भारत जोड़ो यात्राः आइडिया ऑफ इंडिया को बचाने की पुरजोर जद्दोजहद, राहुल गांधी का नेतृत्व देता है आश्वासन

लोग कहते हैं कि ‘हम बहुत परेशान हैं।’ लोग परेशानी में हैं और वे नहीं जानते कि क्या करें। वे चाहते हैं कि कोई सुने और लगता है कि राहुल गांधी उन्हें ध्यान से सुन रहे हैं।

फोटोः bharatjodoyatra.in
फोटोः bharatjodoyatra.in
user

वेनिता कोएल्हो

ओह, लानत है इस गूगल मैप्स पर! इसने हाईवे से उतरकर दाईं ओर कीचड़ वाले रास्ते पर जाने को बार-बार कहा जो अंततः खेत के बीच में ले गया। तब ही पता चला कि रिवर्स गियर काम नहीं कर रहा। मेरी किशोरी बेटी और मैं तीन राज्यों को पारकर भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के लिए ड्राइव कर रहे थे और हम लोग गन्ने के खेतों के बीच थे। चटकीले रंग की पगड़ी पहने एक व्यक्ति आए। इस किसान ने हमें आश्वस्त किया कि एक सड़क तो है जो हाईवे की ओर जाती है। अनिश्चितता में हम आगे बढ़े। उफ्! सड़क पर आने पर हमने पाया कि तीसरा गियर काम नहीं कर रहा है- एक और आफत!- हॉर्न ने भी साथ छोड़ दिया। यह तय करने का समय था। हमारे पास रिवर्स गियर नहीं था लेकिन आगे जाने को चार गियर थे। हम आगे बढ़ते रहे। ओह, मैं यह तुम्हारे लिए कर रही हूं, राहुल गांधी!

सच्चाई यह है कि मैं यह सब राहुल गांधी या कांग्रेस के लिए नहीं कर रही हूं। मेरी यात्रा किसी भी तरह राजनीतिक बयान नहीं है। मैं हजारों किलोमीटर इसलिए चल रही हूं कि आत्मा मुझे डरा रही है। यह भारत की आत्मा है जहां मैं बड़ी हुई। जहां घृणा नहीं बोई गई थी, भगवा झंडे आक्रामक तौर पर नहीं लहराए जाते थे और इसका कोई मतलब नहीं था कि आपके साथ स्कूल में पढ़ने वाले लोग किस धर्म के हैं। अगर उस आइडिया ऑफ इंडिया को बचा रहना है, तो किसी को तो कुछ करना होगा। और अंततः, कोई तो है। पदयात्रा के इस कार्यक्रम के पीछे ऐतिहासिक और क्रांतिकारी महत्व है। मुझे अच्छा लगता है कि यह भारत के एक छोर से दूसरे छोर पर जा रही है। यह बदलाव के लिए जूझ रही है और मैं भी इसमें अपनी गिनती कराना चाहती हूं।

गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र की यात्रा करते हुए हम नांदेड़ पहुंचे हैं जहां हमें लगा कि वास्तव में हम पंजाब आ गए हैं। हम गुरुद्वारा यात्री निवास में पहुंचे जहां हमसे सिर्फ 150 रुपये लिए गए और इस विशालकाय गुरुद्वारा परिसर में ढाबा पर हमने पराठे और काली दाल का लुत्फ उठाया। सारे टेबल ऐसे लोगों से भरे हुए हैं जो पूरे महाराष्ट्र से यात्रा के लिए आए हैं। सिख समुदाय का गर्मजोशी से किया स्वागत-सत्कार हमें लुभा रहा है। हम लंगर में प्रसाद भी लेते हैं। अब हम तैयार हैं!

अगली सुबह, हमारे दोस्त पहुंच जाते हैं- कलाकारों, फोटोग्राफरों, डिजाइनरों का मिला-जुला ग्रुप। वे खास तौर से ऐसे प्रिंटेड टी-शर्ट ले आए हैं, जिन पर संविधान की भावना लिखी है- 'वी द पीपुल ऑफ इंडिया...' और 'अमर अकबर एंथोनी- यूनाइटेड कलर्स ऑफ इंडिया'। हम में से बीस लोग जल्दबाजी में यात्रा में शामिल होते हैं जो सुबह शुरू होती है, दिन में थोड़ी देर ठहरती है और दोपहर बाद फिर शुरू हो जाती है, जहां हम इसके साथ होंगे। जिस तरफ से यात्रा को जाना है, वह सड़क बंद कर दी गई है। एकमात्र रास्ता यह है कि आप कांग्रेस द्वारा उपलब्ध कराई गई बसों से जाएं।


इसलिए, हम कांग्रेस कार्यालय जाते हैं जहां उत्सव का माहौल है। हमें ऐसी चहक रही महिलाओं के साथ सवार कर दिया जाता है जिन्होंने गहरा गुलाबी दुपट्टा पहन रखा है। यह कोल्हापुर का एक महिला संगठन समूह है जो विधवाओं के अधिकारों को लेकर काम करता है। उनके पास 'वीआईपी पास' वाले बड़े-बड़े टैग हैं जिन्हें हम ईर्ष्या से देख रहे हैं। हमारे पास ये नहीं हैं! बस चलने ही वाली है कि मेरे एक दोस्त और मैं कांग्रेस कार्यालय की ओर लपकते हुए घुस जाते हैं। मैंने धड़धड़ाते हुए कहा, 'मैं बिना गियर और बिना हॉर्न सैकड़ों किलोमीटर ड्राइव कर पहुंची हूं!' पांच मिनट के अंदर हम सबके लिए वीआईपी पास जुटाए गए और उन पर मुहरें लगाई गईंं। बस में सबने खुशी से तालियां बजाईंं।

हमें हाईवे पर करीब दस किलोमीटर पहले उतार दिया गया जहां से यात्रा शुरू हो चुकी है। सैकड़ों गांव वाले सड़क के किनारे लाइन लगाए हुए हैं। यह संख्या हजारों में बदल जाएगी। हम उनके साथ बात करते हैं। हम यह बात बार-बार सुनते हैं कि 'हम बहुत परेशान हैं।' लोग परेशानी में हैं और वे जानते कि क्या करें। वह चाहते हैं कि कोई उनकी समस्याएं सुने और यह लगता है कि राहुल उन्हें ध्यान से सुन रहे हैं। वह यात्रा को देश को समझने की अपनी यात्रा बताते हैं।

शुरू के कुछ यात्री उत्साह में नारा लगाते गुजरते हैंः 'जोड़ो! जोड़ो! भारत जोड़ो!' हम जवाब देते हैं, 'नफरत छोड़ो, भारत जोड़ो!' पूरी तरह सफेद कपड़े पहने वे लोग यात्री हैं जो राहुल के साथ कन्याकुमारी से कश्मीर की हर इंच की यात्रा करेंगे। राजस्थान, मेघालय, तमिलनाडु- वे भारत के हर राज्य से हैं। पहली बार मुझे भारत के भविष्य को लेकर थोड़ी आश्वस्ति होती है। ये युवा कैसी राजनीतिक दीक्षा पा रहे हैं! एक छोर से दूसरे छोर तक जाते, लोगों से मिलते, उनकी बातें सुनते, देश की वास्तविक नब्ज को पहचानते हुए। यह यात्रा कुछ और हासिल नहीं करती है, तब भी इसने राजनीतिज्ञों की अगली पीढ़ी तैयार की है। दूसरे चेहरे गुजरते हैं। कन्हैया कुमार। जयराम रमेश। हर कोई बतियाने या हमारा अभिवादन करने रुकता है। दूसरी राजनीतिक रैलियों से अलग, यह बहुत ही मित्रवत किस्म का है और सबमें उत्साह है।

तब ही हम सुनते हैं। सम्मोहित करने वाली ड्रमों की थड...थड...थड...। फिर, समुद्र की लहरों सरीखे लोगों का हुजूम आता है। हजारों लोग हैं और हमारी तरफ आते लोगों के रेले को देखना विस्मय देने वाला है। यह बहुत तेजी से होता है। ड्रम की आवाज तेज हो जाती है और भारी भीड़ हमारी तरफ बढ़ती है। हमारे सामने सफेद कपड़े में राहुल हैं, चलते हुए भी लोगों से बातचीत में डूबे।


हमें अंदाजा नहीं है, हम उस जगह के बगल में हैं जहां यात्री चाय पिएंगे। अचानक हम झंडों के समुद्र और 'नफरत छोड़ो! भारत जोड़ो!' की गूंज में डूब जाते हैं। अचानक शोर मचता है! यात्रा हमारे पास और चाय वाले टेन्ट से गुजर जाती है। राहुल के खास ग्रुप के इर्दगिर्द रस्सी संभाले करीब 40 पुलिस वाले रस्सी को जमीन पर गिरा देते हैं, वे हांफते, पर हंसते नजर आते हैं। राहुल तेजी से चलते हैं बल्कि लगभग दौड़ पड़ते हैं, और उन्हें उनके साथ रहना होता है (इस आदमी को लेकर यह कोई आश्चर्य नहीं है क्योंकि वह अच्छे तैराक हैं जो 70 मीटर में भी सांसें रोके रख सकते हैं और उन्होंने आइकीडो में ब्लैक बेल्ट हासिल किया हुआ है)। वह ऐसे व्यक्ति भी हैं जिनकी दादी और पिता की हत्या कर दी गई और फिर भी जिसमें हजारों लोगों की भीड़ के बीच आने का साहस है। राजनीति भूल जाइए। यह व्यक्ति प्रशंसा के योग्य है।

जब से मैंने सोशल मीडिया पर यह बताया कि मैं यात्रा में शामिल होने जा रही हूं, मित्रों की ओर से ये मैसेज पट गए कि 'यह मेरे लिए करो। मेरी तो इच्छा है कि मैं वहां होऊं।' एक दोस्त ने इसे 'दिल की यात्रा' कहा। वह ठीक कहती है। मैंने लंबी यात्रा की क्योंकि मैं उस देश से प्यार करती हूं जहां पली-बढ़ी। सबको स्वीकार करने, सबको मिलाने वाला आइडिया ऑफ इंडिया। हर कोई यात्रा में शामिल नहीं हो सकता। लेकिन अगर हमने भारत को आत्मा से अधिक प्रेम किया है, तो हममें से सबको दिल से अपनी यात्रा करनी चाहिए। मेरी चाहत है कि आप अपना रास्ता सुरक्षित तय करें।

(वेनिता कोएल्हो पटकथा लेखक, उपन्यासकार और कलाकार हैं। वेनिता गोवा में रहती हैं और विभिन्न आयु समूहों तथा विधाओं में काम करती हैं)  

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia