विष्णु नागर का व्यंग्यः बेशर्मी जिसका आसरा, उसे किस बात का डर, बीस साल में कुछ न बिगड़ा तो पेगासस से क्या बदलेगा!

इस सरकार के सबसे सक्रिय अंग मुंह और पेट हैं। यह बोलते-बोलते खाती है और खाते-खाते, बोलती है। इस तरह यह करीब-करीब पूरा देश खा चुकी है। बाकी जो बचा है, वह 2024 तक खा-पीकर निबटाकर हाथ पोंछकर वंदे मातरम करके चल देगी!

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

जज साहेबान आपने पेगासस जासूसी केस में जांच कमेटी बनाकर और सरकार को तगड़ी झाड़ लगाकर किया तो बहुत अच्छा। हम जैसे करोड़ों का दिल जीत लिया पर क्या है, यह है बेहद ही बेहया सरकार! इसे किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता। इसने तो खुद ही अपनी नाक काटकर सबके सामने रख दी है। अब कोई यह भी नहीं कह सकता कि हमने इसकी नाक काट दी!

कान इसके हैं, मगर नहीं से हैं। उसमें इसने चीन से आयातित फिल्टर लगाए हैं। इससे उसे अपने मन की बात ही सुनाई देती है, बाकी सब हवा में गायब हो जाता है। यह नकटी है तो आंखों की शर्म भी इसे नहीं। इसके सबसे सक्रिय अंग मुंह और पेट हैं। यह बोलते-बोलते खाती है और खाते-खाते, बोलती है। इस तरह यह करीब-करीब पूरा देश खा चुकी है। बाकी जो बचा है, वह 2024 तक खा-पीकर निबटाकर हाथ पोंछकर वंदे मातरम करके चल देगी!

इसके मुखिया को बेशर्मी का काफी लंबा अनुभव है। बीस साल का राजनीतिक बेशर्मी का अनुभव कम नहीं होता। राजनीति में अच्छों-अच्छों को सतत बेशर्मी का इतना सुदीर्घ अनुभव नहीं रहा। शर्म आना होती तो उन्हें 2002 में आ जाती मगर आती क्यों? सोचा-समझा षड़यंत्र था, योजनाबद्ध था। तब गुजरात भी बदनाम हुआ और देश भी। तब के मुख्यमंत्री और आज के प्रधानमंत्री ने तब से हर तरह की बेशर्मी को ही अपनी पूंजी बना लिया है!

यही उनकी 'सफलता का राज' है। हिंदू हृदय सम्राट बनने का रहस्य है। 2002 करवा कर ही वह इस पद पर पहुंचे हैं।तब से वह मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री कम सम्राट अधिक हैं। सम्राट की तरह है उनका आचार- व्यवहार। चूंकि उन्हें सम्राट होने का भ्रम है तो जो चाहे, जैसे चाहे करते हैं। किसी को कुछ समझते नहीं। मंत्रिमंडल, संसद, अदालत, संविधान, कानून सबको अपनी चेरी समझते हैं!


पेगासस जासूसी कांड भी एक सम्राट का काम है, किसी प्रधानमंत्री का नहीं। वह जानते और मानते हैं कि उनका इन बीस सालों में कुछ न बिगड़ा है, न आगे बिगड़ेगा। मैनेजमेंट की जादुई छड़ी से सब ठीक हो जाएगा। नहीं भी हुआ तो क्या चिंता? बेशर्मी जिसका आसरा हो, उसे डर किस बात का? बाल भी बांका न होगा, ऐसा उन्हें अटल विश्वास है। सिर के बाल लगभग झड़ चुके हैं तो क्या हुआ, दाढ़ी के तो हैं। करो बाल बांका, कितने करोगे? यहां तो बाल ही बाल हैं।एक-दो बाल कभी सुप्रीम कोर्ट ने बांके कर भी दिये, तो क्या अंतर पड़ता है?

अभी इन्होंने कथित न्यूयॉर्क टाइम्स के कथित मुख्य पृष्ठ पर अपनी भूतो न भविष्यति जाली तारीफ छपवा ली। पोल जल्दी ही खुल गई। जगहंसाई हुई। उनके चेहरे पर इससे शिकन आई? नहीं आई। चुप रहे। मतलब ये कि हमने थोड़े ही किया और करवाया है। जिसने किया हो, वह जाने। फ्रांस से लड़ाकू विमान खरीदने में घोटाला सामने आया। साफ हो गया, इन महशय की करतूत है। अभी और भी सच सामने आने वाला है। और बात साफ हो जाएगी मगर पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप से बनी इनकी इमेज इंडस्ट्री बेहद फलीफूली हुई है। इसमें इतना अधिक उत्पादन होता है कि तीन-चौथाई जनता को इसका पता भी नहीं चलेगा कि इनके चेहरे पर कालिख की एक और परत पुत चुकी है। जिसे महंगाई से फर्क नहीं पड़ता, तो सैकड़ों करोड़ के इस घोटाले से क्या पड़ेगा?

इसलिए भाइयों-बहनो सुप्रीम कोर्ट का फैसला इनके खिलाफ गया भी तो इन्हें फिकर नहीं। आगे से ये सावधान रहेंगे कि सुप्रीम कोर्ट जैसी है, वैसी भी न रहे। यह भी चुनाव आयोग बन जाए।नीति आयोग बन जाए। सीबीआई, ईडी जैसी हां सर, हां सर एजेंसी बन जाए!

विश्वास तो इन्हें भरपूर है कि इनका मन चाहा ही होगा। विश्वास तो इन्हें अपने बूढ़े होने का भी नहीं है। विश्वास तो इन्हें सौ साल तक जीने और अंतिम सांस तक इस पद पर बने रहने का भी है।.विश्वास तो कीट-पतंगों को भी बहुत होता है। विश्वास तो सारे तानाशाहों को भी बहुत होता है।विश्वास तो हिटलर को भी क्या कम था मगर वह विश्वास नहीं था, जो अंततः उसके साथ हुआ।यह विश्वास ही ऐसों का सबसे बड़ा दुश्मन होता है। उनका दुश्मन कोई और.नहीं, वे खुद होते हैं मगर जिंदगी भर वे अपने दुश्मनों के पीछे पड़े रहते हैं!

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