विष्णु नागर का व्यंग्यः गाय या भैंस को मां मानने में बड़ा लफड़ा, 'दुष्टों' के टेढ़े-मेढ़े सवालों का जवाब कहां से दें!

चलो मान लिया, यही सच है कि गाय आक्सीजन लेती और छोड़ती है, मगर कोरोना संकट के समय सरकार ने इस आक्सीजन का उपयोग क्यों नहीं किया? विपक्ष इसके लिए जिम्मेदार है या नहीं है? उसके खिलाफ तब अविश्वास प्रस्ताव लाने से सरकार चूक क्यों गई?

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

और फिर मां तो अमूमन अपने बच्चे को ही दूध पिलाती है, गाय और भैंस तो सबको पिलाती हैं।शर्त एक है कि जेब में पैसा हो। पैसा नहीं तो न गाय माता है, न भैंस। जैसे गरीब मां के स्तन का दूध जल्दी सूख जाता है, वैसे ही रोकड़ा न होने पर गोमाता या भैंसमाता का भी। यह सही है कि इसमें गोमाता या भैंसमाता का क्या दोष? वैसे ही गरीब मां का भी क्या दोष?

चलिए यह लफड़े वाला मामला है, इसे यहीं छोड़ते हैं। एक और लफड़ा मेरे लिखने से पैदा हो गया होगा। पूछा जाएगा कि भैंस कब से माता होने लगी? धर्म ग्रंथों में यह कहां लिखा है? नहीं लिखा होगा शायद मगर मेरे जैसे लोग-जो वैसे तो रोटी, दाल, सब्जी खाकर ही बड़े हुए हैं, गाय या भैंस का दूध पीकर नहीं- वे वास्तव में न गाय को मां मानने की स्थिति में हैं, न भैंस को। हमें तो बचपन में कभी-कभी खीर के बहाने दूध मिल गया तो मिल गया!

फिर जब दूध पीने की हैसियत हुई तो पतला-मोटा, शुद्ध या पानी मिला या डेयरी का दूध हुआ करता था- गाय या भैस का नहीं। होता भी होगा तो अपना उससे वास्ता नहीं रहा। तो आप ईजीली मान सकते हो कि बड़े होने के बाद जो दूध हमने पिया, वह भैंस का रहा होगा। इसका कारण है। एक तो भैंस, अमूमन गाय से ज्यादा दूध देती है, दूसरे उसके दूध में पानी मिलाना दूधिये के लिए भी आसान है, गृहिणियों के लिए भी!

तो भैंस का दूध इस मायने में अधिक उपयोगी और गुणकारी है। तो अपनी भावनाओं को चोट न पहुंचने दें और हम जैसा कोई विधर्मी गाय की बजाय भैंस को माता मानना चाहे तो उसे मानने दें। इसका ये मतलब नहीं कि वह आपकी माता यानी गोमाता को मानने से इनकार कर रहा है। आपकी मां, उसकी मां, मगर उसकी मां क्या आपकी मां? वैसे आप भी स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक हो, वह भी। आज आपके प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी हैं, तो उसके भी हैं!


पर बंधुओं, सच पूछो तो ये गाय या भैंस को मां मानने में बड़ा लफड़ा है। अब एक 'दुष्ट' ने कहा कि ठीक है जी, गाय हमारी माता है तो फिर हमारा कोई गोवंशीय पिता भी होता होगा? वह कौन है? और कोई नहीं है तो क्यों नहीं है? अब मैं ऐसे टेढ़े-मेढ़े सवाल का जवाब क्या देता? वेद-पुराण पढ़े होते, घोंटे होते तो जवाब दे भी देता। मौन रह गया। मुस्कुरा कर रह गया।

एक और 'दुष्ट' ने कहा कि गाय हमारी माता है तो उसके बछड़ा-बछिया हमारे क्या हुए? भाई-बहन हुए? बैल हमारा भाई है या नहीं है? बैल कुछ है तो फिर उसका एक और सहोदर हमारा कुछ है या नहीं? फिर आज की बछिया, कल गाय बन गई तो क्या वह भी हमारी मां हो जाएगी?और जो गाय मेरी मां है, वह मेरे बच्चों और उनके बच्चों की भी मां हुई या कुछ और? यह भी सवाल किया उसने कि विदेशी नस्ल की गाय हमारी मां क्यों नहीं हो सकती?

आप में से किसी के घर अगर गाय का दूध आता है तो क्या आप गारंटी से जानते हो कि वह देसी गाय का है? मान लिया कि देसी गाय का है तो फिर विदेशी नस्ल की जो गायें दूध देती हैं, उसका क्या होता है? वह उपयोग में लाया जाता है या फेंक दिया जाता है? और अगर जो गाय का दूध पीते हैं, वह देसी-विदेशी सभी नस्लों की गायों का होता है तो फिर विदेशी नस्ल की गाय भी उनकी मां कैसे नहीं हुई? नहीं हुई तो फिर उसका दूध वे क्यों पीते हैं? और पीते हैं, तो वह भी कुछ हुई या नहीं हुई?

अभी एक विद्वान न्यायाधीश ने एक फैसले में गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की बात कही।सवाल यह है कि गाय पशु है या हमारी मां है? क्या मां को पशु कहा जा सकता है, भले ही वास्तव में वह पशु हो? उन्होंने यह भी कहा कि गाय आक्सीजन लेती है और आक्सीजन ही छोड़ती है।उनके अनुसार वैज्ञानिक भी यह मानते हैं।


मान लिया कि वैज्ञानिकों की एक हिन्दूवादी कोटि होती है। चलो मान लिया, यही सच है कि गाय आक्सीजन लेती और छोड़ती है, मगर हम जो उसकी संतान हैं, कार्बन डाईआक्साइड क्यों छोड़ते हैं? या हम भी अब आक्सीजन छोड़ने लगे हैं? फिर देसी गायें ही आक्सीजन छोड़ती हैं या विदेशी गायें भी? कोरोना के संकट के समय सरकार ने इस आक्सीजन का उपयोग क्यों नहीं किया? विपक्ष इसके लिए जिम्मेदार है या नहीं है? उसके खिलाफ तब अविश्वास प्रस्ताव लाने से सरकार चूक क्यों गई?

आजकल 'दुष्ट' लोग ही सवाल किया करते हैं और भक्त लोगों को भड़काते हैं। 'दुष्टों' के पास और काम ही क्या है और मेरे पास भी? इसलिए 'दुष्टों' की संगत में रहता हूं, उनकी बातें सुनता हूं और अपनी बुद्धि को 'भ्रष्ट' करता रहता हूं। आजकल समय इसी में बीत रहा है!

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