खरी-खरी: भारत जोड़ो यात्रा से खुल रहा है विपक्षी एकजुटता का रास्ता

राहुल गांधी ने विपक्ष और जनता के बीच एक नया नैरेटिव खड़ा कर दिया है। दो विचारधाराओं का नैरेटिव, नफरत बनाम प्रेम और सद्भावना का नैरेटिव। भारत जोड़ो यात्रा ने विपक्ष को नए नैरेटिव के साथ जुड़ने का संदेश भी दिया।

फोटो सौजन्य : @INCIndia
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ज़फ़र आग़ा

आप कहेंगे कि फिर वही राहुल गांधी की गाथा। करूं क्या! पिछले सप्ताह राजनीतिक गतिविधियां काफी ठंडी रहीं। वैसे भी ठंड और कोहरा दिल्ली और उत्तरी भारत में अब अपनी चरम सीमा पर है। दिल्ली में तो शीतलहर चल रही है। इस मौसम में सभी गतिविधियां धीमी हो जाती हैं। जाहिर है, राजनीति भी ठंडी है। इस कड़ाके की ठंड में केवल एक अकेले राहुल गांधी ही ऐसे हैं जो पैदल सड़कों पर हैं। वह भी केवल एक जीन्स एवं टी शर्ट में। लेकिन वह अकेले ही कश्मीर की ओर नहीं बढ़ रहे हैं।

उनके कारवां में गांव-देहात एवं कस्बों तथा नगरों से निकलकर लोग जुड़ते जा रहे हैं। इसमें जो भीड़ आ रही है, वह ढोकर नहीं लाई जा रही है। जितनी भी भीड़ है, वह अपने आप आ रही है। मेरे एक सहयोगी ने मुझसे पूछा कि क्या राहुल की यात्रा का कोई असर है। मैंने कहा कि मुझे नहीं पता, मैं यात्रा में गया नहीं। लेकिन दो-तीन बातें स्पष्ट हैं। पहली बात तो यह है कि 2014 से अभी कुछ समय पहले तक देश में केवल नरेंद्र मोदी का हिन्दुत्व नैरेटिव ही चल रहा था। केवल मोदी एवं बीजेपी का ‘मुस्लिम शत्रु’ नैरेटिव छाया हुआ था। ऐसा प्रतीत होता था, मानो हिन्दू समाज ‘मुस्लिम शत्रुओं’ से घिरा हुआ है। ‘लव जिहाद’, काशी-मथुरा के मंदिर के स्थानों पर मस्जिद, राम जन्मभूमि पर बाबरी मस्जिद वालों का कब्जा, अजान का शोर, शुक्रवार को सड़कों पर नमाजियों की भीड़ आदि जैसी मुस्लिम गाथा मीडिया में छाई दिखाई पड़ती थी।  

यह बीजेपी की एक बड़ी सोची-समझी रणनीति है। इसका उद्देश्य हिन्दू समाज को काल्पनिक मुस्लिम शत्रु से भयभीत रखना एवं मुस्लिम समाज को ‘हिन्दू शत्रु’ की छवि देना है। इस नफरत एवं डर के माहौल में फिर नरेंद्र मोदी एवं बीजेपी को ‘हिन्दू अंगरक्षक’ का रूप देना है। इसके लिए कभी नमाज पर रोक, कभी बुलडोजर से केवल मुस्लिम अवैध निर्माण पर धावा, कभी तीन तलाक, कभी बाबरी मामलों की न्यायालय द्वारा फैसलों की गूंज, तो फिर कभी काशी-मथुरा मस्जिदों के खिलाफ अदालत में गुहार। मीडिया और सोशल मीडिया प्लैटफार्म पर पिछले लगभग सात-आठ वर्षों से इसी ‘हिन्दू-मुस्लिम’ नैरेटिव की धूम चल रही है। 

ऐसे माहौल में केवल एक अकेले राहुल गांधी ही हैं जो इस नैरेटिव के खिलाफ खड़े हुए। वह भी केवल भाषण के माध्यम से नहीं बल्कि इस ‘हिन्दू-मुस्लिम नफरत’ नैरेटिव के खिलाफ वह सड़कों पर उतरे और उन्होंने कन्याकुमारी से कश्मीर तक पैदल भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से एक नया पैगाम देना आरंभ किया। राहुल गांधी का कहना है कि यह हिन्दू-मुस्लिम नफरत की राजनीति भारत को तोड़ती है। यह दो समाजों के बीच नफरत फैलाती है। यह भारत का मूल नैरेटिव नहीं है। भारत एक-दूसरे धर्म और समाज के बीच प्रेम की प्रेरणा देता है। यह सद्भावना का संदेश देता है। इस नफरत एवं घृणा को छोड़ो और प्रेम के सदियों पुराने मार्ग पर वापस चलो। देखो, मैं अकेला इस मार्ग पर पैदल चल रहा हूं। इस प्रेम की यात्रा में तुम भी जुड़ो और देखो कि इस प्रेम से भारत कैसे जुड़ता है और विभिन्न समाजों एवं धर्मों के बीच कैसी सद्भावना उत्पन्न होती है। जब सद्भावना होगी, तो उन्नति एवं समृद्धि भी होगी। देश जुड़ेगा, तुम प्रगति करोगे।  


2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत जोड़ो एक नया नैरेटिव है। मीडिया, सोशल मीडिया और मोदी भक्त इस नैरेटिव का हर प्रकार खंडन कर रहे हैं। यह तो राहुल गांधी का व्यक्तिगत एजेंडा है। यह कांग्रेसी एजेंडा है। यह तो राजनीति है। तरह-तरह से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को नाकाम बताने की चेष्टा। लेकिन यह भी खबरें आ रही हैं कि राहुल गांधी जहां भी जा रहे हैं, वहां लाखों नहीं, तो हजारों लोग आ रहे हैं।

केवल इतना ही नहीं, राहुल गांधी की यात्रा जिधर से गुजरती है, वहां कम-से-कम एक-दो रोज राहुल के आपसी प्रेम संदेश की चर्चा रहती है। यह इस बात का प्रमाण है कि राहुल गांधी का प्रेम एवं सद्भावना संदेश नगर-नगर और गांव-गांव एक नया नैरेटिव भी बनता जा रहा है। यह कोई छोटी बात नहीं है। राहुल गांधी ने विपक्ष और जनता के बीच एक नया नैरेटिव खड़ा कर दिया है। दो विचारधाराओं का नैरेटिव, नफरत बनाम प्रेम और सद्भावना का नैरेटिव। अब यह जनता को तय करना है कि वह भारत को जोड़ना चाहती है या तोड़ना चाहती है।  

यह तो है राहुल गांधी की पहली उपलब्धि। फिर व्यक्तिगत स्तर पर अब राहुल गांधी का माखौल बनाना संभव नहीं रहा। ‘पप्पू’ एवं ‘शहजादे’ जैसा व्यंग्य अब संभव नहीं रहा। इसके विपरीत अब राहुल गांधी विपक्ष का एक भारी-भरकम व्यक्तित्व हैं जिसका सामना 2024 में नरेंद्र मोदी से है। यह भी स्पष्ट है कि संपूर्ण बीजेपी विरोधी विपक्ष को राहुल गांधी ने अगले लोकसभा चुनाव का मुद्दा दे दिया है। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी दिल्ली प्रेससभा के माध्यम से विपक्ष को इस नए नैरेटिव के साथ जुड़ने का संदेश भी दिया। अब वह पार्टियां एवं शक्तियां जो नफरत की राजनीति के विरुद्ध हैं, उनको राहुल गांधी के इस मिशन के साथ हाथ मिलाना होगा। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा अब केवल एक नैरेटिव ही नहीं बल्कि एक बीजेपी विरोधी नई राजनीति भी है। 


लेकिन इस यात्रा से चिंतित भक्त मंडली अब यह कहती है कि भाई चलिए, यात्रा हो गई। परंतु आगे क्या! राहुल गांधी ने आगे का एजेंडा भी दिल्ली प्रेस वार्ता में सामने रख दिया। उनका अगला कदम भारत जोड़ो के साथ बीजेपी विरोधी विपक्ष जोड़ो है, अर्थात बीजेपी के खिलाफविपक्ष को एकजुट करना। विचारधारा का मार्ग स्पष्ट हो चुका है। अब तमाम गैर बीजेपी राजनीतिक दल इसी विचारधारा के सूत्र से बंधकर अगले चुनाव के लिए एक कार्यक्रम तैयार करें और अपनी क्षेत्रीय शक्ति के अनुसार एक प्लैटफार्म पर एकत्र होकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ें। भारत जोड़ो कार्यक्रम के इस दूसरे चरण में कठिनाइयां होंगी। यह बात राहुल स्वीकार कर चुके हैं। लेकिन जिस प्रकार 2004 में विपक्ष अंततः एकजुट हुआ था, उसी प्रकार सन 2024 में भी एकजुट हो सकता है।  

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से देश को नया नैरेटिव एवं अगले लोकसभा चुनाव का विपक्षी एकजुटता का कार्यक्रम तथा रास्ता भी बन गया है। यह है नए राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा की उपलब्धि। 

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