खरी-खरी: नफरत की आंच में झुलसकर अंदर से टूट रहे देश के लिए वक्त की जरूरत है 'भारत जोड़ो यात्रा'

कन्याकुमारी से आरंभ होने वाले इस अभियान को देश के कोने-कोने तक पहुंचा कर भारत जोड़ो और भारतीय समाज जोड़ो मिशन में बदल देना चाहिए। तब ही देश में फैली नफरत की आग बुझ सकती है।

फोटोः @INCIndia
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ज़फ़र आग़ा

यह बात है सन 2014 की! स्वतंत्रता दिवस आने वाला था। नरेंद्र मोदी सत्ता में आ चुके थे। बहुतों के मन में हिन्दुत्व राजनीति और मोदी के ‘गुजरात मॉडल’ के प्रति बहुत सारे प्रश्न एवं उलझनें थीं। हमने सोचा क्यों न उन प्रश्नों एवं उलझनों को दूर करने के लिए सबसे वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर से बात की जाए। वह उस समय जीवित थे। उनसे बेहतर उस समय की उलझनों को दूर करने वाला कौन हो सकता था। उन्होंने बंटवारा और उससे पैदा होने वाली नफरत का सैलाब देखा ही नहीं, झेला भी था। जवाहर लाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक सारे प्रधानमत्रियों को देखा और उन पर लिखा था। यह सोच हम कुलदीप नैयर से बात करने पहुंच गए।

बंटवारे से लेकर गांधी जी की हत्या एवं जवाहर लाल और नरेंद्र मोदी तक हर मुद्दे पर खुलकर चर्चा हुई। बाद में मैंने कुलदीप नैयर से एक व्यक्तिगत सवाल पूछा। मैंने उनसे कहा, आप बहुत मायूस दिख रहे हैं। वह कुछ क्षणों के लिए खो-से गए। मैंने अपना सवाल फिर दोहराया। वह चौंके और बोले, ‘तुम लोग अभी समझ नहीं रहे हो’। मैंने कहा, ऐसी कौन-सी बात है जो आप देख और समझ रहे हैं और हम नहीं समझ पा रहे हैं। वह बोले, ‘भाई, बंटवारे ने जो नफरत का सैलाब फैलाया था उसको उस समय रोकने वाले गांधी एवं नेहरू थे। उन्होंने लोगों के दिलों को जोड़कर देश बचा लिया था। परंतु मुझे आज ऐसा कोई नहीं दिखाई पड़ता है जो दिलों को जोड़े और नफरत की आग बुझा सके।’

कुलदीप नैयर की दूरदृष्टि सच साबित हुई। 2014 के बाद 2022 आते-आते देश नफरत की आग में झुलस चुका है और इस आग को बुझाने वाला कोई नहीं है। लेकिन पिछले सप्ताह इस नफरत के अंधेरे में उम्मीद की एक किरण चमकी है। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने 7 अगस्त को कन्याकुमारी से जो ‘भारत जोड़ो’ अभियान शुरु किया है, वह देश से नफरत मिटाने का एक प्रयास है। राहुल गांधी कोई जवाहर लाल या महात्मा गांधी नहीं हैं। परंतु अपने इस प्रयास से वह गांधी एवं नेहरू के मार्ग पर चलने का प्रयास अवश्य कर रहे हैं।

आज यह ‘भारत जोड़ो’ मिशन 1947 के समय से भी कठिन लगता है। अब तो देश का गांव-गांव बंट चुका है। नफरत की आंधी ने जनता की आंखों पर पर्दा डाल दिया है। न महंगाई का खयाल, न बेरोजगारी की फिक्र- लोग सब कुछ भूल हर चुनाव में नफरत के व्यापारियों को वोट डाल रहे हैं। ऐसे माहौल में कांग्रेस पार्टी का भारत जोड़ो अभियान एक सराहनीय पहल है। यह एक ऐसा आंदोलन बन जाना चाहिए जो केवल कांग्रेस पार्टी ही नहीं, सारे देश का आंदोलन हो जाए। भारत इस समय अंदर से टूट रहा है। अतः भारत जोड़ो हर भारतीय का नारा होना चाहिए। इस आंदोलन को किसी पार्टी की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। यह समय की आवाज है। गांव-गांव, नगर-नगर, समाज सेवक, उनके संगठन, भारतीय संविधान में विश्वास रखने वाले हर राजनीतिक दल, और व्यक्तियों को मिलकर भारत जोड़ो अभियान को एक देशव्ययापी आंदोलन बना देना चाहिए।


इस आंदोलन से ही विपक्षी एकता का मिशन भी पूरा हो सकता है। भारत जोड़ो ही एकमात्र रास्ता बचा है जिसके जरिये देशवासियों के मन में बसी नफरत की आग बुझाई जा सकती है। इसलिए कांग्रेस पार्टी को इस अभियान को केवल पार्टी का अभियान नहीं रखना चाहिए। इस अभियान को वैसे ही चलाना चाहिए जैसे गांधी जी अपने अभियान सारे देशवासियोों के लिए चलाते थे। हर राज्य में वहां की क्षेत्रीय पार्टी को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश होनी चाहिए। हर जाति, हर समाज, हर धर्म, किसान, मजदूर, बुद्धिजीवी, समाज सेवक एवं हर वर्ग की आवाज भारत जोड़ो में होनी चाहिए।

संपूर्ण विपक्ष अभी तक वैसे सक्रिय नहीी दिखाई पड़ता जैसा उसको होना चाहिए था। भारत जोड़ो एक ऐसा अभियान है जो देश जोड़ने एवं विपक्ष जोड़ने का भी माध्यम बन सकता है। इसलिए कन्ययाकुमारी से आरंभ हुए इस अभियान को देश के कोने-कोने तक पहुंचा कर भारत जोड़ो और भारतीय समाज जोड़ो मिशन में बदल देना चाहिए। तब ही देश में फैली नफरत की आग बुझ सकती है।

तीस्ता की वापसी

प्रख्यात समाजसेविका तीस्ता सीतलवाड़ को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत देकर देश में न्यायपालिका का सम्मान बढ़ा दिया है। इन्हीं तीस्ता के विरुद्ध इसी सुप्रीम कोर्ट ने दो माह पूर्व फैसला दिया था। उससे सुप्रीम कोर्ट पर एक वर्ग ने उंगली उठाना आरंभ कर दिया था। तीस्ता के संगठन सेंटर फॉर जस्टिस एंड पीस ने गुजरात में हुए 2002 दंगों के बीच नरोदा पाटिया इलाके के दंगा पीड़ितों के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी। नरोदा पाटिया इलाके में मारे गए एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी की ओर से यह मामला दूसरी बार उठाया गया था। एक बार इस मामले में फैसला आ चुका था। सेंटर फॉर जस्टिस एवं पीस ने अपने संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को फिर उठाया था।

दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट ने न केवल तीस्ता की याचिका रद्द कर दी थी बल्कि इस मामले में यह भी कहा था कि ऐसे लोग जो घड़ी-घड़ी यह मामला उठा रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। बस इसी बात को आधार बना कर गुजरात सरकार ने तीस्ता को गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन चीफ जस्टिस यू यू ललित के नेतृत्व वाली पीठ ने तीस्ता को जमानत देकर पहले वाले फैसले पर उठे सवालों को किसी हद तक खत्म कर दिया है।


अब यह मामला गुजरात हाईकोर्ट के सामने पेश होना है। बहुत संभव है कि गुजरात हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई जमानत को रद्द कर दे। तीस्ता अब जेल से बाहर आ चुकी हैं। वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त समाज सेविका हैं। तीस्ता को अब पुनः किसी भी हाल में दोबारा जेल नहीं जाना चाहिए। सन 2002 में हुए दंगे के पीड़ित बहुत लोगों को अभी भी न्याय नहीं मिला है। हद तो यह है कि अभी पिछले माह स्वतंत्रता दिवस पर बिलकिस बानो के 11 बलात्कारियों की सजा माफ कर दी गई और वह अब आजाद घूम रहे हैं। जाहिर है कि यह फैसला गुजरात सरकार के इशारे पर ही हुआ। स्पष्ट है कि गुजरात सरकार तीस्ता को पुनः जेल भेजने के लिए जोर लगाएगी। अभी सुप्रीम कोर्ट में तीस्ता को जमानत न मिलने के पक्ष में एड़़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। इसलिए न्याय में विश्वास रखने वाले सभी समाजसेवी संगठनों एवं राजनीतिक दलों को तीस्ता की इस लड़ाई में पूरी मदद करनी चाहिए। तीस्ता की वापसी अब स्थायी होनी चाहिए।

इमरान खान संकट में

अजीब देश है पाकिस्तान। कल का प्रधानमत्री आज का आतंकवादी। जी हां, इमरान खान अभी कुछ महीनों पहले तक प्रधानमंत्री थे। अब उन्हीं इमरान खान पर आतंकवादी होने की पुलिस कंप्लेन्ट की तलवार लटक रही है। शरीफ सरकार कभी भी इमरान को आतंकवाद के इल्जाम में बंद कर सकती है। कमाल तो यह है कि यह वही इमरान खान हैं जो सत्ता जाने से पहले पाकिस्तानी फौज के चहेते थे।

सारा पाकिस्तान भी जानता था कि उस समय प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को हटाने के लिए अगस्त, 2018 में फौज इमरान खान को सत्ता में लाई। परंतु अब वही फौज इमरान खान के खून की प्यासी है। लेकिन इमरान अब फौज और वहां की सरकार के लिए टेढ़ी खीर बन गए हैं। उन्होंने सत्ता से बाहर होते ही फौज पर इल्जाम लगा दिया कि उनको तो सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा ने अमेरिका के कहने पर हटाया है। और बस, इमरान खान की इस कांस्पिरेसी थ्योरी ने उन्हें जनता का हीरो बना दिया।


इमरान अब बड़ी रैलियां कर रहे हैं। जनता में उनकी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ इतनी लोकप्रिय है कि वह अधिकतर उपचुनाव जीत रहे हैं। वह शहबाज शरीफ और फौज के गले का कांटा बन गए हैं। सब डर रहे हैं कि साल भर बाद होने वाले संसदीय चुनाव कहीं इमरान जीत न जाएं। अब इमरान को सत्ता में आने से कैसे रोका जाए।

पाकिस्तानी व्यवस्था अब वही कर रही है जो किसी भी कद्दावर लोकतांत्रिक नेता के साथ करती आई है। पाकिस्तान का हर बड़ा नेता मार दिया जाता है या फिर नवाज शरीफ की तरह जान बचाने के लिए देश छोड़कर भाग जाता है। जिन्ना के बाद प्रधानमंत्री लियाकत अली खां को गोली से मार दिया गया। सन 1979 में जुल्फिकार अली भुट्टो को फौज ने एक झूठे मुकदमे में फांसी पर चढ़ा दिया था। फिर, उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो को भी गोली मारकर खत्म कर दिया गया। नवाज शरीफ आज भी जान बचाने के डर से लंदन बैठे हैं। अब देखिए इमरान खान का क्या हश्र होता है।

फौज से बैर मोल लेने के बाद पाकिस्तानी व्यवस्था या तो जान लेती है या फिर देश बदर करती है। इमरान खान को भुट्टो वाली सजा मिलेगी या नवाज शरीफ के रास्ते जाएंगे, यह समय ही बताएगा।

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