैं। ट्रंप की धमकी के बाद भारत सरकार ने आनन-फानन में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की टैबलेट बड़ी संख्या में अमेरिका भेज दीं।

उसके बाद से ब्राजील समेत लगभग 55 देशों में भारत सरकार मलेरिया की यह दवा भेज चुकी है। पर सवाल यह है की कोविड-19 के इस घातक दौर में एक ऐसी दवा दुनिया भर में क्यों भेजी जा रही है, जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और फिर यदि इससे मौतें होतीं हैं तो क्या हमारी सरकार इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार है?

सबसे पहले फ्रांस के डॉक्टरों ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का परीक्षण कोविड-19 के मरीजों पर किया था। वैज्ञानिकों के अनुसार शुरुआती चरणों में तो इस दवा का फायदा नजर आया था, पर बाद में जब प्रयोग का विस्तृत विश्लेषण किया गया तब पता चला कि इस प्रयोग में बहुत सारी गलतियां की गई थीं और इस प्रयोग और निष्कर्ष को दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने सिरे से खारिज कर दिया। पर, डोनाल्ड ट्रंप को कोविड-19 से लड़ने का एक यही तरीका समझ आया। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लगातार विरोध के बाद भी ट्रंप इसे रामबाण बताते रहे।

अमेरिका में एनबीसी न्यूज के अनुसार न्यू यॉर्क में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन देने के बाद एक महिला की मृत्यु हो गई। अमेरिका में कोविड-19 से ग्रस्त 368 बुजुर्गों पर किए गए एक अध्ययन से स्पष्ट होता है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन लेने वाले मरीजों में मृत्यु दर अधिक रहती है। ब्राजील में 81 मरीजों पर किए गए अध्ययन में भी यही नतीजे मिले। चीन में 150 मरीजों पर किए गए अध्ययन के नतीजे में भी कहा गया था कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन देने के बाद मरीजों की हालत में सुधार के कोई साक्ष्य नहीं हैं।

न्यू यॉर्क स्थित मेयो क्लिनिक के कार्डियोलोजिस्ट माइकल एकरमैंन के अनुसार क्लोरोक्विन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के प्रभाव से कुछ समय तक दिल की धड़कन असामान्य हो जाती है, इसे मेडिकल की शब्दावली में अर्रीथीमा कहा जाता है। कोविड-19 से जूझते मरीज की सामान्य अवस्था में भी दिल की धड़कन असामान्य रहती है, ऐसे में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के असर से उसकी धड़कन भी रुक सकती है। अब तक किसी भी बड़े पैमाने के प्रयोग में कोविड-19 के मरीजों को इससे किसी भी फायदे की खबर नहीं आई है, अलबत्ता इससे नुकसान तो बहुत देखे गए।

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से जुडी दूसरी चिंता भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों को है। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को अक्सर एंटीबायोटिक अजिथ्रोमाइसिन के साथ दिया जा रहा है और इसके बेवजह उपयोग से एंटीबायोटिक प्रतिरोधक बैक्टीरिया उत्पन्न होंगे। इससे दूसरी गंभीर समस्याएं पैदा होंगीं। इन सबके बीच सबसे बड़ा प्रश्न तो यही है, भारत कहीं दरियादिली में दुनिया में मौत का सामान तो नहीं भेज रहा है?

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