आकार पटेल का लेख: पाकिस्तान ने बनाई नई सुरक्षा नीति, लेकिन इस पर प्रतिक्रिया से पहले अपनी नीति भी देखनी होगी

हमारी सरकार को इस दस्तावेज़ का अध्ययन करना चाहिए (और उन हिस्सों तक पहुंचने का भी प्रयास करना चाहिए जो गोपनीय रखे गए हैं) और देखना चाहिए कि इस पर किस किस्म की प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता है और क्या हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति इससे प्रभावित होती है।

फोटो : सोशल मीडिया
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आकार पटेल

पाकिस्तान ने हाल ही में अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति 2022-26 का दस्तावेज जारी किया है। इस दस्तावेज के सह लेखक पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ भी हैं, लेकिन उन्होंने इसमें पाक सरकार की विभिन्न एजेंसियों से लिए इनपुट को स्वीकार किया है। इस नीति में बताया गया है कि पाकिस्तान का सुरक्षा को लेकर क्या नजरिया और प्राथमिकताएं हैं और इस पर अमल का विस्तृत जिक्र भी इसमें है। इस दस्तावेज के आधे हिस्से को तो सार्वजनिक किया गया है लेकिन आधे को क्लासीफाइड यानी गोपनीय ही रखा गया है। दस्तावेज में आर्थिक सुरक्षा पर जोर देते हुए कहा गया है कि पारंपरिक सुरक्षा दरअसल आर्थिक सुरक्षा हासिल करने का एक जरिया भर है। इसमें स्वास्थ्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, पानी की कमी, खाद्य सुरक्षा और लिंक्ष सुरक्षा की बात की गई है।

नीति दस्तावेज में आतंकवाद के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, “किसी समाज की स्थिरता और राष्ट्रीय सद्भाव को कम करने के प्रयासों का सबसे तीव्र रूप आतंकवाद है।”

पाक की आंतरिक सुरक्षा नीति का मकसद “सभी नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी के लिए देश के सभी हिस्सों में सरकार का अधिकार सुनिश्चित करना, आतंकवाद, हिंसक उप-राष्ट्रवाद, उग्रवाद, संप्रदायवाद और संगठित अपराध का मुकाबला करने को प्राथमिकता देना और यह सुनिश्चित करना है कि पाकिस्तान बौद्धिक गतिविधि, व्यवसायों, निवेशकों और पर्यटकों और मेहमानों के लिए एक सुरक्षित गंतव्य बना रहे।”

बाहरी सुरक्षा पर इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान, “आपसी सम्मान और संप्रभु समानता के आधार पर अपने तत्काल पड़ोस में संबंधों के सामान्यीकरण के माध्यम से क्षेत्रीय शांति की तलाश करेगा।"

पाकिस्तान चीन द्वारा बनाए जा रहे उस कॉरिडोर वजह से बदलाव की उस दहलीज पर है जिसे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर अरब सागर और चीन को जोड़ने के लिए बनाया जा रहा है। इससे पाकिस्तान को मध्य एशिया से जोड़ने में मदद मिलेगी, बशर्ते अफगानिस्तान में स्थिरता बरकरार रही तो।

हमारी सरकार को इस दस्तावेज़ का अध्ययन करना चाहिए (और उन हिस्सों तक पहुंचने का भी प्रयास करना चाहिए जो गोपनीय रखे गए हैं) और देखना चाहिए कि इस पर किस किस्म की प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता है और क्या हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति इससे प्रभावित होती है।

दुर्भाग्य से, ऐसा करने से पहले हमारे पास पहले से अपनी एक राष्ट्रीय सुरक्षा नीति होनी चाहिए जो फिलहाल हमारे पास नहीं है। पूर्व जनरल प्रकाश मेनन ने उल्लेख किया है कि, कई दशकों से, सेना को भारत का राजनीतिक मार्ग दर्शन तत्काल खतरे के रूप में पाकिस्तान की ही तरफ इशारा करता रहा है। लेकिन अब जबकि चीनी खतरा दरवाजे पर है, इसमें बदलाव आया है।

सेना द्वारा हासिल किए जाने वाले राजनीतिक उद्देश्यों को 2009 में सामने आए एक दस्तावेज में निहित किया गया है जिसका शीर्षक है 'रक्षा मंत्री के निर्देश'। जनरल मेनन लिखते हैं कि “एक सुसंगत राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के अभाव के चलते यह निर्देश नाकाफी हैं। एनएसए की अध्यक्षता वाली रक्षा योजना समिति को दो साल पहले यह कार्य सौंपा गया था। लेकिन अब तक कुछ भी सामने नहीं आया है।" वह आगे कहते हैं कि "संक्षेप में कहा जाए तो यह निर्देश बिना आवश्यक तर्कों और जरूरी समझ के बिना बनाए गए हैं। केवल राजनीतिक-रणनीतिक दृष्टिकोण के निर्देशों को अपनाना और उनका पालन करना ही वांछित इनपुट प्रदान कर सकता है।”


सरकार ने 2018 में रक्षा योजना समिति बनाई थी। इसकी अध्यक्षता अजित डोवाल को दी गई थी और इसमें विदेश सचिव, रक्षा सचिव, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, तीनों सेना प्रमुख और वित्त मंत्रालय के सचिव शामिल थे। इस समिति के जिम्मे राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा प्राथमिकताएं, विदेश नीति की अनिवार्यता, ऑपरेशन से जुड़े निर्देश और संबंधित आवश्यकताओं, प्रासंगिक रणनीतिक और सुरक्षा से संबंधित सिद्धांतों, रक्षा अधिग्रहण और बुनियादी ढांचे की विकास योजनाओं, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, रणनीतिक रक्षा समीक्षा और सिद्धांतों पर नजर रखने आदि का विस्तृत और विराट काम था। इस समिति की 3 मई 2018 को एक बैठक हुई थी और संभवत: इसके बाद समिति की कोई बैठक नहीं हुई है।

हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ की तरह कोई विद्धान तो हैं नहीं, बल्कि वह फील्ड में एक्शन में रहने वाले व्यक्ति हैं। बाकी सरकार के लिए भी ऐसा ही कहा जा सकता है।

जनवरी 2021 में एक थिंक टैंक ने एक सेवानिवृत जनरल द्वारा लिखा एक पेपर निकाला था। इसमें लिखा गया थाकि सेना में जो बदलाव किए गए हैं उससे सरकार को अपने रणनीतिक और सैन्य कौशल क्षमता दिखाने का अवसर मिला है। लेकि दुर्भाग्य से इसमें यह भी लिखा गया था कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ने अभी तक अपनी रक्षा रणनीति स्पष्ट नहीं है।

2020 में चीन के आक्रामक रुख के चलते भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में बदलाव के लिए मजबूर होना पड़ा। बरसों से सिर्फ आंतक विरोधी गतिविधियां रोकने पर ध्यान केंद्रित करने वाली सेना को पारंपरिक युद्ध की तरफ लौटना पड़ा।

पूर्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ स्वर्गीय जनरल बिपिन रावत (जोकि मौजूदा सेनाध्यक्ष नरवणे के साथ ही आंतक निरोधी एक्सपर्ट माने जाते रहे है) ने जून 2021 में माना था कि अब देश के सामने सबसे बड़ा खतरा चीन से है। उन्होंने कहा था, “जब आपका एक बड़ा पड़ोसी, जिसके पास बेहतर सुरक्षा बल हों, बेहतर तकनीक हो, तो जाहिर है कि आपको इसी से निपटने को तैयार रहना होगा।”

इसने डोभाल सिद्धांत को कायम रखा है, जिसके मुताबिक आतंकवाद भारत के लिए प्राथमिक राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा है और पाकिस्तान प्राथमिक विरोधी है। इस साल फरवरी में, भारत और पाकिस्तान ने एक आश्चर्यजनक संयुक्त घोषणा की कि वे नियंत्रण रेखा पर "सख्ती से" युद्धविराम का पालन करेंगे। यह आश्चर्यजनक इसलिए था क्योंकि इससे पहले भारत सरकार और इसके मंत्री पाकिस्तान के खिलाफ बहुत ही आक्रामक बयान देते रहे हैं। साफ है कि लद्दाख की घटनाओं से दो बातें हुईं। पहली तो यह कि भारत का फोकस पश्चिम में नियंत्रण रेखा से हटकर पूर्व में वास्तविक नियंत्रण रेखा की तरफ शिफ्ट हो गया।


गलवान से पहले सेना की 38 डिवीज़न 12 ने चीन का सामना किया जबकि 25 डिवीज़न को भारत-पाकिस्तान सीमा पर तैनात किया गया और एक डिवीजन को रिजर्व में रखा गया। हालात की समीक्षा के बाद 16 डिवीजन को चीन का सामना करने के लिय लगाया गया। इसतरह कुल 2,00,000 फौजी अब चीन सीमा पर तैनात हैं, यानी सेना पर दबाव आ रहा है जिससे कि भारत के सैन्य विकल्प कम हुए हैं। दूसरी बात यह कि भारत अपनी नौसेना के संसाधनों को भूमि सीमा पर लगाने केलिए मजबूर होना पड़ा है। इसके साथ ही जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ तथाकथित क्वाड गठबंधन से भी एक तरह से भारत को अलग कर दा गया है और चीन के खिलाफ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम ने अलग गठबंधन बना लिया है।

ये सारे बदलाव इसलिए हुए हैं क्योंकि हम पर बाहरी दबाव है न कि राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के चलते। इसका अर्थ है कि हमें एक खास तरह से काम करने पर मजबूर किया जा रहा है, जबकि होना यह चाहिए कि हम स्थितियों पर नियंत्रण रखते हुए पूर्वानुमानों के आधार पर कदम उठाएं। ये कुछ बातें हैं जिन्हें पाकिस्तान की नई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के दस्तावेज को पढ़ते हुए ध्यान मे रखना चाहिए।

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