आसमां जहांगीर: खामोश हो गई पाकिस्तान में लोकतंत्र और मानवाधिकार की सबसे मजबूत आवाज़

इसमें कोई शक नहीं कि आसमां जहांगीरकी मौत से पाकिस्तान का धर्मनिरपेक्ष उदारवादी समुदाय अनाथ हो गया है। पाकिस्तानमें मानवाधिकार और इंसानी अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाला एक स्तंभ गिर गया है।

फोटो : सोशल मीडिया
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मुजम्मिल सहरवर्दी

आसमां जहांगीर की पाकिस्तान में कोई एक पहचान नहीं थी। वे राजनीतिक थीं भी और नहीं भी। एक तरफ वे मार्शल लॉ के खिलाफ लड़ने का साहस दिखाती थीं, लेकिन उन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था में कभी अपना हिस्सा नहीं मांगा। वह राजनीति में सेना की भूमिका के खिलाफ पाकिस्तान की सबसे बड़ी आवाज थी। लेकिन पाकिस्तान के राजनीतिक दल जो बात कहने में डरते थे, वह बात आसमां जहांगीर खुलकर साहस के साथ कहती थीं। यही वजह थी कि आसमां जहांगीर को पाकिस्तानी व्यवस्था ने कभी पसंद नहीं किया।

भारत-पाकिस्तान के बेहतर रिश्तों की आसमां जहांगीर हमेशा वकालत करती थीं और इस रिश्ते की सबसे बड़ी समर्थक थीं। वह पाकिस्तान में भारत के साथ अच्छे संबंधों का सबसे बड़ी समर्थक रहीं। यही वजह है कि उनकी मौत से भारत-पाकिस्तान रिश्तों की वकालत करने वाली एक आवाज खामोश हो गई। उनके बाद अब इस आवाज को उठाने वाले बहुत कम लोग बचे हैं। आखिरकार, पाकिस्तान में अब भारत के साथ दोस्ती की ऐसी कोई मजबूत आवाज नहीं है। शायद इसीलिए आसमां की मौत के बाद पाकिस्तान से ज्यादा भारत को नुकसान हुआ है।

पाकिस्तान में वे एक मशहूर वकील थीं और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की अध्यक्ष भी चुनी गई थीं। इस एसोसिएशन में उनका कद बहुत मजबूत था। उनका अपना एक ग्रुप था जिसे लोग आसमां ग्रुप कहते थे। सुप्रीम कोर्ट के चुनाव में अगर किसी को आसमां ग्रुप से टिकट मिलता था, तो उसे जीत का सर्टिफिकेट माना जाता था। आज भी पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट उन्हीं के ग्रुप के पास है। उनकी मौत से पाकिस्तान के वकीलों में और बार में एक रिक्त स्थान पैदा हो गया है।

आसमां जहांगीर हमेशा लोकतंत्र की समर्थक रहीं। आसमां जहांगीर यूं तो किसी भी राजनीतिक दल से सीधे नहीं जुड़ी थीं, लेकिन उनका कद पाकिस्तान के किसी भी राजनीतिक दल से बड़ा था। इसीलिए जब भी किसी राजनीतिक मुद्दे पर आसमां कोई बात कहती थीं, तो इसके गंभीर अर्थ होते थे और हर किसी की नजर इस बात पर रहती थी कि वे किस मुद्दे पर क्या कहेंगी।

आसमां जहांगीर पाकिस्तान में महिलाओं की प्रगति और उनकी आजादी की प्रतीक के तौर पर भी जानी जाती थीं। पाकिस्तानी होने के बावजूद खुलेआम सिगरेट और शराब पीने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता था, लेकिन इसके बावजूद उनके आलोचक कभी भी उनके चरित्र पर उंगली नहीं उठा पाए। उनकी पूरी जिंदगी में किसी भी स्कैंडल या विवाद से उनका नाम नहीं जुड़ा। भले ही वे पश्चिमी पोशाक पहनती थीं, लेकिन उन्हें कभी भी पूर्वी संस्कृति का विरोधी नहीं माना गया।

उनकी मौत से मानवाधिकार, महिलाओं के प्रगतिशील विचारों और भारत-पाक दोस्ती की एक मजबूत आवाज खामोश हो गई।

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