अयोध्या विवाद: 90 के दशक के नारे को दुहराने के पीछे मोहन भागवत का मकसद क्या है?

मोहन भागवत के बयान से न्यायपालिका के काम में दखल देने की बू आती है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है। भागवत मंदिर के नाम पर बहुसंख्यकों को उकसाते भी दिखते हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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तसलीम खान

देश की संस्कृति की जड़ें खत्म हो जाएंगी अगर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण नहीं हुआ। यह चेतावनी दी है आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने। उन्होंने कहा है कि मंदिर वहीं बनाना होगा जहां यह था और इसे तोड़ दिया गया था। मोहन भागवत ने अपने मन की यह बात मुंबई के नजदीक पालघर में एक कार्यक्रम में कही। उनकी यह चेतावनी ऐसे समय में उस ज्वलंत मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश है जिससे इस समय पूरा देश आक्रोशित है। बच्चियों का बलात्कार- हत्या की जा रही है, महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है, सरकार से सवाल पूछने को राष्ट्रद्रोह माना जा रहा है।

संघ प्रमुख जो भी कहते हैं, उसके शाब्दिक अर्थ भले ही कुछ और हों, लेकिन इसके पीछे एक बड़ा संदेश स्वंयसेवकों के लिए जरूर होता है। ऐसे में जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, मोहन भागवत का यह कहना कि मंदिर तो वहीं बनेगा, किसी नए आंदोलन का संकेत देता है। मोहन भागवत ने कहा, “भारत में मुस्लिम समुदाय ने राम मंदिर नहीं तोड़ा। भारतीय नागरिक ऐसी चीजें नहीं कर सकते। भारतीयों का मनोबल तोड़ने के लिए विदेशी ताकतों ने मंदिरों को तोड़ा।”

लेकिन इसके बाद मोहन भागवत ने जो कहा वह चिंता में डालने वाला है। उन्होंने कहा, “लेकिन आज हम आजाद हैं। हमें उसे फिर से बनाने का अधिकार है जिसे नष्ट किया गया था, क्योंकि वे सिर्फ मंदिर नहीं थे बल्कि हमारी पहचान के प्रतीक थे।” इस बयान से न्यायपालिका के काम में दखल देने की बू आती है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है। भागवत मंदिर के नाम पर बहुसंख्यकों को उकसाते भी दिखते हैं और उनके बयान में एक जल्दबाजी भी है। उन्होंने कहा, “अगर अयोध्या में राम मंदिर फिर से नहीं बनाया गया तो हमारी संस्कृति की जड़ें कट जाएंगी। इसमें कोई शक नहीं कि मंदिर वहीं बनाया जाएगा जहां वह पहले था।”

संघ खुद को गैर-राजनीतिक संगठन बताता रहा है, लेकिन आरएसएस प्रमुख ने पालघर में हुए विराट हिंदू सम्मेलन में राजनीतिक बयान भी दिए। उन्होंने विपक्षी दलों पर निशाना साधा और हाल के दिनों में हुई जातीय हिंसा के लिए विपक्ष को ही जिम्मेदार ठहराया। भागवत ने कहा कि जिनकी दुकानें बंद हो गईं वे अब लोगों को जाति के मुद्दों पर लड़ने के लिए उकसा रहे हैं। भागवत का अर्थ यहां यही था कि जो लोग चुनाव हार गए वो हिंसा कर रहे हैं। यह भ्रामक बयान है और आरएसएस प्रमुख से आए इस बयान से संकेत लेकर स्वंयसेवक किसी भी हद तक जा सकते हैं।

मोहन भागवत जानते हैं कि उनकी बात बहुसंख्यक तबका बहुत गंभीरता से लेता है। वे राम मंदिर के मुद्दे को भावनाओं से तो जोड़ रहे थे, लेकिन उन्होंने कठुआ गैंगरेप केस के बारे में कुछ नहीं कहा। सर्वविदित है कि किस तरह कठुआ में एक मासूम के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई। इस जघन्य अपराध के ओरपियों को बचाने के लिए किस तरह कुछ कथित हिंदूवादी संगठन और बीजेपी नेता मैदान में कूद पड़े। लेकिन मंदिर के नाम पर संस्कृति की जड़ें खत्म हो जाने की चेतावनी देते हुए मोहन भागवत ने इस पर एक शब्द भी नहीं कहा। उन्हें सिर्फ अयोध्या याद रहा और फिर जातीय हिंसा, लेकिन न उन्नाव उनकी जुबां पर आया और न ही कुठआ। क्या सिर्फ इसलिए कि उन्नाव में बीजेपी विधायक का नाम आया है और कठुआ में हुए जघन्य अपराध का घटनास्थल एक मंदिर का प्रांगण है और इसमें कुछ हिंदूवादी संगठन शामिल हैं?

मोहन भागवत का यह ऐलान कि मंदिर वहीं बनाएंगे, नब्बे के दशक के उस नारे की याद दिलाता है, जिसमें उग्र हिंदूवादी संगठन गली-गली घूमकर कहते थे कि ‘कसम राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे’, इस अभियान की परिणति बाबरी मस्जिद विध्वंस और उसके बाद देश भर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के रूप में हुई थी। इसी अभियान का नतीजा है कि आज देश में सांप्रदायिक भावनाएं सिर उठा रही हैं। ऐसे में कई राज्यों और आम चुनावों के ऐन पहले मोहन भागवत का बयान ध्रुवीकरण की शुरुआत के तौर पर ही देखा जा सकता है।

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