भारत जोड़ो यात्रा: खुलकर नजर आ रहा सत्ता पक्ष के सारे दांव और उसका खोखलापन, अब जनता की परीक्षा

भारत जोड़ो यात्रा एक ऐसा विशाल बैकड्रॉप बनकर उभरी है जिसके सामने सत्ता पक्ष के सारे दांव, उसका खोखलापन खुलकर नजर आ रहा है। जैसे कोई हैलोजन जल गया हो और सबकुछ साफ दिखने लगा हो।

फोटो: @INCIndia
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नवजीवन डेस्क

भारत जोड़ो यात्रा अपने आखिरी चरण में पहुंच गई है। कन्याकुमारी से शुरू हुई कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा 3,970 किलोमीटर, 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से गुजरते हुए जम्मू-कश्मीर पहुंच गई है। यह यात्रा 30 जनवरी को श्रीनगर में समाप्त हो जाएगी। भले ही सरकार से सरोकार रखने वाले न्यूज चैनल और अखबार इस यात्रा को ज्यादा कवरेज नहीं दे रहे हों, लेकिन सोशल मीडिया से लेकर स्वतंत्र पत्रकारों तक के लिए यह यात्रा हर दिन चर्चा का विषय रहा है। इस यात्रा के दौरान समय-समय पर कई पत्रकारों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने अनुभव साझा किए हैं, जिन्हें नवजीवन में प्रकाशित किया गया है। अब जब यह यात्रा अपने अंतिम पड़ाव पर है, तब हम एक बार फिर उन लेखों के जरिये यात्रा के अनुभव आपसे साझा कर रहे हैं। तो पेश हैं यात्रा की जरूरत बताती उसके मकसद और उसके अनुभवों को समेटे विचारपूर्ण लेखों के अंश:

सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के साथ खड़ा नजर आ रहा पूरा देश!

तिरुवनंतपुरम प्रेस क्लब में हमारी मुलाकात हुई प्रोफेसर एचएम देसार्डे से। 70 साल से ज्यादा की उम्र। दो योजना आयोग के सदस्य रह चुके हैं। सिविल सोसाइटी के साथ आए हैं। प्रो. देसार्डे ने अपने होश में हुई सभी पदयात्राएं न सिर्फ देखी हैं, उनमें शामिल भी हुए हैं। उन्होंने बताया कि राहुल की पदयात्रा की तुलना चंद्रशेखर की पदयात्रा से नहीं की जा सकती। वह पदयात्रा छोटी थी और उसमें कई बार चंद्रशेखर वाहनों पर चलते थे। यहां राहुल गांधी कन्याकुमारी से कश्मीर पैदल चलकर ही जाएंगे। सुनील दत्त की पदयात्रा भी उन्हें याद है। सुनील दत्त की पदयात्रा में खूब लोग उमड़ते थे। राहुल की पदयात्रा सुनील दत्त की पदयात्रा से ज्यादा लोगों को आकर्षित कर रही है।

5 सितंबर की रात से मैं इस यात्रा के साथ रहा। राहुल पट्टम से चले तो सफेद कुर्ता और ऑफ व्हाइट पैजामा या ट्राउजर पहने थे। पहला पड़ाव वेल्यारी जंक्शन था। आराम करने के बाद जब शाम को चलना शुरू किया तो वही टीशर्ट उनके बदन पर थी (जिसे लेकर बीजेपी आईटी सेल ‘परेशान’ थी) और वही काली पैंट। राहुल गांधी सबसे ज्यादा सहज इन्हीं कपड़ों में महसूस करते हैं। राहुल की इस टी शर्ट के बारे में एक नया खुलासा हुआ कि राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने राहुल से कहा आपकी टी शर्ट ने तो आग लगा रखी है। राहुल ने बताया कि पंजाब में किसी ने यह टी शर्ट उन्हें गिफ्ट की थी। वैसे, राहुल महंगे ब्रांड्स के शौकीन नहीं हैं। उनका जोर सादगी पर ही रहता है। दिखावा करने वालों को टोक भी देते हैं। पहले ज्यादा टोकते थे, अब कम कर दिया है। केसी वेणुगोपाल वही सफेद लुंगी और सफेद आधी बांह का शर्ट पहनते हैं। उनके लिए वही आरामदेह है। उसी में चल भी लेते हैं, सो भी जाते हैं।

भारत जोड़ो यात्रा: खुलकर नजर आ रहा सत्ता पक्ष के सारे दांव और उसका खोखलापन, अब जनता की परीक्षा

एक काबिले जिक्र घटना यह कि राहुल जब तिरुवनंतपुरम आ रहे थे, एक पादरी उनके पास जाने की कोशिश में था। बीजेपी आईटी सेल के एक पादरी के बयान को लेकर भाजपाई हंगामे के बाद दूसरे नेता नहीं चाहते थे कि पादरी राहुल के करीब भी जाएं। मगर राहुल गांधी ने देख लिया और उससे पूछाः ‘क्या आप मेरे साथ चलना चाहते हैं।’ पादरी ने मुस्कुराकर हां कहा तो राहुल ने उन्हें अपने साथ लिया और कई सौ मीटर तक उन्हें साथ लेकर चलते रहे।

योगेन्द्र यादव की सिविल सोसाइटी के लोग पदयात्रा में पूरे समय शामिल रहते हैं मगर वे न तो कांग्रेसियों के साथ खाना खाते हैं और न ही उनके सोने का इंतजाम कांग्रेस की तरफ से होता है। कांग्रेस से वे कोई मदद नहीं ले रहे। कंटेनर में सिर्फ वही 117 लोग सो रहे हैं जिनका नाम शुरू से शामिल किया गया है और जो 50,000 आवेदकों में से चुने गए हैं।

इसमें दो राय नहीं कि पदयात्रा से कांग्रेस को बहुत मजबूती मिली है। इससे भी बड़ी उपलब्धि यह है कि सोशल मीडिया पर पूरा देश जैसे राहुल गांधी के साथ खड़ा नजर आ रहा है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि बीजेपी आईटी सेल हमला राहुल गांधी पर करती है और बचाव में देश के लोग उतर आते हैं। राहुल गांधी की पदयात्रा ने कांग्रेस के समर्थकों और महंगाई से त्रस्त सत्ता विरोधी लोगों को एक मोरल ग्राउंड दे दिया है जिस पर खड़े होकर वे बीजेपी का विरोध कर पा रहे हैं। दरअसल यह पदयात्रा एक ऐसा विशाल बैकड्रॉप बनकर उभरी है जिसके सामने सत्ता पक्ष के सारे दांव, उसका खोखलापन खुलकर नजर आ रहा है। जैसे कोई हैलोजन जल गया हो और सबकुछ साफ दिखने लगा हो।

(दीपक असीम का यह लेख संडे नवजीवन में 25 सितंबर 2022 को छपा था)

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देश के किसी भी और नेता में नहीं है राहुल जितनी हिम्मत

फोटो: सोशल मीडिया
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एक राजनीतिक दल के तौर पर बीजेपी तमाम बुराइयों का जमघट हो सकती है लेकिन वह बेवकूफ तो कतई नहीं। और फिलहाल उसे अंदाजा हो गया है कि 2024 के लोकसभा या फिर हालिया विधानसभा चुनावों के लिए राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कोई अच्छी खबर नहीं। बीजेपी ने जिस तरह से पदयात्रा को टी-शर्ट और जूते तक सीमित करने की कोशिश की, जिस तरह से उसने इसका ‘भारत तोड़ो यात्रा’ और ‘कांग्रेस जोड़ो यात्रा’ कहकर मजाक बनाया, उससे भगवा खेमे की असहजता ही दिखती है। फिर भी, ये हथकंडे काम करते नहीं दिख रहे। इसी वजह से भाजपा परेशानी और हताशा में है।

पिछले आठ सालों के दौरान बीजेपी ने राहुल गांधी की छवि नासमझ और राजनीति के लिए मिसफिट, पार्ट टाइम नेता की बनाने की कोशिशों में काफी समय और सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए। झूठ की इस खेती से बीजेपी वोट की फसल काटती रही। लेकिन राहुल गांधी के पास इस प्रपंच का मुकाबला करने का कोई तरीका नहीं था क्योंकि बीजेपी ने व्यावहारिक रूप से पूरे प्रिंट और टेलीविजन मीडिया को अपने कब्जे में ले लिया था। हकीकत यह है कि राहुल गांधी के पास लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का कोई सशक्त माध्यम नहीं बचा था। वह न तो लोगों को अपनी नीतियों के बारे में बता सकते थे और न ही यह दिखा सकते थे कि भगवा पार्टी ने उन्हें जिस तरह चित्रित किया है, वह उससे बिल्कुल अलग इंसान हैं। राहुल में कुछ खास नहीं होता तो उन्होंने भी हार मान ली होती। लेकिन वह इसका हल खोजने के लिए अतीत में गए। उन्होंने भारत के संघर्ष के सबसे शक्तिशाली हथियारों में से एक पदयात्रा पर जाने का फैसला किया।

फोटो: सोशल मीडिया
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कुछ लोग उपहासपूर्वक पूछते हैं कि इस यात्रा का उद्देश्य क्या है? इसका सबसे अच्छा जवाब खुद राहुल गांधी ने दिया जब एक पत्रकार से उन्होंने कहाः ‘भारत जोड़ो यात्रा का संदेश लोगों के लिए विनम्रता, करुणा और सम्मान है। हम किसी को गाली नहीं दे रहे, किसी को धमकी नहीं दे रहे। हम विनम्रता के साथ चल रहे हैं।’

इस बात से इनकार नहीं कि राहुल गांधी आज वह कर रहे हैं जिसकी देश के किसी भी और नेता में हिम्मत नहीं हैः एकदम लोगों के बीच चले जाएं, बिना किसी ताम-झाम के और उनके साथ पांच महीने तक रहें। मुझे लगता है कि अब भारत के नागरिकों को खुद को साबित करना होगा और बताना होगा कि वे कहां खड़े हैं।  

(अभय शुक्ला का यह लेख संडे नवजीवन में 2 अक्टूबर 2022 को छपा था)

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